सूरजपुर: छत्तीसगढ़ में लगातार हो रही हाथियों की मौत के बीच आज सुबह प्रतापपुर परिक्षेत्र मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर करंजवार के जंगल में हाथी का शव मिला है. बताया जा रहा है कि हाथी के नाक से खून निकला हुआ है. वन विभाग को इसकी जानकारी मिलते ही विभाग के अधिकारी और कर्मचारी जंगल में पहुंचे. माना जा रहा है कि हाथी की मौत शनिवार शाम को हुई है और इसकी जानकारी सोमवार सुबह ग्रामीणों से मिली है.
मिली जानकारी के अनुसार पिछले कुछ दिनों से प्यारे हाथी सहित कुल 4 हाथी धरमपुर, टुकुडांड़ और प्रतापपुर सर्किल में विचरण कर रहे थे. सोमवार रात में इनमें से दो हाथी के रात 8 बजे के आसपास प्रतापपुर-अम्बिकापुर मुख्यमार्ग में चिटकाबहरा के समीप मुख्य मार्ग को पार कर दलदली क्षेत्र में जाने की जानकारी मिली थी. सुबह इन्हीं हाथी में से एक हाथी का शव परिक्षेत्र मुख्यालय से तीन किमी दूर करंजवार के जंगल में मिला है. हाथी के मौत का कारण अभी अज्ञात है. बता दें प्रदेश में हाथियों की मौत का सिलसिला रूक नहीं रहा है. प्रतापपुर क्षेत्र में भी हाथियों की लगातरा मौत के बीच एक और हाथी की मौत हो गई है.
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वन्य जीव संरक्षण अधिनियम
- हाथी को बाघ के समान दर्जा प्राप्त है और उसे 2010 में राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित किया गया था.
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, जो 2002 में संशोधित किया गया था, उसमें बंदी हाथियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जो वन विभाग के साथ पंजीकृत नहीं थे.
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम मुख्य बिंदु-
- अनुसूची पशु के रूप में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 40 (2) के तहत मुख्य वन्यजीव वार्डन या WPA के तहत अधिकृत अधिकारी की लिखित अनुमति के बिना किसी बंदी हाथी को रखना और उसे परिवहन के लिए इस्तेमाल करना निषेध है.
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा-43 मौद्रिक विचारों या किसी अन्य लाभ के लिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को बंदी हाथियों की बिक्री, खरीद या हस्तांतरण को प्रतिबंधित करता है.
- उप खंड (2A), सेक्शन 40 के तहत वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) अमेंडमेंट एक्ट, 2002 के शुरू होने के बाद, स्वामित्व के प्रमाण पत्र वाले व्यक्ति के अलावा कोई भी व्यक्ति, किसी भी बंदी जानवर को अपने नियंत्रण हिरासत या कब्जे में नहीं रख सकता.