सूरजपुर: विश्वभर में इन दिनों कोरोना वायरस का खौफ है, तो वहीं सूरजपुर के ग्रामीण इलाकों में हाथियों का आतंक है. प्रतापपुर इलाके के लोग हाथियों की दहशत से सहमे हुए हैं. ग्रामीण इलाकों में जब हांथियों का झुंड पहुंचाता है, तो ग्रामीण कई दिनों तक अपने घरों से ही नहीं निकलते हैं. इन हांथियों ने अब तक कई लोगों की जिंदगियां छीन ली, तो कई लोगों के घरों को उजाड़ दिया है. इस वजह से ग्रामीणों में हर पल डर कायम रहता है.
हाल ही में अभी प्रतापपुर वन परिक्षेत्र इलाके में लगभग 20 हाथियों का दल देखा गया है, जिसमें एक दंतैल हाथी भी शामिल है. इन हाथियों ने कई एकड़ में लगे गन्ने, गेहूं, धान सहित सब्जी की खेती को उजाड़ दिया है, जिससे ग्रामीण फसल बचाने के लिए हाथियों से आमना-सामना कर रहे हैं, लेकिन प्रतापपुर वन विभाग ग्रामीणों की ओर ध्यान नहीं दे रहा है.
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महुआ बीनने गई महिला को हाथियों ने कुचला
अप्रैल महीने में गोटिया गांव की एक महिला महुआ बीनने गई थी, जिसे हाथियों ने कुचलकर मार डाला था. वहीं मई माह की शुरूआत में इन हाथियों ने खड़गवां, पंडोपारा, सोनगरा क्षेत्र में जमकर उत्पात मचाया था. इस दौरान इन हाथियों ने एक घर को क्षतिग्रस्त किया, तो वहीं एक भैंस को मार डाला था. इसी दौरान हाथियों के दल ने क्षेत्र के किसान राजाराम रजवार, शिवलाल रजवार, कलेश्वर राम, शिवचरण राम, मोहरलाल, शिवनाथ के गेहूं, गन्ना, केले की फसल को नुकसान पहुंचाया था. साथ ही कोटया और बंशीपुर के पास तीन लोगों को भी मौत के घाट उतार दिया था.
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वन विभाग के सभी दावे निकले खोखले
प्रतापपुर वन विभाग हाथियों के कंट्रोल को लेकर जो दावे किए थे, वो सब खोखले नजर आ रहे हैं. हाथियों का दल कभी भी किसी गांव में उतर जाता है. साथ ही गांवों के कई घरों सहित फसलों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे प्रतापपुर वन परिक्षेत्र के कई गांव प्रभावित हैं.
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समय पर नही कराई जाती मुनादी
वन विभाग को जानकारी मिलने के बाद भी समय पर मुनादी नहीं करा रहे हैं, जिसका खामियाजा अब ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है. ग्रामीण आए दिन जंगलों में महुआ चुनने के लिए या जलाऊ लकड़ी के लिए जाते रहते हैं, लेकिन वन विभाग ग्रामीणों को जानकारी होने के बावजूद नहीं देते हैं, जिससे हाथी ग्रामीणों को कुचल देते हैं.
सभी हाथियों में लगी रेडियो कॉलर को निकला गया
करोड़ो रुपए खर्च कर के हाथियों के गले में रेडियो कॉलर लगाया गया था, जिससे लोकेशन और उनकी हरकतों का जायजा जा सके, लेकिन न जाने उन हाथियों के कॉलर आईडी कहां गए. अब न तो हाथियों के लोकेशन की सही जानकारी मिल पा रही है, न ही वन विभाग इसकी जानकारी दे रहा है. बल्कि जानकारी ये भी है कि 4 हाथियों में जो कॉलर आईडी लगाए गए थे, उसमें से अब एक हाथी में ही कॉलर आईडी लगी हुई है.
हाथियोंं की जानकारी सिर्फ सोशल मीडिया ग्रुप तक सीमित
वन विभाग के द्वारा वाट्सअप ग्रुप बननाया, तो गया है हाथियों की लोकेशन देने के लिए, लेकिन इसका लाभ गांव के गरीब लोगों को नहीं मिल पाता, जिनके पास 2 वक्त की रोटी के पैसे नहीं है, वो हाथियों की जानकारी लेने के लिए वाट्सअप मोबाइल कहां से लाएंगे.