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Khujji Langda Mango: खुज्जी के लंगड़ा आम की डिमांड विदेशों में भी, नवाबों की देन यहां का बगीचा - राजनांदगांव के राजा खुज्जी का लंगड़ा आम

राजनांदगांव के राजा खुज्जी का लंगड़ा आम की विदेशों में काफी डिमांड है. खुज्जी में आम के बगीचे को खुज्जी के नवाब ने बनवाया था. खुज्जी के लंगड़ा आम के बारे में अधिक जानकारी के लिए आगे पढ़ें...

khujji mango
खुज्जी का आम
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Published : Jun 9, 2023, 2:19 PM IST

खुज्जी का लंगड़ा आम

राजनांदगांव: खुज्जी का लंगड़ा आम अपने स्वाद के लिए पहचाना जाता है. इस आम की डिमांड काफी ज्यादा होती है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इस आम की काफी डिमांड है. जिसने भी इस आम का स्वाद चखा है वो इसकी तारीफ करते नहीं थकता. राजनांदगांव जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बसा छोटा सा गांव खुज्जी को लोग राजा खुज्जी भी कहते हैं. ये गांव लंगड़ा आम के लिए विदेशों में भी जाना जाता है. लोग खुज्जी को लंगड़ा आम के कारण जानते हैं.

खुज्जी के लंगड़ा आम का इतिहास: खुज्जी का आम बगीचा तकरीबन 150 से 200 साल पुराना है. ये बगीचा रियासत कालीन है. खुज्जी आम बगीचा से जुड़े ठेकेदारों ने बताया है कि यहां तकरीबन 500 से अधिक पेड़ थे. 20 एकड़ से अधिक हिस्से में केवल आम की खेती होती थी. लेकिन धीरे-धीरे यहां पेड़ों की संख्या कम होती चली गई. अब इस बगीचे में महज 107 पेड़ ही बचे हैं. इस बगीचे में लंगड़ा आम के आलावा कई तरह के रसीले आमों की खेती की जाती है. इस बगीचे के रसीले आम दूर दूर तक मशहूर हैं.

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लीज पर लिए जाते हैं आम बगीचे: खुज्जी के नवाब ने खुज्जी का ये बगीचा जमींदारी प्रथा के दौर में लगवाया था. यहां तकरीबन 20 एकड़ से अधिक में फलने वाला आम हर सीजन में भीनी खुशबू बिखेरता है. खुज्जी के आम के बगीचे को ठेकेदार लीज पर लेते हैं. इसके लिए ठेकेदार बगीचे के मालिक को मोटी रकम भी चुकाते हैं. यही कारण है कि यहां के आम अधिक कीमत पर बिकते हैं. कई लोग तो आम पकने से पहले कच्चा ही खरीद लेते हैं.

क्या कहते हैं खुज्जीवासी: खुज्जी के लोगों की मानें तो ये आम कई तरह की बीमारियों से भी दूर रखता है. यही कारण है कि लोग हर दिन खाने के साथ इस आम का सेवन करते हैं. इतना ही नहीं लोग अपने रिश्तेदारों को भी ये आम भेजते हैं.

अधिक डिमांड के कारण नहीं हो पाती है पूर्ति: खुज्जी के आम स्वाद के कारण मार्केट में आते ही बिक जाता है. वहीं, इस आम की डिमांड पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी है. दुबई जैसे देशों में इसकी सप्लाई होती है. यही कारण है कि अधिक मांग के कारण इसकी पूर्ति नहीं हो पाती है. कभी-कभी मौसम की मार के कारण आम की फसल को भी नुकसान पहुंचता है. हालांकि कुछ सालों से आम का उत्पादन घटने लगा है.

खुज्जी का लंगड़ा आम

राजनांदगांव: खुज्जी का लंगड़ा आम अपने स्वाद के लिए पहचाना जाता है. इस आम की डिमांड काफी ज्यादा होती है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इस आम की काफी डिमांड है. जिसने भी इस आम का स्वाद चखा है वो इसकी तारीफ करते नहीं थकता. राजनांदगांव जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बसा छोटा सा गांव खुज्जी को लोग राजा खुज्जी भी कहते हैं. ये गांव लंगड़ा आम के लिए विदेशों में भी जाना जाता है. लोग खुज्जी को लंगड़ा आम के कारण जानते हैं.

खुज्जी के लंगड़ा आम का इतिहास: खुज्जी का आम बगीचा तकरीबन 150 से 200 साल पुराना है. ये बगीचा रियासत कालीन है. खुज्जी आम बगीचा से जुड़े ठेकेदारों ने बताया है कि यहां तकरीबन 500 से अधिक पेड़ थे. 20 एकड़ से अधिक हिस्से में केवल आम की खेती होती थी. लेकिन धीरे-धीरे यहां पेड़ों की संख्या कम होती चली गई. अब इस बगीचे में महज 107 पेड़ ही बचे हैं. इस बगीचे में लंगड़ा आम के आलावा कई तरह के रसीले आमों की खेती की जाती है. इस बगीचे के रसीले आम दूर दूर तक मशहूर हैं.

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लीज पर लिए जाते हैं आम बगीचे: खुज्जी के नवाब ने खुज्जी का ये बगीचा जमींदारी प्रथा के दौर में लगवाया था. यहां तकरीबन 20 एकड़ से अधिक में फलने वाला आम हर सीजन में भीनी खुशबू बिखेरता है. खुज्जी के आम के बगीचे को ठेकेदार लीज पर लेते हैं. इसके लिए ठेकेदार बगीचे के मालिक को मोटी रकम भी चुकाते हैं. यही कारण है कि यहां के आम अधिक कीमत पर बिकते हैं. कई लोग तो आम पकने से पहले कच्चा ही खरीद लेते हैं.

क्या कहते हैं खुज्जीवासी: खुज्जी के लोगों की मानें तो ये आम कई तरह की बीमारियों से भी दूर रखता है. यही कारण है कि लोग हर दिन खाने के साथ इस आम का सेवन करते हैं. इतना ही नहीं लोग अपने रिश्तेदारों को भी ये आम भेजते हैं.

अधिक डिमांड के कारण नहीं हो पाती है पूर्ति: खुज्जी के आम स्वाद के कारण मार्केट में आते ही बिक जाता है. वहीं, इस आम की डिमांड पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी है. दुबई जैसे देशों में इसकी सप्लाई होती है. यही कारण है कि अधिक मांग के कारण इसकी पूर्ति नहीं हो पाती है. कभी-कभी मौसम की मार के कारण आम की फसल को भी नुकसान पहुंचता है. हालांकि कुछ सालों से आम का उत्पादन घटने लगा है.

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