सरगुजा : राज्य निर्माण के पहले से ही छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में आदिवासी नेतृत्व सशक्त रहा है. लरंग साय, प्रेम साय सिंह टेकाम, नंदकुमार साय, महेंद्र कर्मा, राम पुकार सिंह, खेल साय सिंह, रामविचार नेताम, अमरजीत भगत, विष्णु देव साय, गणेश राम भगत, रामसेवक पैकरा जैसे आदिवासी नेता हुए. इनमें से कइयों को मंत्री बनने का मौका मिला. लेकिन मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में आदिवासी समाज हमेशा पिछड़ गया.
आदिवासी एक्सप्रेस का हुआ नुकसान : वरिष्ठ पत्रकार अनंगपाल दीक्षित बताते हैं कि '' एक बार नंद कुमार साय ने आदिवासी एक्सप्रेस चलाने का प्रयास किया था. उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासी विधायकों के साथ दिल्ली में एक बैठक कर ली थी. लेकिन इसके बाद एक बड़े आदिवासी नेता का कद छोटा होने लगा. सत्ता से दूरियां बढ़ने लगी,रामविचार नेताम जब गृह मंत्री थे. तो तेज तर्रार बड़े आदिवासी नेता के रूप उभरकर आये. माना जाने लगा कि अगर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया गया तो भाजपा की ओर से रामविचार नेताम एक बड़ा नाम हो सकता है. लेकिन इनको भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. उपेक्षा का शिकार हुए और इनका कद छोटा करने के हर प्रयास हुये, अपनी विधानसभा से नेताम चुनाव ही हार गये.''
कांग्रेस के 71 में 29 आदिवासी विधायक : 90 सदस्यों की विधानसभा में 71 विधायक कांग्रेस के हैं. जिनमें से 30 विधायक आदिवासी समाज से हैं. जबकि आरक्षित सीट महज 29 हैं. 2 आदिवासी विधायक बीजेपी के पास हैं. इस प्रकार प्रदेश में एसटी आरक्षित सीट तो 29 हैं. लेकिन एसटी विधायक 32 हैं. तीन ऐसे आदिवासी विधायक हैं जो अनारक्षित सीट से चुनाव जीते हैं. इनमें सरगुजा की प्रेमनगर विधानसभा से खेल साय सिंह, कटघोरा से पुरषोत्तम कंवर और महासमुंद जिले की बसना सीट से देवेन्द्र बहादुर सिंह विधायक हैं. सामान्य सीट से जीतने वाले ये तीनों आदिवासी विधायक कांग्रेस के हैं. इसके अतिरिक्त प्रदेश में बीजेपी के 14 विधायकों में से कुल 2 आदिवासी विधायक ननकी राम कंवर और डमरुधर पुजारी हैं.
4 आदिवासी मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष : एक ही समाज के विधायकों की इतनी अधिक संख्या के बाद भी बीजेपी या कांग्रेस दोनों के ही हाईकमान ने कभी भी आदिवासी विधायक को नेतृत्व करने का अवसर नहीं दिया. मंत्री पदों ओर आदिवासी विधायकों को रखकर जरूर सामाजिक संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है. वर्तमान में सरकार में 4 आदिवासी विधायक मंत्री हैं. अमरजीत भगत, कवासी लखमा, अनिला भेड़िया और डॉ. प्रेम साय सिंह. इसके अतिरिक्त कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी आदिवासी समाज से हैं.
कांग्रेस के पक्ष में आदिवासी समाज : मंत्रिमंडल में अक्सर आदिवासी विधायकों को मंत्री और अन्य पदों के माध्यम से अच्छा समन्वय स्थापित करने की कोशिश की गई है. लेकिन सीधा नेतृत्व इनके हाथ में कभी नहीं दिया गया. आदिवासी मंत्री अमरजीत भगत कहते हैं कि ''कांग्रेस ने हमेशा आदिवासियों का हित सोचा है. इसलिए 4 मंत्री हैं. प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी समाज से हैं. कांग्रेस ने आदिवासी समाज को भू कानून में 170 (ख) की ताकत दी है.सीआरपीसी में एट्रो सिटी जैसी धारा दी है. यही सब वजह है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज कांग्रेस के साथ रहता है. बीजेपी ने आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया. उनके बड़े आदिवासी नेता नंद कुमार साय कांग्रेस में आ चुके हैं.'' अमरजीत ने सत्ता में आदिवासियों की बेहतर उपस्थित का बखान तो किया लेकिन आदिवासी मुख्यमंत्री के सवाल पर अमरजीत किनारा कर गये. छत्तीसगढ़ के राजनीतिक भविष्य को देखें तो अमरजीत का इस सवाल से किनारा करना ही उनके लिये बेहतर था.
छत्तीसगढ़ के सीनियर आदिवासी नेताओं के बारे में जानिए
रामपुकार सिंह : रामपुकार सिंह पहली बार वर्ष 1977 में निर्वाचन क्षेत्र पत्थलगांव से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधायक बने. इसके बाद 1980, 1985, 1993 और 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए लगातार चुने गए. छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे 2000 से 2003 तक पहली विधानसभा के सदस्य रहे. 2003, 2008 और 2018 में चुनाव जीते और वर्तमान में विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर हैं.
रामविचार नेताम : राम विचार नेताम पहली बार 1990 में सरगुजा की पाल विधानसभा सीट से विधायक चुने गये. इसके बाद 1998 और 2003 में भी नेताम पाल सीट से विधायक रहे. वर्ष 2008 में नेताम परिसीमन के बाद रामानुजगंज सीट से विधायक चुने गये. इस दौरान वो रमन सिंह मंत्रिमंडल में गृह मंत्री रहे. लेकिन 2013 में आंतरिक कलह कारण नेताम को हार का सामना करना पड़ा. प्रदेश के सत्ता तो बीजेपी की आई लेकिन नेताम का कद घट चुका था.
डॉ. प्रेम साय सिंह टेकाम : सरगुजा राजघराने के सदा प्रिय रहे डॉ प्रेम साय सिंह काफी वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं. मध्यप्रदेश के समय से ही वो मंत्री रहे हैं. 1980 में प्रेम साय सरगुजा की पिलखा विधान सभा से विधायक बने. 1985 में दोबारा विधायक बने लेकिन 1990 में उनको हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1993 में हुए मध्यावधि चुनाव में टेकाम फिर से चुनाव जीत गये. 1998 में भी प्रेम साय विधायक रहे. लेकिन 2003 में यहां प्रेम साय को बीजेपी के रामसेवक पैकरा ने चुनाव हरा दिया. 2008 में पैकरा हारे और टेकाम जीते. 2013 में फिर से टेकाम को हार मिली और पैकरा विधायक बने और 2018 में प्रेम साय एक बार फिर विजयी हुये और मंत्री बने.
नंद कुमार साय : नंद कुमार साय पहली बार 1977 में तपकरा सीट से जनता पार्टी के विधायक चुने गए थे. वह 1980 में बीजेपी की रायगढ़ जिला इकाई के प्रमुख चुने गए. 1985 में तपकरा से विधायक चुने गए. 1989, 1996 और 2004 में रायगढ़ से लोकसभा सदस्य और 2009 और 2010 में राज्यसभा सदस्य चुने गए. साय 2003-05 तक छत्तीसगढ़ बीजेपी अध्यक्ष और इससे पहले 1997 से 2000 तक मध्य प्रदेश बीजेपी प्रमुख रहे. 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के पहले नेता बने. साय 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे.
अमरजीत भगत : छात्र जीवन से राजनीति करने वाले अमरजीत कालेज से निकले तो कोल कर्मचारियों के लिये लड़ना शुरू कर चुके थे. धीरे धीरे वो कांग्रेस में सक्रिय होने लगे. शिक्षित आदिवासी नेता होने का लाभ मिला और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के करीबी हो गये. जब पहली बार उन्हें 2003 में कांग्रेस ने टिकट दी तो अमरजीत भगत सत्ता की सियासत में नया चेहरा थे. लेकिन इसके बाद अमरजीत 2008, 2013, 2018 लगातार चुनाव जीतते गये. बतौर विपक्ष के विधायक वो हमेशा सरकार के खिलाफ मुखर रहे और 2018 में कांग्रेस की सत्ता आने पर उन्हें मंत्री बनाया गया.
Surguja : छत्तीसगढ़ में क्यों कमजोर हुई आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग
छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 32 सीटों पर आदिवासी विधायक हैं. लेकिन फिर भी प्रदेश का मुख्यमंत्री आदिवासी समाज से नहीं बन सका. राज्य निर्माण के बाद कांग्रेस ने पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी के रूप में आदिवासी मुख्यमंत्री दिया. लेकिन उसके बाद अब तक आदिवासी बाहुल्य राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं बना. प्रदेश की 41 सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी आबादी 50% के करीब है. लेकिन पहले 15 वर्ष तक सामान्य वर्ग से और अब पिछड़ा वर्ग से मुख्यमंत्री हैं.
सरगुजा : राज्य निर्माण के पहले से ही छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में आदिवासी नेतृत्व सशक्त रहा है. लरंग साय, प्रेम साय सिंह टेकाम, नंदकुमार साय, महेंद्र कर्मा, राम पुकार सिंह, खेल साय सिंह, रामविचार नेताम, अमरजीत भगत, विष्णु देव साय, गणेश राम भगत, रामसेवक पैकरा जैसे आदिवासी नेता हुए. इनमें से कइयों को मंत्री बनने का मौका मिला. लेकिन मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में आदिवासी समाज हमेशा पिछड़ गया.
आदिवासी एक्सप्रेस का हुआ नुकसान : वरिष्ठ पत्रकार अनंगपाल दीक्षित बताते हैं कि '' एक बार नंद कुमार साय ने आदिवासी एक्सप्रेस चलाने का प्रयास किया था. उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासी विधायकों के साथ दिल्ली में एक बैठक कर ली थी. लेकिन इसके बाद एक बड़े आदिवासी नेता का कद छोटा होने लगा. सत्ता से दूरियां बढ़ने लगी,रामविचार नेताम जब गृह मंत्री थे. तो तेज तर्रार बड़े आदिवासी नेता के रूप उभरकर आये. माना जाने लगा कि अगर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया गया तो भाजपा की ओर से रामविचार नेताम एक बड़ा नाम हो सकता है. लेकिन इनको भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. उपेक्षा का शिकार हुए और इनका कद छोटा करने के हर प्रयास हुये, अपनी विधानसभा से नेताम चुनाव ही हार गये.''
कांग्रेस के 71 में 29 आदिवासी विधायक : 90 सदस्यों की विधानसभा में 71 विधायक कांग्रेस के हैं. जिनमें से 30 विधायक आदिवासी समाज से हैं. जबकि आरक्षित सीट महज 29 हैं. 2 आदिवासी विधायक बीजेपी के पास हैं. इस प्रकार प्रदेश में एसटी आरक्षित सीट तो 29 हैं. लेकिन एसटी विधायक 32 हैं. तीन ऐसे आदिवासी विधायक हैं जो अनारक्षित सीट से चुनाव जीते हैं. इनमें सरगुजा की प्रेमनगर विधानसभा से खेल साय सिंह, कटघोरा से पुरषोत्तम कंवर और महासमुंद जिले की बसना सीट से देवेन्द्र बहादुर सिंह विधायक हैं. सामान्य सीट से जीतने वाले ये तीनों आदिवासी विधायक कांग्रेस के हैं. इसके अतिरिक्त प्रदेश में बीजेपी के 14 विधायकों में से कुल 2 आदिवासी विधायक ननकी राम कंवर और डमरुधर पुजारी हैं.
4 आदिवासी मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष : एक ही समाज के विधायकों की इतनी अधिक संख्या के बाद भी बीजेपी या कांग्रेस दोनों के ही हाईकमान ने कभी भी आदिवासी विधायक को नेतृत्व करने का अवसर नहीं दिया. मंत्री पदों ओर आदिवासी विधायकों को रखकर जरूर सामाजिक संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है. वर्तमान में सरकार में 4 आदिवासी विधायक मंत्री हैं. अमरजीत भगत, कवासी लखमा, अनिला भेड़िया और डॉ. प्रेम साय सिंह. इसके अतिरिक्त कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी आदिवासी समाज से हैं.
कांग्रेस के पक्ष में आदिवासी समाज : मंत्रिमंडल में अक्सर आदिवासी विधायकों को मंत्री और अन्य पदों के माध्यम से अच्छा समन्वय स्थापित करने की कोशिश की गई है. लेकिन सीधा नेतृत्व इनके हाथ में कभी नहीं दिया गया. आदिवासी मंत्री अमरजीत भगत कहते हैं कि ''कांग्रेस ने हमेशा आदिवासियों का हित सोचा है. इसलिए 4 मंत्री हैं. प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी समाज से हैं. कांग्रेस ने आदिवासी समाज को भू कानून में 170 (ख) की ताकत दी है.सीआरपीसी में एट्रो सिटी जैसी धारा दी है. यही सब वजह है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज कांग्रेस के साथ रहता है. बीजेपी ने आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया. उनके बड़े आदिवासी नेता नंद कुमार साय कांग्रेस में आ चुके हैं.'' अमरजीत ने सत्ता में आदिवासियों की बेहतर उपस्थित का बखान तो किया लेकिन आदिवासी मुख्यमंत्री के सवाल पर अमरजीत किनारा कर गये. छत्तीसगढ़ के राजनीतिक भविष्य को देखें तो अमरजीत का इस सवाल से किनारा करना ही उनके लिये बेहतर था.
छत्तीसगढ़ के सीनियर आदिवासी नेताओं के बारे में जानिए
रामपुकार सिंह : रामपुकार सिंह पहली बार वर्ष 1977 में निर्वाचन क्षेत्र पत्थलगांव से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधायक बने. इसके बाद 1980, 1985, 1993 और 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए लगातार चुने गए. छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे 2000 से 2003 तक पहली विधानसभा के सदस्य रहे. 2003, 2008 और 2018 में चुनाव जीते और वर्तमान में विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर हैं.
रामविचार नेताम : राम विचार नेताम पहली बार 1990 में सरगुजा की पाल विधानसभा सीट से विधायक चुने गये. इसके बाद 1998 और 2003 में भी नेताम पाल सीट से विधायक रहे. वर्ष 2008 में नेताम परिसीमन के बाद रामानुजगंज सीट से विधायक चुने गये. इस दौरान वो रमन सिंह मंत्रिमंडल में गृह मंत्री रहे. लेकिन 2013 में आंतरिक कलह कारण नेताम को हार का सामना करना पड़ा. प्रदेश के सत्ता तो बीजेपी की आई लेकिन नेताम का कद घट चुका था.
डॉ. प्रेम साय सिंह टेकाम : सरगुजा राजघराने के सदा प्रिय रहे डॉ प्रेम साय सिंह काफी वरिष्ठ आदिवासी नेता हैं. मध्यप्रदेश के समय से ही वो मंत्री रहे हैं. 1980 में प्रेम साय सरगुजा की पिलखा विधान सभा से विधायक बने. 1985 में दोबारा विधायक बने लेकिन 1990 में उनको हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1993 में हुए मध्यावधि चुनाव में टेकाम फिर से चुनाव जीत गये. 1998 में भी प्रेम साय विधायक रहे. लेकिन 2003 में यहां प्रेम साय को बीजेपी के रामसेवक पैकरा ने चुनाव हरा दिया. 2008 में पैकरा हारे और टेकाम जीते. 2013 में फिर से टेकाम को हार मिली और पैकरा विधायक बने और 2018 में प्रेम साय एक बार फिर विजयी हुये और मंत्री बने.
नंद कुमार साय : नंद कुमार साय पहली बार 1977 में तपकरा सीट से जनता पार्टी के विधायक चुने गए थे. वह 1980 में बीजेपी की रायगढ़ जिला इकाई के प्रमुख चुने गए. 1985 में तपकरा से विधायक चुने गए. 1989, 1996 और 2004 में रायगढ़ से लोकसभा सदस्य और 2009 और 2010 में राज्यसभा सदस्य चुने गए. साय 2003-05 तक छत्तीसगढ़ बीजेपी अध्यक्ष और इससे पहले 1997 से 2000 तक मध्य प्रदेश बीजेपी प्रमुख रहे. 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के पहले नेता बने. साय 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे.
अमरजीत भगत : छात्र जीवन से राजनीति करने वाले अमरजीत कालेज से निकले तो कोल कर्मचारियों के लिये लड़ना शुरू कर चुके थे. धीरे धीरे वो कांग्रेस में सक्रिय होने लगे. शिक्षित आदिवासी नेता होने का लाभ मिला और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के करीबी हो गये. जब पहली बार उन्हें 2003 में कांग्रेस ने टिकट दी तो अमरजीत भगत सत्ता की सियासत में नया चेहरा थे. लेकिन इसके बाद अमरजीत 2008, 2013, 2018 लगातार चुनाव जीतते गये. बतौर विपक्ष के विधायक वो हमेशा सरकार के खिलाफ मुखर रहे और 2018 में कांग्रेस की सत्ता आने पर उन्हें मंत्री बनाया गया.