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जानिये, खोपा धाम में देवता के बदले दानव की क्यों होती है पूजा ? - दानों देवता

सूरजपुर (Surajpur) के खोपा गांव में बड़े धूमधाम से दानों देवता की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि ये कोई देवता नहीं बल्कि दानव हैं. इनकी पूजा करने से लोगों की हर मनोकामना पूरी होती.

In Khopa Dham, both the deities are worshipped
खोपा धाम में होती है दानों देवता की पूजा
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Published : Oct 9, 2021, 2:59 PM IST

Updated : Oct 10, 2021, 2:28 PM IST

सूरजपुर: देश और प्रदेश में कई ऐसे धर्मस्थल हैं, जहां लोग देवी-देवताओं से अपने लिए मन्नत मांगते है. लेकिन सूरजपुर (Surajpur) जिले का खोपा धाम (Khopa Dham )जहां दानव की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दरबार से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता है. यहां हर किसी की मन्नत पूरी होती है. वहीं, मन्नत पूरी होने के बाद यहां बकरे और मुर्गे की बलि दी जाती है. इसके साथ ही शराब भी चढ़ाया जाता है.

खोपा धाम में देवता के बदले दानव

आईए जानते हैं कि ये कैसा है धाम है और इन मान्यताओं की पीछे की क्या कहानी है...

दानव की होती है पूजा

दरअसल, इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ देखते बनती है. मन्नत के लिए बांधे गए नारियल और धागे से यहां के पूजा का माहौल साफ तौर पर दिखता है. लेकिन इस पूजा में किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि दानव की पूजा होती है.दानव का नाम है बाकासुर, जिसे स्थानीय लोग दानव देवता के नाम से भी जानते है. इनकी स्थापना खोपा गांव में की गई है. इसलिए इस धाम को खोपा धाम भी कहा जाता है.

आसपास के लोगों में है असीम श्रद्धा

वहीं, खोपा गांव के ही नहीं बल्कि आसपास के कई प्रदेशों के भी ये आस्था का केन्द्र है. यहां तमाम लोग अपनी मान्यता लेकर आते है और मनचाहा मुराद पाकर जाते है. इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है बतायी जाती है. कहा जाता है कि बकासुर नाम का दानव खोपा गांव के बगल से गुजरती रेड नदी में रहते थे. गांव के एक बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर वो वहीं गांव के बाहर एक स्थान पर रहने लगे. जिसके बाद अपनी पूजा के लिए उन्होंने बैगा जाति के लोगों को ही स्वीकृति प्रदान की. यही वजह है कि यहां पूजा कोई पंडित नहीं बल्किआदिवासी जनजाति बैगा ही कराते है.

बकरा, मुर्गा और शराब चढ़ाया जाता है

तब से लेकर आज तक यह स्थल आस्था का केन्द्र बना हुआ है. यहां के पूजा का तरीका भी अलग है. पहले लोग यहां नारियल तेल और सुपाड़ी के साथ पूजा कर अपनी मन्नत मांगते है. मन्नत पूरी होने पर यहां बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. इस स्थान में महिलाओं का प्रवेश निषेध था, हालांकि अब भारी संख्या महिलाएं में इस पवित्र स्थल पर जाकर पूजा-पाठ करतीं है.

बिना मंदिर के होती है पूजा

इस स्थान में पिछले कई सौ सालो से पूजा हो रही है, लेकिन आज तक यहां मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है. इसकी भी अपनी अलग कहानी है. जानकारो के अनुसार खोपा देवता ने स्थापित होने से पहले ही यह बात कह दी थी, मेरा मंदिर ना बनाया जाए. क्योंकि मैं चार दीवारी में कैद होने के बजाए स्वतंत्र रहना चाहता हूं. साथ ही इस स्थान की मान्यता है कि यहां का प्रसाद महिलाए नहीं खा सकती है. साथ ही यहां के प्रसाद को घर नहीं ले जाया जा सकता है.

सौ वर्षो से यह श्रद्धालूओं के आस्था का केन्द्र

पिछले कई सौ वर्षो से यह श्रद्धालूओं के आस्था का केन्द्र है. यहां हर समय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही है. छत्तीसगढ़ सहित तमाम प्रदेशो के श्रद्धालु भी यहां अपनी मन्नत मांगने यहां आते है. मन्नत पूरी होने पर बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाते है. श्रद्धालुओं की माने तो इस दर से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता है. यहां के बैगा पूजारी भूत-प्रेत और बुरी साया से बचाने का दावा भी करते है.यहां भूत-प्रेत से छुटकारा पाने वाले की भी लंबी लाइन लगी रहती है.

सूरजपुर: देश और प्रदेश में कई ऐसे धर्मस्थल हैं, जहां लोग देवी-देवताओं से अपने लिए मन्नत मांगते है. लेकिन सूरजपुर (Surajpur) जिले का खोपा धाम (Khopa Dham )जहां दानव की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दरबार से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता है. यहां हर किसी की मन्नत पूरी होती है. वहीं, मन्नत पूरी होने के बाद यहां बकरे और मुर्गे की बलि दी जाती है. इसके साथ ही शराब भी चढ़ाया जाता है.

खोपा धाम में देवता के बदले दानव

आईए जानते हैं कि ये कैसा है धाम है और इन मान्यताओं की पीछे की क्या कहानी है...

दानव की होती है पूजा

दरअसल, इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ देखते बनती है. मन्नत के लिए बांधे गए नारियल और धागे से यहां के पूजा का माहौल साफ तौर पर दिखता है. लेकिन इस पूजा में किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि दानव की पूजा होती है.दानव का नाम है बाकासुर, जिसे स्थानीय लोग दानव देवता के नाम से भी जानते है. इनकी स्थापना खोपा गांव में की गई है. इसलिए इस धाम को खोपा धाम भी कहा जाता है.

आसपास के लोगों में है असीम श्रद्धा

वहीं, खोपा गांव के ही नहीं बल्कि आसपास के कई प्रदेशों के भी ये आस्था का केन्द्र है. यहां तमाम लोग अपनी मान्यता लेकर आते है और मनचाहा मुराद पाकर जाते है. इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है बतायी जाती है. कहा जाता है कि बकासुर नाम का दानव खोपा गांव के बगल से गुजरती रेड नदी में रहते थे. गांव के एक बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर वो वहीं गांव के बाहर एक स्थान पर रहने लगे. जिसके बाद अपनी पूजा के लिए उन्होंने बैगा जाति के लोगों को ही स्वीकृति प्रदान की. यही वजह है कि यहां पूजा कोई पंडित नहीं बल्किआदिवासी जनजाति बैगा ही कराते है.

बकरा, मुर्गा और शराब चढ़ाया जाता है

तब से लेकर आज तक यह स्थल आस्था का केन्द्र बना हुआ है. यहां के पूजा का तरीका भी अलग है. पहले लोग यहां नारियल तेल और सुपाड़ी के साथ पूजा कर अपनी मन्नत मांगते है. मन्नत पूरी होने पर यहां बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. इस स्थान में महिलाओं का प्रवेश निषेध था, हालांकि अब भारी संख्या महिलाएं में इस पवित्र स्थल पर जाकर पूजा-पाठ करतीं है.

बिना मंदिर के होती है पूजा

इस स्थान में पिछले कई सौ सालो से पूजा हो रही है, लेकिन आज तक यहां मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है. इसकी भी अपनी अलग कहानी है. जानकारो के अनुसार खोपा देवता ने स्थापित होने से पहले ही यह बात कह दी थी, मेरा मंदिर ना बनाया जाए. क्योंकि मैं चार दीवारी में कैद होने के बजाए स्वतंत्र रहना चाहता हूं. साथ ही इस स्थान की मान्यता है कि यहां का प्रसाद महिलाए नहीं खा सकती है. साथ ही यहां के प्रसाद को घर नहीं ले जाया जा सकता है.

सौ वर्षो से यह श्रद्धालूओं के आस्था का केन्द्र

पिछले कई सौ वर्षो से यह श्रद्धालूओं के आस्था का केन्द्र है. यहां हर समय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही है. छत्तीसगढ़ सहित तमाम प्रदेशो के श्रद्धालु भी यहां अपनी मन्नत मांगने यहां आते है. मन्नत पूरी होने पर बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाते है. श्रद्धालुओं की माने तो इस दर से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता है. यहां के बैगा पूजारी भूत-प्रेत और बुरी साया से बचाने का दावा भी करते है.यहां भूत-प्रेत से छुटकारा पाने वाले की भी लंबी लाइन लगी रहती है.

Last Updated : Oct 10, 2021, 2:28 PM IST
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