अंबिकापुर: छत्तीसगढ़ के गांवों में यहां की संस्कृति बसती है. यहां रहने वाले लोगों के हाथों में हुनर बसता है. ऐसे ही हुनरमंद हैं सरगुजा और बलरामपुर जिले की सीमा पर बसे आरा गांव के रहने वाले कुम्हार शिवमंगल. दिवाली पर मिट्टी के दीयों को इन्होंने ऐसा बनाया है कि दूर-दूर तक इनकी पहचान हो गई है. शिवमंगल ने चिड़ियों का आकार लिए ऐसा दीया बनाया है, जिसमें बार-बार तेल डाने की जरूरत नहीं पड़ती है. दीये में खत्म होने पर अपने आप तेल भरने लगता है. इसके लिए इन्हें कई बार सम्मान भी मिल चुका है.
दिवाली का सबसे प्रमुख आकर्षण होते हैं दीप, लेकिन सबके घर को रोशन करने वाले इन दीयों के निर्माण करने वाले कुम्हारों को शायद ही कोई याद करता है. ETV भारत पहले भी आपको कोंडागांव के ऐसे कुम्हार से मिला चुका है, जिनके जादुई दीए के दीवाने खुद पंचायत और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी हैं. अब ETV भारत आपको शिवमंगल की कला से वाकिफ करा रहा है.
मिट्टी के दीये में साइंस का प्रयोग
शिवमंगल ने भले कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा लेकिन इनके 24 घंटे लगातार जलने वाले दीये में साइंस का इस्तेमाल है. ये दीया एयर के वैक्यूम से काम करता है. चिड़िया के रूप में बने इस दीये में इतना तेल भर दिया जाता है कि वो 24 घंटे तक बिना बुझे जल सकता है. इस दीये में बनी चिड़िया के पेट से तेल बूंद-बूंदकर टपकता है. आम तौर पर इस दीये का इस्तेमाल अखंड ज्योत जलाने में किया जाता है, लेकिन दिवाली में इसकी मांग खास होती है.
मिट्टी में अद्भुत कलाकारी
शिवमंगल सिर्फ दीये ही नहीं बल्कि मिट्टी में अद्भुत कलाकारी कर कई आकर्षक वस्तुएं भी बनाते हैं. जिसकी बानगी ऐसी है कि लॉकडाउन में भी इनका रोजगार बंद नहीं हुआ और लोग घर आकर इनकी बनाई चीजें लेने पहुंचने लगे.
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देशभर में लगा चुके हैं प्रदर्शनी
ETV भारत से चर्चा में शिवमंगल ने बताया कि उन्होंने मिट्टी की ये कला अपने पूर्वजों से सीखी है. दीयों के साथ ही वो मिट्टी के वाद्य यंत्र, खूबसूरत कलाकृति, जानवरों की आकृति सहित कई वस्तुओं का निर्माण करते हैं, जिन्हें देखकर कोई भी आकर्षित हो जाता है. शिवमंगल देश के कई शहरों में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगा चुके हैं. इससे न सिर्फ उनकी कला का प्रचार होता है बल्कि इससे उनकी अच्छी आय भी होती है.
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कई लोगों को दे चुके हैं प्रशिक्षण
ये कलाकार अद्भुत कला के विस्तार के लिए कई लोगों को प्रशिक्षण भी दे चुका है, ताकि उसकी कला जीवित रह सके. लेकिन फिलहाल 2 सालों से शासकीय प्रशिक्षण का काम बंद है और वो घर पर ही मिट्टी के सामान बनाकर बेच रहे हैं. हस्तशिल्प बोर्ड की तरफ से कार्यक्रम बंद कर दिया गया, जिससे वे ट्रेनिंग नहीं दे पा रहे हैं. अनपढ़ होकर मिट्टी के सामानों में साइंस का जो अद्भुत प्रयोग शिवमंगल करते हैं वो तारीफ के काबिल है. शिवमंगल जैसे लोग नाउम्मीद के अंधियारे में उजाले के 'मंगल' जैसे होते हैं.