सरगुजा : छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज की ओर से डिलिस्टिंग की आवाज बुलंद की जा रही है. लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि डिलिस्टिंग भाजपा का चुनावी एजेंडा है. डिलिस्टिंग के जरिये भाजपा मतों का ध्रुवीकरण करना चाह रही है. हिन्दू मतदाताओं की संख्या बढ़ाकर, हिंदुत्व के नाम पर सत्ता में आना चाहती है. तो क्या वाकई डिलिस्टिंग के जरिये धर्मांतरण रुकेगा. क्या वाकई हिंदुओं की आबादी इससे बढ़ेगी. आइये समझते हैं कुछ जानकारों की राय से.
''बीजेपी का है एजेंडा'': कांग्रेस प्रवक्ता अनूप मेहता के मुताबिक "जहां तक छत्तीसगढ़ में मचे बवाल की बात है. इसके पीछे पूरी की पूरी सोच राजनैतिक है. भारतीय जनता पार्टी इस सोच के पीछे है. वो अलग-अलग भू भाग में वोट के ध्रुवीकरण का प्रयास करती है. क्योंकि इस हिस्से में आदिवासी समाज में धर्मांतरण की संख्या बहुत ज्यादा है. धर्मान्तरण के बाद आदिवासियों का एक वर्ग ईसाई बन चुका है. यहां पर वो पोलराइजेशन देख रही है कि, किसी तरीके से क्रिश्चियनटी में जो धर्मान्तरण है. उसको रोक जाए और बचे हुए आदिवासी समाज को हिन्दू प्रभाव में लाकर के उनको अपने एक उपजाऊ वोट बैंक के रूप में तैयार किया जाए".
डिलिस्टिंग के पक्ष में केंद्र : अधिवक्ता दिनेश सोनी कहते हैं "केंद्र सरकार चाहती है कि डिलिस्टिंग हो, धर्मान्तरण रुके और हिन्दू वोट बैंक बढ़े. विगत 2 तीन सालों से आप देख रहे होंगे कि, जहां भाजपा की सरकार है. वहां पर धर्मान्तरण रोकने की पूरी प्रक्रिया हो रही है. लेकिन जहां कांग्रेस की गवर्मेंट है. वहां नहीं चाह रहे हैं कि, धर्मान्तरण रुके. यह एक राजनैतिक मुद्दा बनाकर डिलिस्टिंग ला रहे हैं."
हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव : दिनेश सोनी कहते हैं कि "आज देश के लिये हिंदुत्व बहुत ज्यादा आवश्यक है. हिन्दुत्व को इस बार 23 और 24 के चुनाव में मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा जायेगा. आप देखेंगे हर जगह हिंदुत्व की बात हो रही है. पहले कभी भी रामनवमी या हनुमान जयंती में इतनी विशाल रैली नहीं निकलती थी. लेकिन अब यह हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिये किया जा रहा है. और इसे चुनाव में मुद्दा बनाया जाएगा."
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लंबी लड़ाई है डीलिस्टिंग : जनजातीय सुरक्षा मंच के केंद्र प्रान्त जशपुर के सह संयोजक इंदर भगत कहते हैं कि " डिलिस्टिंग आदिवासी समाज के हक और अधिकार का विषय है. यह विषय अभी से नही बल्कि 1967 से लोहरदगा बिहार के सांसद कार्तिक उरांव ने उठाया था. उन्होंने ही इस पर काफी काम किया. जेपीसी का गठन हुआ. हालांकि उस समय सरकार की मंशा डिलिस्टिंग के कानून को पास करने की नहीं थी. हम लोग 2006 में जनजातीय सुरक्षा मंच का गठन कर तब से इस विषय पर काम कर रहे हैं. जिन लोगों ने मुस्लिम और ईसाई धर्म अपनाया है. उनकी संख्या 18 फीसदी है. ये सभी सरकारी सुविधा, छात्रवृत्ति और अनुदान का उपभोग कर रहे हैं. वहीं मूल रूप से बचे 82% आदिवासी समाज के 20% लोगों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है. इसलिए डिलिस्टिंग जरुरी है.''