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SPECIAL : काबिल-ए-तारीफ है वक्त का ये बदलाव, 13 साल बाद शिक्षा के मंदिर में पड़े नौनिहालों के पांव - आओ स्कूल चलें

सलवा जुडूम के बाद नक्सलियों ने स्कूलों को तोड़ दिया था. 13 साल बाद अब प्रशासन की पहल से इन स्कूलों को दोबारा खोला गया है, जिससे बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई है.

13 साल बाद खुले स्कूल
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Published : Jul 10, 2019, 7:48 PM IST

Updated : Jul 10, 2019, 7:53 PM IST

सुकमा : 'आओ स्कूल चलें' में आज हम आपको लेकर चलेंगे एक ऐसी जगह, जहां 13 साल बाद उम्मीद की नई किरण ने दस्तक दी है. 'लाल आतंक' की मार से कराह रहे ग्रामीणों ने हिम्मत की है. सरकार की नई सोच ने वक्त को बदला है. बंद पड़े स्कूलों का ताला खुला है और नौनिहालों की जीवन में शिक्षा सूरज उगा है.

13 साल बाद खुले स्कूल

उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने नए शिक्षा सत्र के तहत सुकमा के जगरगुंडा मिडिल और हाई स्कूल का शुभारंभ करने के साथ ही, कन्या आश्रम शाला का भी उद्घाटन किया. इस दौरान उन्होंने गांव में विकास का आश्वासन भी दिया.

2006 में नक्सलियों के खिलाफ शुरू हुए सलवा जुडूम अभियान के के बाद 'लाल आतंक' ने पूरे इलाके का सर्वनाश कर दिया था. इस लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान यहां बच्चों को उठाना पड़ा था. नक्सलियों ने यहां स्कूल भवनों को गिरा दिया था. जिसके बाद यहां स्कूल बंद कर दिए गए थे.

तत्कालीन सरकार ने जगरगुण्डा में संचालित स्कूल को वहां से 56 किलोमीटर दूर दोरनापाल में संचालित करने का फैसला किया. हालांकि 13 साल बाद सरकार एक बार फिर से यहां के स्कूलों को यहीं लगाने का फैसला किया है. अगर सरकार की ये मुहिम कारगर होती है, तो वो दिन दूर नहीं जब यहां भी मां सरस्वती की वीणा की धुन सुनाई देगी.

कलम की स्याही कागजों पर सजाई होगी. नई सवेरे का होगा आगाज. यहां के विद्यावानों और अफसरों पर पूरा देश करेगा नाज.

सुकमा : 'आओ स्कूल चलें' में आज हम आपको लेकर चलेंगे एक ऐसी जगह, जहां 13 साल बाद उम्मीद की नई किरण ने दस्तक दी है. 'लाल आतंक' की मार से कराह रहे ग्रामीणों ने हिम्मत की है. सरकार की नई सोच ने वक्त को बदला है. बंद पड़े स्कूलों का ताला खुला है और नौनिहालों की जीवन में शिक्षा सूरज उगा है.

13 साल बाद खुले स्कूल

उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने नए शिक्षा सत्र के तहत सुकमा के जगरगुंडा मिडिल और हाई स्कूल का शुभारंभ करने के साथ ही, कन्या आश्रम शाला का भी उद्घाटन किया. इस दौरान उन्होंने गांव में विकास का आश्वासन भी दिया.

2006 में नक्सलियों के खिलाफ शुरू हुए सलवा जुडूम अभियान के के बाद 'लाल आतंक' ने पूरे इलाके का सर्वनाश कर दिया था. इस लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान यहां बच्चों को उठाना पड़ा था. नक्सलियों ने यहां स्कूल भवनों को गिरा दिया था. जिसके बाद यहां स्कूल बंद कर दिए गए थे.

तत्कालीन सरकार ने जगरगुण्डा में संचालित स्कूल को वहां से 56 किलोमीटर दूर दोरनापाल में संचालित करने का फैसला किया. हालांकि 13 साल बाद सरकार एक बार फिर से यहां के स्कूलों को यहीं लगाने का फैसला किया है. अगर सरकार की ये मुहिम कारगर होती है, तो वो दिन दूर नहीं जब यहां भी मां सरस्वती की वीणा की धुन सुनाई देगी.

कलम की स्याही कागजों पर सजाई होगी. नई सवेरे का होगा आगाज. यहां के विद्यावानों और अफसरों पर पूरा देश करेगा नाज.

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Last Updated : Jul 10, 2019, 7:53 PM IST
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