सूरजपुर : बाल श्रम उन्मूलन के लिए कलेक्टर रणवीर शर्मा के निर्देश और जिला कार्यक्रम अधिकारी मुक्तानंद खूटे और उनकी टीम ने दो बच्चों को छुड़ाया. ये दोनों बच्चे एक मकान में मजदूरी का काम कर रहे थे. वहीं रेस्क्यू किए गए नाबालिग लड़कों को जिले के बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया है.
भारत सरकार की ओर से संचालित टोल फ्री नंबर 1098 में मिली शिकायत के आधार पर जिले की गठित संयुक्त टीम ने प्रतापपुर के वार्ड क्रमांक 7 (डॉ. राजेंद्र प्रसाद वार्ड) के रहने वाले संतोष सारथी के निर्माणाधीन मकान में काम कर रहे दो लड़कों (उम्र 13 साल और 17 साल) को रेस्क्यू किया है. जानकारी के मुताबिक लड़कों से बीते चार-पांच दिन पहले से काम कराया जा रहा था, जिसकी सूचना 1098 से मिलने पर टीम ने प्रतापपुर थाना क्षेत्र में कार्रवाई करते हुए बालकों को रेस्क्यू कर सूरजपुर के बाल कल्याण समिति को सौंप दिया है.
सीएम भूपेश बघेल ने भी की थी लोगों से अपील
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी बाल श्रम निषेध दिवस के दिन लोगों से अपील की थी कि छोटे बच्चों से काम न कराएं, न ही किसी को बच्चों से काम करवाने दें. बच्चों के प्रति दुर्व्यवहार, हिंसा या मजदूरी करते पाए जाने पर तुरंत पुलिस और प्रशासन को सूचना देकर बच्चे का भविष्य बचाने में सहयोग करें. वहीं सूरजपुर में किए गए कार्रवाई में श्रम विभाग, बाल संरक्षण इकाई, प्रतापपुर पुलिस थाना के स्टाफ बल और चाइल्ड लाइन के अधिकारी और कर्मचारी शामिल रहे.
बाल श्रम अपराध है
बता दें कि बच्चों से संबंधित कई कानून बनाए गए है, लेकिन कई लोगों की बेवकूफी और लापरवाही के कारण ऐसे बाल मजदूरी जैसे मामले सामने आते रहते हैं. हालांकि सूचना मिलने पर इस पर कार्रवाई भी की जाती है, लेकिन कई मामले ऐसे भी हैं , जिनका कभी पता ही नहीं चल पता. वहीं नियमों के मुताबिक 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराना गैरकानूनी है. लेबर एक्ट, जेजे एक्ट, बाल श्रम प्रतिबंध कानून में इसके लिए प्रवधान भी है, जिन संस्थाओं में बच्चे काम करते पाए जाते हैं, उन्हें दंडित करने का भी प्रावधान है.
क्या है बाल मजदूरी ?
5 से 14 साल तक के बच्चों का अपने बचपन से ही नियमित काम करना बाल मजदूरी कहलाता है. दूसरे शब्दों में कहे तो बाल मजदूरी का मतलब यह है कि जिसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून के निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है.
गरीबी की वजह से बढ़ रही बाल मजदूरी की घटनाएं
यूनीसेफ के मुताबिक बच्चों से मजदूरी इसलिए करवाई जाती है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है. बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है, लेकिन इसके अलावा जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता जैसे अन्य कारण भी हैं.
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छत्तीसगढ़ में कई बाल गृह और आश्रम संचालित किए जा रहे हैं, ताकि ऐसे बच्चों की पढ़ाई और पुनर्वास पर काम किया जा सके. साथ ही गरीब और निचले स्तर के परिवारों को बच्चे बोझ न लगें. सरकार को मजदूरों के लिए जल्द रोजगार के इंतजाम करने की जरूरत है. साथ ही लोगों को भी इस बात के प्रति भी जागरूक होना होगा कि बच्चों से काम करवाना अपराध है, इसे बढ़ावा न दें, बल्कि उनकी मदद करें ताकि देश की नींव मजबूत हो सके.