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नदी पार कर स्कूल जाने को विवश हैं तोड़के गांव के बच्चे, बरसात में चार माह होती है ज्यादा परेशानी

राजनांदगांव, कांकेर व महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिलों के बॉर्डर पर बसे तोड़के गांव के लोग वहां नदी पर सालों से पुल बनाने की मांग कर रहे हैं. पुल नहीं होने के कारण बच्चों को नदी पार कर स्कूल जाने की मजबूरी है, जबकि बरसात में चार महीने लोग जान जोखिम में डालकर दैनिक उपयोग की सामग्री खरीदने जाने को मजबूर हैं.

children going to school across the river
नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे
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Published : Sep 10, 2021, 2:06 PM IST

राजनादगांव : राजनांदगांव, कांकेर व महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिलों के बॉर्डर (border) पर बसे तोड़के गांव के बच्चे नदी पार कर स्कूल जाने विवश हैं. पालक भी बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें 13 किलोमीटर दूर स्कूल भेजते हैं. जब तक उनके बच्चे सकुशल घर लौट नहीं जाते तबतक चिंता में डूबे रहते हैं. इसके बावजूद शासन-प्रशासन को बच्चों और पालकों का दर्द नहीं दिख रहा है. वहीं जिला प्रशासन (district administration) इस मामले में जांच करने की बात कह रहा है.

नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे

ग्रामीणों ने पुल निर्माण के लिए कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई है, लेकिन ग्रामीणों की सुनने वाला कोई नहीं है. लॉक डाउन के बाद स्कूल खुलने पर गांव के करीब 2 दर्जन बच्चे नदी पार करके नवागांव और औंधी के स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. गांव के ग्राम पटेल सुकलुराम हलामी, दरेश कुमार आर्य, हरिचंद बढ़ई, मनीराम वड्डे, मनकुराम, मनोहर लाल, रामसिंग दुग्गा, देवलू राम दुग्गा और अनित राम पोटाई समेत अन्य का कहना है कि बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्हें स्कूल भेजना जरूरी है. कोई अनहोनी न हो इसलिए वह अपनी मौजूदगी में ही बच्चों को नदी पार कराते हैं. इस बार कम बारिश के चलते नदी में पानी कम है तो बच्चे खुद से भी पार हो जाते हैं.

फिर भी जब-तक बच्चे स्कूल से नहीं लौटते तब तक घरों में बच्चों की चिंता में परिजन डूबे रहते हैं. नवम कक्षा की छात्रा पूजा आर्य ने बताया कि गांव से लगी नदी को पार करने में काफी डर लगता है. पढ़ाई के कारण परिजनों की मदद से स्कूल जा रहे हैं. अभी नदी में कम पानी है तो जैसे-तैसे नदी पार कर लेते हैं, लेकिन ज्यादा बहाव हो तो स्कूल नहीं जाते. सरकार को शीघ्र पुल का निर्माण कराना चाहिए.

वहीं छात्र नंदकुमार आर्य ने बताया कि स्कूल जाना जरूरी है, लेकिन नदी पार करने में डर लगता है. घर पहुंचने तक माता-पिता भी डरे रहते हैं. सरकार को हमारी समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए. तोड़के गांव पहुंचने पर अन्य छात्र-छात्राओं करिश्मा, नेहा, अजय, सोहन, महेंद्र और अंजली से मुलाकात हुई. उन सब ने बताया कि गांव के लोग सरपंच और सचिव से कई साल से नदी पर पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं. लेकिन अब तक पुल नहीं बना. अगर भविष्य में कोई अनहोनी होती है तो इसके लिए पूरी तरह शासन-प्रशासन जिम्मेदार होगा.


जैसे ही बरसात का मौसम आता है कि चार माह तक तोड़के, नैन गुड़ा, मेटातोड़के सहित कांकेर जिले के सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर नदी पार कर औंधी के साप्ताहिक बाजार या दैनिक उपयोग की सामग्री खरीदने जाने को मजबूर हैं. लोगों को खाद्य सामग्री लेने के लिए चार माह सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है. इधर, इस मामले में सरपंच का कहना है कि तोड़के गांव से लगी नदी में पुल निर्माण के लिए प्रस्ताव बना कर भेज दिया गया है. जैसे ही स्वीकृति मिलेगी, पुल का निर्माण शुरू करा दिया जाएगा.

राजनादगांव : राजनांदगांव, कांकेर व महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिलों के बॉर्डर (border) पर बसे तोड़के गांव के बच्चे नदी पार कर स्कूल जाने विवश हैं. पालक भी बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें 13 किलोमीटर दूर स्कूल भेजते हैं. जब तक उनके बच्चे सकुशल घर लौट नहीं जाते तबतक चिंता में डूबे रहते हैं. इसके बावजूद शासन-प्रशासन को बच्चों और पालकों का दर्द नहीं दिख रहा है. वहीं जिला प्रशासन (district administration) इस मामले में जांच करने की बात कह रहा है.

नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे

ग्रामीणों ने पुल निर्माण के लिए कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई है, लेकिन ग्रामीणों की सुनने वाला कोई नहीं है. लॉक डाउन के बाद स्कूल खुलने पर गांव के करीब 2 दर्जन बच्चे नदी पार करके नवागांव और औंधी के स्कूलों में पढ़ने जाते हैं. गांव के ग्राम पटेल सुकलुराम हलामी, दरेश कुमार आर्य, हरिचंद बढ़ई, मनीराम वड्डे, मनकुराम, मनोहर लाल, रामसिंग दुग्गा, देवलू राम दुग्गा और अनित राम पोटाई समेत अन्य का कहना है कि बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्हें स्कूल भेजना जरूरी है. कोई अनहोनी न हो इसलिए वह अपनी मौजूदगी में ही बच्चों को नदी पार कराते हैं. इस बार कम बारिश के चलते नदी में पानी कम है तो बच्चे खुद से भी पार हो जाते हैं.

फिर भी जब-तक बच्चे स्कूल से नहीं लौटते तब तक घरों में बच्चों की चिंता में परिजन डूबे रहते हैं. नवम कक्षा की छात्रा पूजा आर्य ने बताया कि गांव से लगी नदी को पार करने में काफी डर लगता है. पढ़ाई के कारण परिजनों की मदद से स्कूल जा रहे हैं. अभी नदी में कम पानी है तो जैसे-तैसे नदी पार कर लेते हैं, लेकिन ज्यादा बहाव हो तो स्कूल नहीं जाते. सरकार को शीघ्र पुल का निर्माण कराना चाहिए.

वहीं छात्र नंदकुमार आर्य ने बताया कि स्कूल जाना जरूरी है, लेकिन नदी पार करने में डर लगता है. घर पहुंचने तक माता-पिता भी डरे रहते हैं. सरकार को हमारी समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए. तोड़के गांव पहुंचने पर अन्य छात्र-छात्राओं करिश्मा, नेहा, अजय, सोहन, महेंद्र और अंजली से मुलाकात हुई. उन सब ने बताया कि गांव के लोग सरपंच और सचिव से कई साल से नदी पर पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं. लेकिन अब तक पुल नहीं बना. अगर भविष्य में कोई अनहोनी होती है तो इसके लिए पूरी तरह शासन-प्रशासन जिम्मेदार होगा.


जैसे ही बरसात का मौसम आता है कि चार माह तक तोड़के, नैन गुड़ा, मेटातोड़के सहित कांकेर जिले के सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर नदी पार कर औंधी के साप्ताहिक बाजार या दैनिक उपयोग की सामग्री खरीदने जाने को मजबूर हैं. लोगों को खाद्य सामग्री लेने के लिए चार माह सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है. इधर, इस मामले में सरपंच का कहना है कि तोड़के गांव से लगी नदी में पुल निर्माण के लिए प्रस्ताव बना कर भेज दिया गया है. जैसे ही स्वीकृति मिलेगी, पुल का निर्माण शुरू करा दिया जाएगा.

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