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कीटनाशक से बर्बाद होते किसान: 236 कृषि दुकानों में सिर्फ 69 के पास है कीटनाशक बेचने का लाइसेंस

धान में लगने वाले कीड़ों के बचाव के लिए कीटनाशक के छिड़काव की जरूरत होती है, लेकिन कई बार किसान के खेत में लगी बीमारी नष्ट नहीं होती, बल्कि उसकी फसल ही नष्ट हो जाती है. इस समस्या के लिए न तो विभाग गंभीर दिखता है न ही सरकार की ओर से कोई सख्त कदम उठाए जाते हैं. आज हम कीटनाशक से बर्बाद होते किसान के मुद्दे में पड़ताल कर रहे हैं.

agricultural shops have pesticide license in sarguja
कीटनाशक से बर्बाद होते किसान
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Published : Oct 11, 2020, 10:21 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: सरगुजा में मुख्य रूप से धान और मक्के की ही खेती की जाती है. जून और जुलाई के महीने में खरीफ की फसल लगाई जाती है. जिसके बाद अक्टूबर के महीने में किसानों का धान लगभग पक कर तैयार होने की कगार पर होता है और इस समय धान में लगने वाले कीड़ों से बचाव के लिए कीटनाशक के छिड़काव की जरूरत होती है. फसल के बीमार होने पर किसान कीटनाशक दवा दुकानों से खरीदकर छिड़काव करते हैं, लेकिन कई बार किसान के खेत में लगी बीमारी नष्ट नहीं होती, बल्कि उसकी फसल ही नष्ट हो जाती है. इस समस्या के लिए न तो विभाग गंभीर दिखता है न ही सरकार की ओर से कोई सख्त कदम उठाए जाते हैं. इसके परिणाम स्वरूप किसान की पूरी फसल चौपट हो जाती है और किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने तक को मजबूर हो जाते हैं या फिर आर्थिक रूप से कमजोर होकर जिंदगी व्यतीत करते हैं.

कीटनाशक से बर्बाद होते किसान

दवाइयों की जानकारी नहीं होने से फसल बर्बाद

इस कड़ी में ETV भारत ने पड़ताल की और इस बात का पता लगाने का प्रयास किया की आखिर ऐसे कौन से कारण हैं की खेत में लगी फसल में कीटनाशक का छिड़काव करने के बावजूद भी कीड़े नहीं मरते हैं और कीड़े पूरी फसल को चट कर जाते हैं. पड़ताल में शुरुआती तौर पर बात सामने आई की नकली कीटनाशक से ऐसा हो सकता है, लेकिन जब मामले की पड़ताल करते हुए आंकड़े निकाले गए तब पता चला कि अनट्रेंड लोगों द्वारा कीटनाशक की बिक्री करने की वजह से ऐसा हो रहा है. जिन्हें फसलों की बीमारी और उसमें उपयोग होने वाली दवाइयों की जानकारी नहीं है. ऐसे लोग जब किसान को गलत दवाई दे देते हैं, तब किसान की फसल में लगे कीड़े नहीं मरते हैं और लंबा समय बीत जाने के बाद कीड़े पूरी फसल को चौपट कर देते हैं.

पढ़ें- SPECIAL: बालको राखड़ डैम किसानों के लिए बना अभिशाप, खेत में खड़ी फसलें हुई बर्बाद


'नकली समान बेचना आसान नहीं'

इधर, मानसून ऐग्रो के संचालक संजय गुप्ता बताते हैं, बाजार में सभी बड़ी ब्रांडेड कंपनियों के कीटनाशक उपलब्ध है और इनका नकली समान बेचना आसान नहीं है. कंपनियां खुद अपने नुकसान की चिंता करते हुए इस पर नजर रखती है.

69 दुकानदारों के पास ही लाइसेंस

संजय गुप्ता के बयान पर ETV भारत ने कृषि विभाग से कृषि और कीटनाशक दवाइयों के लाइसेंस की जानकारी निकाली. जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. जिले में सैकड़ों ऐसे लोग हैं जो बिना लाइसेंस के ही कीटनाशक बेच रहे हैं. सरगुजा जिले में लगभग हर बीज दुकानदार कीटनाशक बेचता है और जिले में 236 रजिस्टर्ड कृषि बीज दुकान संचालित है, इसमें कीटनाशक बेचने का लाइसेंस सिर्फ 69 दुकान संचालकों के पास ही है.

कई बार हो चुकी है कार्रवाई

इस बारे में कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि वे समय-समय पर इसके खिलाफ कार्रवाई करते हैं. जबकि हकीकत में धड़ल्ले से गांव-गांव में बिना लाइसेंस के बेचे जा रहे कीटनाशक दवाइयों पर कृषि विभाग की कोई नकेल दिखती नहीं है.

पढ़ें- SPECIAL: जैविक के नाम पर बेचा जा रहा है 'जहर', फसल और सेहत दोनों के लिए खतरनाक


क्यों है लाइसेंस की जरूरत
कीटनाशक बेचने के लिए वैध लाइसेंस की जरूरत इसलिए है क्योंकि जब तक बीएससी एग्रीकल्चर और बीएससी केमेस्ट्री की पढ़ाई न की जाए तबतक यह समझना मुश्किल है कि कौन सी बीमारी में कौन सी दवाई देना है और लाइसेंस टेक्निकल डिप्लोमा वालों को ही मिलता है. जिससे वह अपने अनुभव में आधार पर किसान को दवाई देता है. लेकिन सरगुजा में अप्रशिक्षित लोग भी कीटनाशक दवाइयां बेच रहे हैं और गलत दवाइयों के छिड़काव से किसानों को परेशानी होती है. कीटनाशक के लाइसेंस के लिए कई अन्य दस्तावेज के साथ तीन दस्तावेज जरूरी होता है. पहला बीएससी एग्रीकल्चर, दूसरा बीएससी केमेस्ट्री, कृषि विभाग से कराए जा रहे एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स इन तीनों में से किसी भी एक डिप्लोमा होने पर कृषि विभाग कीटनाशक बेचने का लाइसेंस जारी कर देता है.

कब दूर होगी किसानों की समस्या

बहरहाल इस पूरी पड़ताल में यह बात सामन आई की अगर पढ़े-लिखे लोग अगर वैध लाइसेंस के साथ दवाइयों की बिक्री करेंगे तो किसानों पर आने वाला यह संकट नहीं आएगा और अवैध रूप से कीटनाशक बेचने वाले दुकानदरों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

सरगुजा: सरगुजा में मुख्य रूप से धान और मक्के की ही खेती की जाती है. जून और जुलाई के महीने में खरीफ की फसल लगाई जाती है. जिसके बाद अक्टूबर के महीने में किसानों का धान लगभग पक कर तैयार होने की कगार पर होता है और इस समय धान में लगने वाले कीड़ों से बचाव के लिए कीटनाशक के छिड़काव की जरूरत होती है. फसल के बीमार होने पर किसान कीटनाशक दवा दुकानों से खरीदकर छिड़काव करते हैं, लेकिन कई बार किसान के खेत में लगी बीमारी नष्ट नहीं होती, बल्कि उसकी फसल ही नष्ट हो जाती है. इस समस्या के लिए न तो विभाग गंभीर दिखता है न ही सरकार की ओर से कोई सख्त कदम उठाए जाते हैं. इसके परिणाम स्वरूप किसान की पूरी फसल चौपट हो जाती है और किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने तक को मजबूर हो जाते हैं या फिर आर्थिक रूप से कमजोर होकर जिंदगी व्यतीत करते हैं.

कीटनाशक से बर्बाद होते किसान

दवाइयों की जानकारी नहीं होने से फसल बर्बाद

इस कड़ी में ETV भारत ने पड़ताल की और इस बात का पता लगाने का प्रयास किया की आखिर ऐसे कौन से कारण हैं की खेत में लगी फसल में कीटनाशक का छिड़काव करने के बावजूद भी कीड़े नहीं मरते हैं और कीड़े पूरी फसल को चट कर जाते हैं. पड़ताल में शुरुआती तौर पर बात सामने आई की नकली कीटनाशक से ऐसा हो सकता है, लेकिन जब मामले की पड़ताल करते हुए आंकड़े निकाले गए तब पता चला कि अनट्रेंड लोगों द्वारा कीटनाशक की बिक्री करने की वजह से ऐसा हो रहा है. जिन्हें फसलों की बीमारी और उसमें उपयोग होने वाली दवाइयों की जानकारी नहीं है. ऐसे लोग जब किसान को गलत दवाई दे देते हैं, तब किसान की फसल में लगे कीड़े नहीं मरते हैं और लंबा समय बीत जाने के बाद कीड़े पूरी फसल को चौपट कर देते हैं.

पढ़ें- SPECIAL: बालको राखड़ डैम किसानों के लिए बना अभिशाप, खेत में खड़ी फसलें हुई बर्बाद


'नकली समान बेचना आसान नहीं'

इधर, मानसून ऐग्रो के संचालक संजय गुप्ता बताते हैं, बाजार में सभी बड़ी ब्रांडेड कंपनियों के कीटनाशक उपलब्ध है और इनका नकली समान बेचना आसान नहीं है. कंपनियां खुद अपने नुकसान की चिंता करते हुए इस पर नजर रखती है.

69 दुकानदारों के पास ही लाइसेंस

संजय गुप्ता के बयान पर ETV भारत ने कृषि विभाग से कृषि और कीटनाशक दवाइयों के लाइसेंस की जानकारी निकाली. जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. जिले में सैकड़ों ऐसे लोग हैं जो बिना लाइसेंस के ही कीटनाशक बेच रहे हैं. सरगुजा जिले में लगभग हर बीज दुकानदार कीटनाशक बेचता है और जिले में 236 रजिस्टर्ड कृषि बीज दुकान संचालित है, इसमें कीटनाशक बेचने का लाइसेंस सिर्फ 69 दुकान संचालकों के पास ही है.

कई बार हो चुकी है कार्रवाई

इस बारे में कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि वे समय-समय पर इसके खिलाफ कार्रवाई करते हैं. जबकि हकीकत में धड़ल्ले से गांव-गांव में बिना लाइसेंस के बेचे जा रहे कीटनाशक दवाइयों पर कृषि विभाग की कोई नकेल दिखती नहीं है.

पढ़ें- SPECIAL: जैविक के नाम पर बेचा जा रहा है 'जहर', फसल और सेहत दोनों के लिए खतरनाक


क्यों है लाइसेंस की जरूरत
कीटनाशक बेचने के लिए वैध लाइसेंस की जरूरत इसलिए है क्योंकि जब तक बीएससी एग्रीकल्चर और बीएससी केमेस्ट्री की पढ़ाई न की जाए तबतक यह समझना मुश्किल है कि कौन सी बीमारी में कौन सी दवाई देना है और लाइसेंस टेक्निकल डिप्लोमा वालों को ही मिलता है. जिससे वह अपने अनुभव में आधार पर किसान को दवाई देता है. लेकिन सरगुजा में अप्रशिक्षित लोग भी कीटनाशक दवाइयां बेच रहे हैं और गलत दवाइयों के छिड़काव से किसानों को परेशानी होती है. कीटनाशक के लाइसेंस के लिए कई अन्य दस्तावेज के साथ तीन दस्तावेज जरूरी होता है. पहला बीएससी एग्रीकल्चर, दूसरा बीएससी केमेस्ट्री, कृषि विभाग से कराए जा रहे एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स इन तीनों में से किसी भी एक डिप्लोमा होने पर कृषि विभाग कीटनाशक बेचने का लाइसेंस जारी कर देता है.

कब दूर होगी किसानों की समस्या

बहरहाल इस पूरी पड़ताल में यह बात सामन आई की अगर पढ़े-लिखे लोग अगर वैध लाइसेंस के साथ दवाइयों की बिक्री करेंगे तो किसानों पर आने वाला यह संकट नहीं आएगा और अवैध रूप से कीटनाशक बेचने वाले दुकानदरों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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