सूरजपुर: शहर की तरह गांव में भी ग्रामीण महिलाएं धुएं में परेशान होने के बजाए बायोगैस चूल्हे का उपयोग करने लगी हैं. इसमें हर महीने एसपीजी सिलेंडर भरवाने या फिर बदलवाने का झंझट नहीं है, बल्कि घर के आंगन में ही गैस बनाई जा रही है. जिसके लिए ग्रामीण घरेलू गोबर गैस का उपयोग रसोई में खाना पकाने के लिए कर रहे हैं. घर में मवेशियों के गोबर से ही बायोगैस बनाई जा रही है.
सूरजपुर कलेक्टर दीपक सोनी ने बताया कि 'वर्तमान में जिले में नरवा, गरुवा, घुरुवा और बाड़ी के तहत गोवर्धन योजना के माध्यम से 11 सामुदायिक बायोगैस प्लांट बनाए गए हैं. जिससे 20 परिवार के घरों में चूल्हा जल रहा है, वहीं 2 क्यूबिक मीटर के व्यक्तिगत प्लांट के माध्यम से 553 परिवारों को इस लॉकडाउन की अवधि में सुरक्षित तौर पर घरेलू इंधन मिल रहा है. बायोगैस के माध्यम से 753 परिवारों को इसका लाभ मिल रहा हैं. ये परिवार घरों में बायोगैस के सहारे ही खाना पका रहे हैं. इससे इन परिवारों को धुएं में परेशान होकर खाना बनाने से मुक्ति मिल गई है. साथ ही बाजार जाकर गैस सिलेंडर को हर महीने रीफिल कराने से भी छुटकारा मिल गया है. गोबर से यहां जैविक खाद भी बन रही है. यह तत्व मिट्टी और फलों के लिए लाभकारी है. जिसे वन विभाग पौधे में डालने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
धुंए से मिला छुटकारा
योजना का लाभ पाने वाली हितग्राही वनस्पति सिंह ने बताया कि 'पहले वह लकड़ी जलाकर मिट्टी से बनाए चूल्हे में खाना बनाया करती थीं, जिससे खाना पकाने में समय ज्यादा लगता था और धुआं भी फैलता था, लेकिन जिला प्रशासन के सहयोग से अब महिलाओं को धुंए से छुटकारा मिल गया है. इसके साथ ही खाना समय पर बन जाता है'. महिलाओं ने बताया कि 'पहली बरसात में लकड़ियां गीली हो जाती थी, जिसके कारण घर पर खाना बनाने में मुश्किल होता था. लेकिन अब बायोगैस लगने से महिलाएं बहुत खुश हैं और जिला प्रशासन का तहे दिल से शुक्रिया करते हैं.
जिला प्रशासन से मिली मदद
इस योजना से लाभांवित महिला ने बताया कि 'बायोगैस से उसकी जिंदगी बदल गई है. अब उसके समय की बचत भी होती है और लकड़ी लेने के लिए उन्हें जंगल भी नहीं जाना पड़ता है. सिर्फ एक टुकनी गोबर से उन्हें सुबह शाम गैस उपलब्ध हो जाती है'. दिनभर खाना बनाने में हो रही सुविधा के लिए महिलाओं ने जिला प्रशासन को शुक्रिया कहा है. प्रशासन ने उनके गांव में ऐसा प्लांट लगाया है, जिससे उनकी किस्मत ही बदल गई है और अब उन्हें जंगल जाकर लकड़ी नहीं लानी पड़ती है. जिससे उनको धुएं से छुटकारा मिल गया है और खाना भी समय से बन जाता है.
घर पर ही बनाएं गैस
स्वच्छ ग्रामीण भारत मिशन के जिला सलाहकार संजय सिंह ने बताया कि 'बायोगैस चूल्हे में एक टंकी बनाई जाती है, जिसमें दो छोर बनाया जाता है. जबकि बीच में गैस के लिए पाइप लाइन निकाली जाती है. एक छोर से जहां गोबर डाला जाता है. वहीं दूसरी छोर पर सड़ चुके गोबर को निकाला जाता है. बीच में लगी पाइप को सीधे रसोई गैस तक पहुंचाया जाता है. सामान्य सिलेंडर की तरह यह महंगा नहीं है. गैस के बदले रोजाना प्लांट में गोबर डालना पड़ता है, जो ग्रामीण आसानी से अपने घरों से लाकर प्लांट में डाल देते हैं. जिसके बदले उन्हें 2 टाइम की गैस मिलती है, वहीं प्लांट का रख रखाव भी ग्रामीण ही करते हैं.
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बायोगैस का बढ़ा उपयोग
बहरहाल धीरे-धीरे बायोगैस का उपयोग बढ़ रहा है. यह घर में ही बनाए जाने वाली गैस है, जिसके निर्माण के लिए प्रशासन सहयोग राशि देता है. बायोगैस जहां घरों में खाना पकाने के काम आती है, वहीं अधिक मवेशी होने पर इसे बिजनेस भी बनाया जा रहा है. जिससे बायोगैस का उपयोग बढ़ता जा रहा है.