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1998 वंधमा हत्याकांड: जब 23 कश्मीरी पंडितों की हत्या से दहल उठा था पूरा गांव

25 जनवरी 1998 की रात कश्मीर के साथ ही पूरे देश के लिए 'काली रात' साबित हुई जब एक साथ 23 कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया. आज भी स्थानीय लोग उस रात को यादकर सिहर उठते हैं. उनका कहना है कि इस हत्याकांड ने मन और आत्मा पर गहरा घाव छोड़ा. कश्मीर से खास रिपोर्ट.

1998 Wandhama Massacre
1998 वंधमा हत्याकांड
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Published : Mar 14, 2022, 8:15 PM IST

गांदरबल (जम्मू-कश्मीर) : मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले के वंधमा गांव में 25 जनवरी 1998 को हुई दर्दनाक घटना की टीस आज भी लोगों के जेहन में है. चौबीस साल पहले गांव में अज्ञात नकाबपोश बंदूकधारियों ने 23 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी थी. मारे गए नागरिक वह कश्मीरी पंडित थे, जिन्होंने इस क्षेत्र में बढ़ते आतंकवाद के बावजूद कश्मीर नहीं छोड़ा था.

स्थानीय लोगों के अनुसार यह भीषण घटना 25 और 26 जनवरी 1998 की दरम्यानी रात हुई थी. स्थानीय लोगों ने कहा. 'यह शब-ए-क़द्र था और हम स्थानीय मस्जिद के अंदर तरावीह की नमाज़ अदा कर रहे थे. हमने गोलियों और चीखों की आवाज़ सुनी. पहले हमने सोचा कि यह आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ है. डर के कारण हममें से किसी में भी बाहर कदम रखने की हिम्मत नहीं थी.'

कश्मीर से खास रिपोर्ट

उन्होंने कहा, 'तभी कोई चिल्लाते हुए आया कि मंदिर और पंडितों के घर आग की लपटों में घिरे हैं. हम मस्जिद से बाहर निकलकर यह देखने के लिए दौड़े कि क्या हो रहा है और सब कुछ आग की लपटों में घिरा देखकर चौंक गए. पास जाकर देखा तो चारों ओर खून से लथपथ शव थे.'

अगली सुबह जब स्थानीय लोग मौके पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चार पंडित परिवारों के 24 में से 23 सदस्य खून से लथपथ पड़े हैं. स्थानीय लोगों ने कहा. 'परिवार का एक अकेला सदस्य बद्री नाथ का 14 साल का बेटा विनोद (आशू) इस घातक हमले से बच गया था. मारे गए लोगों में चार परिवारों के परिवार के सदस्य और पांच मेहमान शामिल थे.'

28 जनवरी को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल शोक में शामिल हुए थे. उनके साथ गवर्नर-जनरल के वी कृष्ण राव (सेवानिवृत्त), तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला और तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रोफेसर सैफुद्दीन सोज भी थे. जम्मू-कश्मीर सरकार ने नृशंस हत्याओं के लिए आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था. गांदरबल थाने में भी मामला दर्ज किया गया था. घटना के बाद पूरा कश्मीर उदास था और कई लोगों ने मारे गए पंडितों के शोक और अंतिम संस्कार में भाग लिया.

स्थानीय लोगों ने बताया कि आशू चमत्कारिक ढंग से बच निकला था क्योंकि वह अपने घर के पास घास के ढेर के नीचे छिप गया था. स्थानीय लोगों के अनुसार, आशू ने पुलिस को बताया, 'हर तरफ हो-हल्ला हो रहा था, उन्होंने (नकाबपोश बंदूकधारियों ने) मेरे परिवार के सभी सदस्यों पर अंधाधुंध गोलीबारी की. बाद में सब जगह आग लगा दी.

हत्याकांड ने मन और आत्मा पर गहरा घाव छोड़ा
स्थानीय लोगों ने कहा, 'वह कश्मीरी मुसलमानों के साथ सद्भाव और भाईचारे के साथ रहते थे.' स्थानीय लोगों का कहना है कि इन हत्याओं ने लोगों के मन और आत्मा पर गहरा घाव छोड़ा. एक स्थानीय नागरिक ने कहा, 'यह पूरी मानवता की हत्या करने जैसा था और हम आज भी उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को याद करते हैं.' एक अन्य स्थानीय नागरिक ने कहा कि पड़ोसियों को अमानवीय कृत्य का शिकार होते देख उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने कहा, 'हमने हमेशा अपने पंडित भाइयों के साथ अपना सुख-दुख साझा किया और वे अविस्मरणीय यादें हैं.'

स्थानीय लोगों ने दावा किया कि पीड़ितों के घर वर्तमान में क्षतिग्रस्त स्थिति में हैं यह निराशाजनक है. स्थानीय लोगों ने कहा, 'कई पंडित परिवार जो हत्याओं से पहले वंधामा से जम्मू चले गए थे, अक्सर यहां अपने मुस्लिम पड़ोसियों और दोस्तों से मिलने आते हैं. और जब हम जम्मू जाते हैं तो हम उनसे मिलते हैं हमारा भाईचारा बरकरार है.' स्थानीय लोगों की मांग है कि घटना की जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए ताकि न्याय मिल सके.

पढ़ें- The Kashmir Files : फिल्म कई राज्यों में टैक्स फ्री, पीएम ने भी की प्रशंसा

पढ़ें- 'द कश्मीर फाइल्स' का बॉक्स ऑफिस पर धमाका, फर्स्ट डे की करोड़ों की कमाई

गांदरबल (जम्मू-कश्मीर) : मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले के वंधमा गांव में 25 जनवरी 1998 को हुई दर्दनाक घटना की टीस आज भी लोगों के जेहन में है. चौबीस साल पहले गांव में अज्ञात नकाबपोश बंदूकधारियों ने 23 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी थी. मारे गए नागरिक वह कश्मीरी पंडित थे, जिन्होंने इस क्षेत्र में बढ़ते आतंकवाद के बावजूद कश्मीर नहीं छोड़ा था.

स्थानीय लोगों के अनुसार यह भीषण घटना 25 और 26 जनवरी 1998 की दरम्यानी रात हुई थी. स्थानीय लोगों ने कहा. 'यह शब-ए-क़द्र था और हम स्थानीय मस्जिद के अंदर तरावीह की नमाज़ अदा कर रहे थे. हमने गोलियों और चीखों की आवाज़ सुनी. पहले हमने सोचा कि यह आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ है. डर के कारण हममें से किसी में भी बाहर कदम रखने की हिम्मत नहीं थी.'

कश्मीर से खास रिपोर्ट

उन्होंने कहा, 'तभी कोई चिल्लाते हुए आया कि मंदिर और पंडितों के घर आग की लपटों में घिरे हैं. हम मस्जिद से बाहर निकलकर यह देखने के लिए दौड़े कि क्या हो रहा है और सब कुछ आग की लपटों में घिरा देखकर चौंक गए. पास जाकर देखा तो चारों ओर खून से लथपथ शव थे.'

अगली सुबह जब स्थानीय लोग मौके पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चार पंडित परिवारों के 24 में से 23 सदस्य खून से लथपथ पड़े हैं. स्थानीय लोगों ने कहा. 'परिवार का एक अकेला सदस्य बद्री नाथ का 14 साल का बेटा विनोद (आशू) इस घातक हमले से बच गया था. मारे गए लोगों में चार परिवारों के परिवार के सदस्य और पांच मेहमान शामिल थे.'

28 जनवरी को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल शोक में शामिल हुए थे. उनके साथ गवर्नर-जनरल के वी कृष्ण राव (सेवानिवृत्त), तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला और तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रोफेसर सैफुद्दीन सोज भी थे. जम्मू-कश्मीर सरकार ने नृशंस हत्याओं के लिए आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था. गांदरबल थाने में भी मामला दर्ज किया गया था. घटना के बाद पूरा कश्मीर उदास था और कई लोगों ने मारे गए पंडितों के शोक और अंतिम संस्कार में भाग लिया.

स्थानीय लोगों ने बताया कि आशू चमत्कारिक ढंग से बच निकला था क्योंकि वह अपने घर के पास घास के ढेर के नीचे छिप गया था. स्थानीय लोगों के अनुसार, आशू ने पुलिस को बताया, 'हर तरफ हो-हल्ला हो रहा था, उन्होंने (नकाबपोश बंदूकधारियों ने) मेरे परिवार के सभी सदस्यों पर अंधाधुंध गोलीबारी की. बाद में सब जगह आग लगा दी.

हत्याकांड ने मन और आत्मा पर गहरा घाव छोड़ा
स्थानीय लोगों ने कहा, 'वह कश्मीरी मुसलमानों के साथ सद्भाव और भाईचारे के साथ रहते थे.' स्थानीय लोगों का कहना है कि इन हत्याओं ने लोगों के मन और आत्मा पर गहरा घाव छोड़ा. एक स्थानीय नागरिक ने कहा, 'यह पूरी मानवता की हत्या करने जैसा था और हम आज भी उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को याद करते हैं.' एक अन्य स्थानीय नागरिक ने कहा कि पड़ोसियों को अमानवीय कृत्य का शिकार होते देख उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने कहा, 'हमने हमेशा अपने पंडित भाइयों के साथ अपना सुख-दुख साझा किया और वे अविस्मरणीय यादें हैं.'

स्थानीय लोगों ने दावा किया कि पीड़ितों के घर वर्तमान में क्षतिग्रस्त स्थिति में हैं यह निराशाजनक है. स्थानीय लोगों ने कहा, 'कई पंडित परिवार जो हत्याओं से पहले वंधामा से जम्मू चले गए थे, अक्सर यहां अपने मुस्लिम पड़ोसियों और दोस्तों से मिलने आते हैं. और जब हम जम्मू जाते हैं तो हम उनसे मिलते हैं हमारा भाईचारा बरकरार है.' स्थानीय लोगों की मांग है कि घटना की जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए ताकि न्याय मिल सके.

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