सुकमा : बस्तर की जेलों में कई निर्दोष आदिवासी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि कई आदिवासियों को बिना किसी कसूर के नक्सली बताकर पुलिस ने गिरफ्तार किया. वहीं कोर्ट ने सिर्फ पुलिसिया कार्रवाई को आधार मानकर आदिवासियों को जेल भेज दिया. ऐसा ही एक मामला सुकमा में सामने आया.जिसमें निर्दोष ग्रामीण को बिना किसी कसूर को नौ महीने तक जेल में रहना पड़ा. जेल से छूटने के बाद ग्रामीण ने क्षतिपूर्ति के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.जहां से ग्रामीण को आर्थिक क्षतिपूर्ति देने का आदेश हुआ.
क्या था मामला : साल 2022 में कोर्ट ने फायरिंग के पुराने मामले में नक्सलियों की गिरफ्तारी करने के लिए स्थायी वारंट जारी किया था. जिसके बाद चिंतागुफा थाना से पुलिस पार्टी मीनपा के जुहूपारा गांव में पहुंची. इस दौरान पुलिस खेत में काम करने वाले पोडियम भीमा अपने साथ लेकर चली गई.थाने लाकर पुलिस ने उसे नक्सली बताकर पीटा और कोर्ट में पेश कर दिया.कोर्ट ने पोडियम को नक्सली मानते हुए उसे जेल भेज दिया.
असली नक्सली ने किया सरेंडर : 3 मार्च 2022 को नक्सली पोडियम बीमा ने अपने साथियों के साथ दंतेवाड़ा न्यायालय के सामने सरेंडर किया. जिसके बाद गिरफ्तारी पत्रक खंगालने पर खुलासा हुआ कि पुलिस ने पहले ही बेकसूर आदिवासी ग्रामीण भीमा को नक्सली बताकर जेल भेज दिया है. खुलासा होते ही कोर्ट ने निर्दोष आदिवासी भीमा को जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश जारी किया.
इस मामले को लेकर पोडियम भीमा ने हाईकोर्ट के वकील प्रवीण धुरंधर के माध्यम से याचिका दायर की थी. जिसके आदेश में ग्रामीण को क्षतिपूर्ति राशि 1 लाख रुपये दिए जाने के साथ ही सुकमा जिले में गलत तरीके से कार्यवाही करने वाले दोषी पुलिस अधिकारियों पर भी एक्शन लेने को कहा गया है. -बीचेम पोंदी, एडवोकेट
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कोर्ट ने क्षतिपूर्ति देने के दिए आदेश : आपको बता दें कि ग्रामीण ने जेल से छूटने के बाद वकील से संपर्क किया.क्योंकि नौ महीने तक जेल में रहने के कारण उसके परिवार को आर्थिक संकट झेलना पड़ा था. जिसे लेकर वकील ने हाईकोर्ट में क्षतिपूर्ति के साथ दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ याचिका लगाई थी. ग्रामीण की याचिका पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया.साथ ही दोषी पुलिसकर्मियों पर जांच के बाद कार्रवाई करने के निर्देश जारी किए हैं.