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दिल्ली बार्डर पर इंटरनेट बैन के खिलाफ 141 अधिवक्ताओं ने CJI को लिखा पत्र

141 वकीलों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है. जिसमें इंटरनेट बंदी के अलावा हिंसा में लिप्त 200 स्थानीय हुड़दंगियों के खिलाफ कार्रवाई, किसानों के बारे में फर्जी खबर फैलाने वाले पत्रकारों और चैनलों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की गई है.

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Published : Feb 3, 2021, 3:49 PM IST

नई दिल्ली : 141 वकीलों ने दिल्ली-एनसीआर के सिंघू बार्डर, गाजीपुर व टीकरी बार्डर सहित आस-पास के इलाकों में इनरनेट निलंबन के खिलाफ भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को पत्र लिखा है. साथ ही गणतंत्र दिवस पर हिंसा को नियंत्रित करने के लिए पुलिस की निष्क्रियता और उनकी भूमिका की जांच के लिए एक आयोग के गठन की भी मांग की गई है.

वर्ष 2021 का अत्याधुनिक राजनीतिक परिदृश्य एक व्यापक बदलाव का गवाह बन रहा है. जिसमें 6 महीने से अधिक के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों का लगातार उत्पीड़न हो रहा है. इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए कई मुख्यधारा के मीडिया चैनल किसानों या अन्नादाताओं की तुलना आतंकवादियों या खालिस्तानियों से कर रहे हैं. यह आरोप लगाया कि 29 जनवरी के गृह मंत्रालय के आदेश से भय बढ़ गया है. जिसमें इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया और लोगों को इंटरनेट के माध्यम से राय व्यक्त करने के मूल अधिकार से वंचित कर दिया गया.

अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और फाउंडेशन फार मीडिया प्रोफेशनल्स ऑफ जम्मू एंड कश्मीर (कश्मीर में इंटरनेट का निलंबन) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए वकीलों का कहना है कि केंद्र सरकार ने उनकी शक्ति का घोर दुरुपयोग करके इंटरनेट निलंबित किया है. लगातार छठे दिन विरोध स्थलों और इसके आस-पास के क्षेत्रों में किसानों को इस बात का पूरा यकीन है कि उनकी आवाजों को शांत किया जा रहा है. सरकार की केवल एक पक्षीय बात को आगे बढ़ाया जा रहा है. यह संविधान के मूल मूल्यों पर एक स्पष्ट हमला है.

यह भी पढ़ें-किसान आंदोलन : महापंचायत का मंच टूटा

अधिवक्ताओं ने शीर्ष अदालत से इस मामले में दखल देने और गृह मंत्रालय के इनरनेट निलंबन के आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की है.

नई दिल्ली : 141 वकीलों ने दिल्ली-एनसीआर के सिंघू बार्डर, गाजीपुर व टीकरी बार्डर सहित आस-पास के इलाकों में इनरनेट निलंबन के खिलाफ भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को पत्र लिखा है. साथ ही गणतंत्र दिवस पर हिंसा को नियंत्रित करने के लिए पुलिस की निष्क्रियता और उनकी भूमिका की जांच के लिए एक आयोग के गठन की भी मांग की गई है.

वर्ष 2021 का अत्याधुनिक राजनीतिक परिदृश्य एक व्यापक बदलाव का गवाह बन रहा है. जिसमें 6 महीने से अधिक के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों का लगातार उत्पीड़न हो रहा है. इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए कई मुख्यधारा के मीडिया चैनल किसानों या अन्नादाताओं की तुलना आतंकवादियों या खालिस्तानियों से कर रहे हैं. यह आरोप लगाया कि 29 जनवरी के गृह मंत्रालय के आदेश से भय बढ़ गया है. जिसमें इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया और लोगों को इंटरनेट के माध्यम से राय व्यक्त करने के मूल अधिकार से वंचित कर दिया गया.

अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और फाउंडेशन फार मीडिया प्रोफेशनल्स ऑफ जम्मू एंड कश्मीर (कश्मीर में इंटरनेट का निलंबन) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए वकीलों का कहना है कि केंद्र सरकार ने उनकी शक्ति का घोर दुरुपयोग करके इंटरनेट निलंबित किया है. लगातार छठे दिन विरोध स्थलों और इसके आस-पास के क्षेत्रों में किसानों को इस बात का पूरा यकीन है कि उनकी आवाजों को शांत किया जा रहा है. सरकार की केवल एक पक्षीय बात को आगे बढ़ाया जा रहा है. यह संविधान के मूल मूल्यों पर एक स्पष्ट हमला है.

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अधिवक्ताओं ने शीर्ष अदालत से इस मामले में दखल देने और गृह मंत्रालय के इनरनेट निलंबन के आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की है.

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