सुकमा: ग्रामीण इलाकों में पेयजल समस्या को दूर करने के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं. आधुनिक युग में भी ग्रामीणों को प्राकृतिक जल स्त्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है. पुराने कुएं व झिरिया से निकलने वाले पानी से लोगों को प्यास बुझानी पड़ रही है. सुकमा जिले के छिंदगढ़ विकासखंड के शगुनघाट ग्राम पंचायत के गुफनपाल गांव में एक सूखा पेड़ गांव की प्यास बुझा रहा है. सुनने में जरूर अजीब लगे पर ये सच है कि कई दशकों से गांव में एक सूखे पेड़ का खोखला तना गांव के करीब 300 लोगों की प्यास बुझाने का काम कर रहा है.
4 हैंडपंप में से एक में भी साफ पानी नहीं
गुफनपाल गांव में सरकारी तंत्र ने जरूर चार हैंडपंप लगाकर अपनी पहुंच दिखाई है, लेकिन कभी उन हैंडपंप से पानी निकलता है या नहीं इसे जानने की कभी कोशिश नहीं की. स्कूल के पास स्थित हैंडपंप को छोड़कर बाकी कोई भी हैंडपंप काम नहीं कर रहे हैं, सरकारी हैंडपंप कई महीनों से खराब होने के बाद भी इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. नए हैंडपंप भी खराब हो गए हैं.कुछ में गंदा पानी आता है जो पीने योग्य नहीं है. ग्रामीणों को मजबूरन पेड़ के खोखले तने से निकलने वाले पानी पर निर्भर रहना पड़ता है. खेत के पास स्थित इस कुआं नुमा झिरिया से 12 महीने पानी निकलता है जो ग्रामीणों की प्यास बुझाता है. इतना ही नहीं नहाने व कपड़ा धोने के लिए ग्रामीण इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं.
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कई दशकों से प्यास बुझा रहा सूखा पेड़
गुफनपाल के ग्रामीण ने बताया कि पानी की समस्या बढ़ती जा रही है. ग्रामीणों के अनुसार उनके पूर्वजों ने गांव से करीब 500 मीटर दूर खेत के पास झिरिया में पेड़ का खोखला तना कई वर्षों पहले लगायाा था. दादा-परदादा के जमाने से इसी सूखे पेड़ के तने से गांव वाले पानी का इंतजाम कर रहे हैं. गर्मियों में जलस्तर नीचे चला जाता है ,लेकिन 12 महीने ठंडा व शुद्ध पेयजल उपलब्ध रहता है.
सरकार बदली पर हालात नहीं
जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर छिंदगढ़ विकासखंड का यह गांव पेयजल की विकराल समस्या से जूझ रहा है. 60 घर वाले गुफनपाल गांव पहले कवराकोपा पंचायत में आता था. गत वर्ष हुए पंचायत चुनाव से पूर्व ही गुफनपाल को शगुनघाट पंचायत में शामिल किया गया. लोगों को उम्मीद थी कि नए पंचायत में शामिल होने से उनकी मूलभूत समस्याएं जल्द दूर होगी, लेकिन सरकार और पंचायत बदलने के बाद भी गांव की प्रमुख समस्या नहीं बदल सकी है.