सरगुजा: भगवान भास्कर की पूजा, आराधना और उपासना का महापर्व छठ, जो मुख्य रूप से बिहार-झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. बिहार-झारखंड-उत्तर प्रदेश सहित अब यह व्रत पूरे देश में मनाया जाने लगा है. छत्तीसगढ़ राज्य का सरगुजा संभाग जो बिहार-झारखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है. संभाग के सबसे बड़े शहर अंबिकापुर में भी ज्यादातर लोग इन्हीं प्रदेशों से आकर बसे हैं. यही कारण है कि सरगुजा में छठ पर्व की धूम देखते ही बनती है.
अंबिकापुर के शंकर घाट, खर्रा नदी, खैरबार, गोधनपुर, सत्तीपारा तालाब है जहां मुख्यरूप से सबसे ज्यादा भीड़ होती है. इन सभी घाटों पर लगभग 1 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ एकत्र होती है. सिर्फ शंकर घाट पर ही प्रति वर्ष 30 हजार से ज्यादा लोग आते हैं. जिले भर में करीब 20 बड़े और 150 से ज्यादा छोटे छठ घाट में छठ पूजा की जाती है. जिले की जनसंख्या की लगभग 20 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से छठ पर्व का हिस्सा बनती है.
एसपीओ पालन के साथ मिली अनुमति
इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से छठ पर्व के सामूहिक आयोजन के लिए पहले तो प्रशासन ने रोक लगा दी थी. लोगों को अपने घरों में पूजा करने के निर्देश जारी किए गए थे, लेकिन लोगों और धर्मिक संगठनों की लगातार मांग के बाद शासन ने छठ घाट में आयोजन की अनुमति दे दी है, लेकिन कोरोना वायरस के बचाव के लिए जारी एसओपी के पालन के सख्त निर्देश दिए हैं. प्रशासन ने साफ किया है कि एसओपी का उल्लंघन होने पर आयोजनकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज की जाएगी. सरगुजा में अब तक किसी भी आयोजक ने छठ घाट में छठ पर्व की अनुमति के लिए आवेदन नहीं किया है, जबकि छठ घाटों में साफ सफाई सहित तमाम तैयारियां देखी जा रही है.
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कठिन अनुशासन का व्रत
छठ पर्व जितने भव्य स्वरूप में मनाया जाता है. उतना ही कठिन और अनुशासन का व्रत इस पर्व में किया जाता है. सनातन धर्म के सबसे कठिन व्रतों में इसे माना जाता है. चार दिवसीय इस व्रत में लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है.
पहला दिन- नहाय खाय
छठ व्रत की शुरुआत पहले दिन पूजा में उपयोग किए जाने वाले गेहूं की साफ-सफाई और धुलाई से होती है, इस दिन महिलाएं गेहूं धोती है और गेहूं को धूप में सुखाया जाता है. इस दौरान यह भी ध्यान रखना होता है कि कोई पक्षी इस गेहूं में चोंच मारकर इसे जूठा न कर दे. इसके बाद पुराने समय में उपयोग की जाने वाली हाथ चक्की (जांंता) में यह गेहूं पीसा जाता है. इस दिन नहाय खाय का पालन शुरू होता है. जिसमें व्रत रखने वाले लोग नहाकर व्रत शुरू करने से पहले का अपना भोजन खुद बनाते हैं. शुद्ध घी में बनने वाले इस भोजन को खाने के बाद से व्रत शुरू हो जाता है. उपवास शुरू होने से 24 घंटे पहले शुद्ध और सात्विक भोजन किया जाता है.
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दूसरा दिन-खरना
व्रत के दूसरे दिन व्रती निर्जला व्रत रखे हुए शाम को नए चावल, गुड़ और घी से खीर बनाती है. इस क्रिया को खरना कहा जाता है, इस खीर को व्रती महिला या पुरुष खाते हैं. लेकिन इस भोजन के दौरान भी कठिन नियम का पालन करना होता है. व्रत के दौरान खीर वाले शख्स के कानों के भोजन के वक्त किसी भी जीव-जंतु या इंसान की पुकार नहीं जानी चाहिए या फिर उस खीर में कोई कंकण या पत्थर भी नहीं आना चाहिए. वरना उसे अपना भोजन वहीं पर छोड़ना पड़ेगा, फिर चाहे वो पहला निवाला ही क्यों ना हो. इसलिए इस दौरान परिवार के सभी लोग एक जगह शांति से बैठ जाते हैं और मोहल्ले में कोई पशु आसपास हो तो उसे दूर कर दिया जाता है.
तीसरा दिन-अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
व्रत के तीसरे दिन निर्जला व्रत करते हुए पूजा की तैयारी होती है और पहले दिन पीसे गए गेंहू के आटे को गुड़ के साथ मिलाकर उसे शुद्ध घी में तलकर प्रसाद बनाया जाता है. जिसे स्थानीय भाषा ठेकुआ कहा जाता है. इसके साथ ही सूर्य देव को चढ़ाने के लिए कार्तिक मास में आने वाले सभी नए फल जैसे, गन्ना, शरीफा, अदरक, मूंगफली, सेव, केला, सकला, जैसे तमाम फलों के साथ ठेकुआ के प्रसाद से सूपा सजाया जाता है.
गन्ने से बनाया जाता है मंडप
शाम से पहले व्रती अपने पूरे परिवार के साथ छठ घाट के लिए पैदल प्रस्थान करती हैं. सूर्यास्त से पहले वहां पहुंचकर पहले से चिन्हांकित स्थान पर गन्ने से मंडप बनाया जाता है और प्रसाद से सजे सूपे को मंडप के नीचे रखकर पूजा शरू की जाती है. जैसे ही सूर्य देव अस्त होने वाले होते हैं, उसी समय नदी या तालाब किनारे पर जाकर व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं. बिना सिलाई का सिर एक वस्त्र ही व्रती धारण करते हैं और पानी में डुबकी लगाने के बाद गीले शरीर में ही अर्घ्य देना होता है. इस दौरान परिवारवाले पानी और दूध से व्रती को अर्घ्य दिलाते हैं. अर्घ्य देने के बाद व्रती पूरी रात गन्ने से बनाए उसी मंडप के सामने पूरी रात बिना सोए बैठकर गुजारती हैं और इंतजार करते हैं सूर्य देव के उदय होने का.
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चौथा दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य
व्रत का चौथा दिन, सुबह जैसे ही सूर्योदय होने वाला होता है, व्रती नदी के घाट में डुबकी लगा कर सूर्य देव के उदय होने की प्रतीक्षा करती हैं और सूर्योदय होते ही उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य गन्ने के मंडप के नीचे पूजन हवन कर प्रसाद वितरण किया जाता है. यहां पर छठ व्रत सम्पन्न होता है और छठ घाट से वापस आने के बाद पांचवें दिन दोपहर तक व्रती अपने व्रत का पालन करती हैं.
आयोजकों ने की विशेष व्यवस्था
लगभग सभी छठ घाटों में व्रतियों के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं, ताकि ठंड या अन्य किसी चीज से किसी भी व्रती को कोई तकलीफ ना हो. अंबिकापुर के सबसे बड़े छठ घाट, शंकर घाट में महामाया सेवा समिति के द्वारा भी हर वर्ष विशेष व्यवस्था की जाती है, लेकिन इस बार एसओपी के पालन के कारण व्यवस्था नहीं की गई है, सिर्फ छठ घाटों में साफ सफाई करा दी गई है.