राजनांदगांव : उदास चेहरा, इंतजार में डूबी आंखें और इंसाफ की उम्मीद. नक्सलियों के सताए आदिवासी परिवारों की किस्मत में शायद यही लिख दिया गया है. 'लाल आतंक' का दामन छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ने वाले नक्सलियों को तो सरकारी योजनाओं के हिसाब से सुविधाएं मिल जाती हैं लेकिन नक्सलियों के सताए परिवारों को आश्वासन और आंसू के सिवाय कुछ हाथ नहीं आता है. नक्सल हिंसा से प्रभावित परिवार के सदस्य आज भी सरकारी नौकरी और सुरक्षा के लिए सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटने को मजबूर हैं.
नक्सल हिंसा से प्रभावित लोगों का कहना है कि 'राज्य सरकार नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने पर तो सरकार सुविधा मुहैया करा रही है, इन नक्सलियों ने जिनके परिवार का सब कुछ छीन लिया, रिश्तेदारों को मौत के घाट उतार दिया और जिनकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी उनकी मदद के लिए पल भर भी नहीं सोचा.
किसी ने पिता को या तो किसी ने अपना बेटा और इसके बाद भी अब परिवार के पास कोई सहारा नहीं बचा है उन परिवारों की ओर राज्य शासन ध्यान नहीं दे रही है जबकि राज्य शासन को नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी दी जानी थी.
कलेक्टर दर पर रखा गया
बता दें कि नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों को चतुर्थ वर्ग श्रेणी में सरकारी नौकरी दी जानी थी, लेकिन राज्य शासन ने प्रभावित परिवार के सदस्यों को केवल कलेक्टर दर पर ही नौकरी में रखा, वहीं इसके बाद आदिवासी छात्रावासों में आकस्मिक निधि के तहत उन्हें स्थाई नौकरी दी है. इस बात को लेकर के नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों में काफी आक्रोश है.
मुआवजा राशि में भी बंदरबांट
नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों को जो मुआवजा राशि दी जानी चाहिए थी, वह भी अब तक नहीं दी गई है. वहीं कुछ सदस्यों को मुआवजा के तौर पर जो राशि मिलनी थी, वह भी उन्हें पूरी नहीं मिली है. किसी सदस्य को एक लाख रुपये, तो किसी को दो लाख रुपये दिए गए हैं.
- राजनांदगांव जिले के 14 नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के लोगों ने हाईकोर्ट में राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के सही क्रियान्वयन नहीं होने को लेकर याचिका दायर की है. हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार लिया है और 14 अक्टूबर के बाद इस मामले में लगातार सुनवाई की जाएगी.
- एक ओर तो सरकारें सरेंडर करने वाले नक्सलियों को तो तमाम सुविधाएं देती हैं, वहीं ऐसे परिवारों को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया जाता, जिन्होंने नक्सल हिंसा में अपना सब कुछ गंवा दिया. अब देखना यह होगा कि कब सिस्टम की नींद टूटेगी और कब लाल आतंक के कहर में अपनी खुशियां जला चुके इन परिवारों को सरकारी मरहम नसीब होगा.
- इस मामले में एएसपी यूबीएस चौहान का का कहना है कि नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों कि जिला प्रशासन के समक्ष गुहार लगाने की जानकारी मिली है हालांकि अब तक पुलिस विभाग के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है. उन्होंने कहा कि नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों का आवेदन अगर विभाग के पास आता है तो उसका तुरंत निराकरण किया जाएगा.