सरगुजा : अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन संपन्न हो चुका है. राम मंदिर निर्माण के लिए कई लोगों ने अपना योगदान देने के साथ ही लंबा संघर्ष भी किया है. विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर देशभर से लाखों कारसेवक अयोध्या के लिए निकल पड़े थे. उस संघर्ष के साक्षी अम्बिकापुर के बसंत गुप्ता से ETV भारत ने खास बातचीत की. इस दौरान हमने यह जानने की कोशिश की कि, कारसेवक के तौर पर उनका अनुभव कैसा रहा.
ETV भारत से की गई खास बातचीत में बसंत गुप्ता ने बताया कि 9 नवम्बर 1989 को अयोध्या में श्री राम मंदिर के लिए हुई कारसेवा में लाखों कार सेवक देशभर से पहुंचे थे. इस दौरान अम्बिकापुर से कई अलग-अलग जत्थे निकले थे, कुछ को रास्ते में पकड़ लिया गया, तो कुछ को अयोध्या पहुंच कर रुकना पड़ा. अम्बिकापुर से गए कार सेवकों में एक बुजुर्ग महिला भी थीं, जिनका मनोबल पूरी टीम को संबल प्रदान करता रहा.
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'वो खुशनसीब हैं'
बसंत गुप्ता बताते हैं कि जब वे लोग अम्बिकापुर से उत्तर प्रदेश पहुंचे तो, मुख्य मार्ग पर पुलिस का पहरा था. कई जगह तो विवाह का बहाना बना कर वे निकले. कुछ जगहों पर ग्रामीणों ने रास्ते बनाए और कार सेवकों का मार्ग प्रसस्त किया. प्रतापगढ़ पहुंचने पर कार सेवक शौच के लिए स्थान तलाश रहे थे, तब स्थानीय लोगों ने अपना घर खोल दिया और अजनबियों को घर में सम्मान पूर्वक भोजन कराने के बाद विदा किया. हालांकि अम्बिकापुर से गए कार सेवकों के जत्थे को अयोध्या से 10 किलोमीटर पहले ही पुलिस ने रोक दिया, लेकिन आज जब मंदिर का भूमिपूजन होने जा रहा है तो कार सेवक बेहद प्रसन्न हैं. उनका कहना वो खुशनसीब है जो इस पल को देख रहे हैं.