डोंगरगांव/राजनांदगांव: देवों के देव महादेव की विशेष कृपा तो हर रोज अपने भक्तों पर रहती है. लेकिन सावन के महीने में भगवान शिव की आराधना अतिउत्तम और विशेष फलदायी होती है. सावन के दूसरे सोमवार पर ETV भारत के साथ डोंगरगांव के देवबावली में शिव और शक्ति के दर्शन कीजिए.
देव और बावली से पड़ा नाम
जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, देव बावली यानी देवों के देव महादेव के विराजमान होने के चलते यह स्थान देव भूमि तो है ही. साथ ही यहां कपिलधारा भी है. जहां से निकलती धारा इस बात का एहसास दिलाती है मानो वह शिव की जटाओं से निकल रही हो. इसके साथ ही यहां बावली यानी कुआं भी स्थापित है. जिसके कारण यह स्थान 'देवबावली' के रूप में प्रचलित हुआ. कोरोना महामारी से पहले तक कांवड़िये दूर-दूर से आकर यहां जल चढ़ाते थे. या फिर बावली के जल से महादेव का जलाभिषेक करते थे, लेकिन इस बार कोरोना महामारी ने भक्तों को भगवान से दूर कर दिया है. लेकिन फिर भी सावन के दिनों में भक्त अपने आप को शिव और प्रकृति के इस अनोखे संगम से दूर नहीं कर पाते हैं और खिंचे चले आते हैं. यहां प्राचीन शिवलिंग के साथ, अर्धनारीश्वर की प्रतिमा और अन्य देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित है. जहां देवी और शिव भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने की अर्जी लगाते हैं.
प्रकृति का है अद्भुत नजारा
'देवबावली' जहां प्रकृति ने अपनी अनुपम छटा बिखेर रखी है. यह स्थान जितना मन को प्रफुल्लित करने वाला है. वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी परिपूर्ण हैं. यहां खाने के लिए फल, पीने के लिए पानी, रहने के लिए गुफा, बीमारी के लिए औषधि और ध्यान व मन को शांत रखने के लिए देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित हैं. यहां का मनोरम दृश्य हर वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करता है. इस संबंध में वहां के स्थानीय निवासी शिक्षक नंदलाल सार्वा ने बताया कि यहां एक झरना है जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है. इस झरने की आवाज भक्तिमय माहौल में मंत्रमुग्ध करने वाली होती है. जिसे प्रतिकात्मक रूप से मां गंगा की धारा बताया गया है. वहीं पास ही गढ़माता मैया के नाम पर दो घोड़े और त्रिशूल स्थापित है. इसके पीछे कपिलधारा निकलती है. जिसे देखने से ऐसा लगता है मानो ये धाराएं शिव की जटाओं से निकल रही हो. इसी झरने से कुछ दूर प्राचीन शिव मंदिर है. जहां भक्त जल, फूल और बिल्वपत्र चढ़ाकर अपनी मनोकामना की अर्जी लगाते हैं.
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औषधि और अद्भुत वृक्ष
इस संबंध में वैद्य महेश गंजीर ने बताया कि यहां बहुत से दुर्लभ जड़ी बूटी और औषधि है. जो चर्मरोग, एनीमिया की बीमारी को दूर करने की रामबाण दवा है. वहीं ताकत के लिए काली मूसली, जोड़ों के दर्द को दूर करने सहित बहुत सी दुर्लभ जड़ीबूटी भी यहां मिलती है. वहीं एक विशेष वृक्ष भी है. जिसे प्रभुचरण के वृक्ष के नाम से जाना जाता है. जिसका फल प्रभु के दाएं और बाएं पैर के समान दिखाई देता है. और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा के रूप में इसका पूजन किया जाता है.
ऐसे दर्शन करने पहुंचे
देव बावली जिला मुख्यालय राजनांदगांव से करीब 46 किलोमीटर और डोंगरगांव तहसील मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह क्षेत्र ग्राम पंचायत मासुलकसा विकासखंड के ग्राम बावली के अंतर्गत आता है. यहां पहुंचने के लिए डोंगरगांव से खुज्जी होते हुए उमरवाही के रास्ते देवबवाली पहुंचा जा सकता है. वहीं दूसरा रास्ता ग्राम खुज्जी से करमरी होते हुए पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता ज्यादा उचित है. क्योंकि इस रास्ते में मटिया मोतीनाला बांध पड़ता है. जहां से बांध का अद्भूत नजारा देखा जा सकता है. वहीं इस दृश्य को देखने के लिए वाच टावर भी बनाया गया है. दूर तक फैला पानी मन को प्रफुल्लित करता है.
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पर्यटन की अपार संभावनाएं
देवबावली के संबंध में प्राचार्य शंकरलाल खोब्रागढ़े ने बताया कि यह स्थान आनंद वन देवबावली के नाम से प्रख्यात है. और यह पर्यटन के दृष्टि से काफी महत्व रखता है. यहां दूर-दूर से भगवान भोलेनाथ का दर्शन और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आते हैं. यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. यहां शिव और शक्ति के दर्शन करने के साथ ही लोग पिकनिक मनाने भी आते हैं. डोंगरगांव से पिकनिक मनाने आए जैन परिवार के संदीप जैन ने बताया कि यह जगह सभी प्रकार से परिपूर्ण है. प्रकृति का अद्भुत नजारा है. सावन के पावन अवसर पर उनकी शरण में आकर पूरा परिवार धन्य महसूस कर रहा है.