सुकमा: बस्तर की मिट्टी ने हमेशा बहादुर बेटे को जन्म दिया है. हम बात कर रहे हैं सुकमा जिले के एक ऐसे गांव की जिसे शहीदों का गांव कहा जाता है. आदिवासी बाहुल्य गांव के बेटे देश के नाम पर जान देने से कभी नहीं घबराते हैं. इस गांव के हर दूसरे घर से एक बेटा भारत मां की सेवा में लगा है.
सलवा जुडूम के दौरान इस गांव ने सबसे ज्यादा नक्सलवाद का दंश झेला है. हम बात कर रहे हैं सुकमा के एर्राबोर गांव की, जहां हर दूसरे घर का बेटा पुलिस फोर्स में है. नक्सलवाद के खिलाफ यहां के जांबाज बेटे लड़ाई लड़ने को हर वक्त तैयार रहते हैं. यही कारण है कि एर्राबोर गांव से अब तक 37 से ज्यादा बेटों ने अलग-अलग मोर्चे पर अपनी शहादत दी है. गांव के युवा शहादत को प्रेरणा के रूप में देखते हैं और हर पल देश की सेवा करने का सपना संजोए बैठे हैं.
शहीदों का गांव कहलाता है एर्राबोर
इस गांव में पहली नजर पड़ते ही आंखों को एहसास होने लगता है कि 'जिस सरजमीं पर हमारे कदम पड़ रहे हैं उस मिट्टी में वतन परस्ती और देश सेवा की इतनी गहरी जड़े हैं कि ऐसा कहीं और देखने को नहीं मिलता. जिला मुख्यालय से करीब 75 किलोमीटर दूर सुकमा-कोंटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर मौजूद एर्राबोर आज शहीदों का गांव कहलाता है.
सड़क किनारे मौजूद हैं शरीदों की प्रतिमाएं
एनएच-30 के किनारे शहीदों की प्रतिमाएं साफ नजर आती हैं. ये प्रतिमाएं मानो हर युवा को यह बताने के लिए काफी है कि इस गांव में कायर पैदा नहीं हुए. यहां के लोगों के लिए देश की सेवा से बढ़कर और कुछ नहीं है.
श्रद्धांजलि देने उमड़ते हैं लोग
उपेलमेट, सिंगाराम सहित आधा दर्जन से ज्यादा बड़ी नक्सली घटनाओं में माताओं ने अपने जिगर के टुकड़ों को खोया है. उसके बाद भी गांव का युवा नक्सलवाद को ललकारता नजर आता है. सड़क किनारे शहीद स्मारक पर हर साल आजादी के पर्व पर परिजन अपनों को श्रद्धांजलि देने उमड़ते हैं.
बच्ची ने साफ की शहीद पिता की प्रतिमा
उस वक्त हर किसी की आंखे नम हो गईं जब, 15 साल की बच्ची अपने शहीद पिता के प्रतिमा को साफ करते नजर आई. उसके पिता कट्टम सुब्बा 2007 में उपलमेटा नक्सल हमले में शहीद हो गए. बेटी कट्टम लक्ष्मी बताती है कि 'जब से होश संभाला है वह हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी से 1 दिन पहले अपने पिता के स्मारक की साफ-सफाई कर उनके शहादत को नमन करती है.
ब्लास्ट में लक्ष्मैया हुए थे शहीद
इसी तरह 2006 में सिंगाराम के जंगल में हुए नक्सली ब्लास्ट में का कारम लक्षमैया शहीद हो गए. उनकी शहादत को याद करते छोटे भाई कारम शंकु ने कहा कि वो भी देश की सेवा करना चाहता है.
नक्सलियों ने किया था तांडव
सलवा जुडूम के शुरू होने के बाद एर्राबोर गांव ने अब तक का सबसे बड़ा अग्निकांड देखा है, जहां नक्सलियों ने सुरक्षाबलों की वर्दी पहनकर पूरे गांव पर हमला कर दिया था. गांव के युवा आज भी उस घटना को नहीं भूले हैं. अग्निकांड के प्रत्यकदर्शी रफीक खान बताते हैं कि 'उनकी आंखों के सामने ही ग्रामीणों को जिंदा जला दिया था'.
30 ग्रामीणों की हुई थी मौत
नक्सलियों ने करीब 220 घरों में आग लगा कर अंधाधुंध फायरिंग की. हमले में 20 ग्रामीण घायल हो गए, 30 ग्रामीण की मौके पर और 30 ग्रामीणों की इलाज के दौरान मौत हो गई. इस दौरान राहत शिविर की सुरक्षा में तैनात एसपीओ भी शहीद हो गए थे.