सरगुजा: प्रदेश सरकार ने अब नगर निगम के महापौर और उनकी परिषद के अधिकारों में वृद्धि कर दी है. बुधवार को प्रदेश के नगरीय निकायों की बैठक के दौरान प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया ने इसकी घोषणा की है. इस घोषणा के बाद अब नगर निगम की महापौर परिषद किसी प्रोजेक्ट के लिए स्वीकृत राशि के बिल, टेंडर होने पर बची हुई शेष राशि का मद परिवर्तन कर उस राशि का उपयोग कर सकते हैं. इसके साथ ही किसी निर्माण कार्य की स्वीकृति के बाद उसका स्थल परिवर्तन भी कर सकते हैं. इस अधिकार के मिलने के बाद नगर निगमों ने राहत की सांस ली है.
दरअसल, गुरुवार को प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया ने नगरीय निकायों की बैठक गुरुवार को ली और इस बैठक में नगरीय निकायों के महापौर और जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए. इस बैठक के दौरान नगरीय प्रशासन मंत्री ने निर्माण कार्यों की समीक्षा की और लंबे समय से चल रही मांग के अनुरूप मंत्री डॉ. डहरिया ने प्रोजेक्ट के निर्माण के दौरान स्वीकृत राशि से बिल, टेंडर जाने पर शेष राशि का मद परिवर्तन करने की अनुमति दी.
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निर्माण कार्य की स्वीकृति के बाद विवाद की स्थिति
अब नगर निगम के महापौर परिषद प्रस्ताव पारित कर बची हुई राशि से अन्य निर्माण कार्य करा सकते हैं. इसके साथ ही नगर निगम को एक और अधिकार दिया गया है, जिसके तहत यदि सड़क, नाली या अन्य निर्माण कार्य की स्वीकृति के बाद उस निर्माण को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है तो महापौर परिषद अपने विवेक से उस निर्माण का स्थल परिवर्तन कर सकते हैं. प्रदेश सरकार ने नगरीय निकायों को दिए गए इस विशेष अधिकार के बाद निगमों में निर्णय लेने की क्षमता में विकास होगा. निगम सरकार के अनुसार मद परिवर्तन की अनुमति नहीं होने के कारण बची हुई शेष की राशि साल तक खाते में पड़ी रहती थी और पैसा होने के बाद भी निगम उसका उपयोग नहीं कर पाता था.
3 करोड़ से अधिक राशि खाते में
निगम सरकार के अनुसार कांग्रेस से पूर्व की सरकार के कार्यकाल के दौरान भी इसी तरह की स्थिति थी और लगभग 17 करोड़ से अधिक की राशि खाते में पड़ी थी. कांग्रेस की सरकार आने के बाद शासन और प्रशासन से अनुमति के बाद उन बची हुई राशियों से अनेकों निर्माण कार्य कराए गए हैं. वर्तमान में भी निगम के पास लगभग 3 करोड़ के लगभग की राशि खाते में पड़ी होगी. जिससे अनेकों निर्माण कार्य कराए जा सकते है. अब तक मद परिवर्तन के लिए निगम सरकारों को लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था व इस कार्य में महीनों लग जाते थे और फाइल टेबल में घूमती रहती थी, लेकिन अब इस निर्णय के बाद निगम आसानी से राशि खर्च कर सकेंगे.