राजनांदगांव: धर्म, आस्था और प्रेम की नगरी कहे जाने वाले डोंगरगढ़ में विराजी हैं मां बम्लेश्वरी. मां बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास करीब 22 सौ साल पुराना है. लाखों लोगों की आस्था के केंद्र मां बम्लेश्वरी मंदिर डोंगरगढ़ में यूं तो साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन केवल चैत्र और क्वार पक्ष के नवरात्र में तकरीबन 10 लाख लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं.
धर्मनगरी डोंगरगढ़ में जमीन से करीब 2000 फीट की ऊंचाई पर मां बम्लेश्वरी विराजी हैं. मां बम्लेश्वरी के दर्शन के लिए 50 फीसदी भक्त पैदल आते हैं. वे एक हजार सीढ़ियां चढ़कर मां के दर्शन करते हैं. छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटक स्थलों में भी इस स्थान का अपना अलग महत्व है.
माता की एक झलक पाने के लिए देश-विदेश सहित राज्य के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं. खासतौर पर नवरात्रि में पद यात्रियों का मेला लग जाता है, जो नंगे पांव घर से निकल कर 2000 फीट ऊपर पहाड़ी पर बसी मां बम्लेश्वरी के मंदिर पर जाकर माथा टेकते हैं. आस्था पर उम्र का भी कोई असर नहीं होता. बच्चे, बूढ़े से लेकर जवान पूरे जोश के साथ मां के मंदिरों की सीढ़ियां चढ़ते हैं.
ऐसा है मां बमलेश्वरी मंदिर का इतिहास
- छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ ब्लॉक में स्थित मां बमलेश्वरी मंदिर का इतिहास तकरीबन 22 सौ साल पुराना है. (क्या कहते हैं पुजारी जानिए)
- इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है. लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था, तब डोंगरगढ़ को कामाख्या नगरी के नाम से जाना जाता था. वे निसंतान थे संतान की कामना को लेकर के उन्होंने भगवान शिव और मां दुर्गा की उपासना की, जिसके फलस्वरूप उन्हें 1 साल के भीतर ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. वीरसेन ने बेटे का नाम मदनसेन रखा.
- मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बमलेश्वरी का मंदिर बनाया, जो जमीन से तकरीबन 22 फीट ऊपर है. इसके बाद मदनसेन के पुत्र कामसेन ने राजगद्दी संभाली. कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे.
- कला, नृत्य और संगीत के लिए विख्यात कामाख्या नगरी में कामकंदला नाम की राजनर्तकी थी. राजा कामसेन के ऊपर मां बमलेश्वरी की विशेष कृपा रही थी. उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुंदर राज नर्तकी और माधवानल जैसे संगीतकार थे.
- एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें अपने गले का हार भेंट कर दिया, जिसे माधवानल ने कामकंदला को दे दिया. इस पर राजा कामसेन क्रोधित हुए और उन्होंने माधवानल को राज्य से बाहर निकाल दिया. इसके बाद भी माधवानल और कामकंदला छुप-छुप कर एक दूसरे से मिलते रहे.
- एक दिन राजा विक्रमादित्य ने दोनों की प्रेम कहानी की परीक्षा ली और दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया. राजा के इनकार के बाद दोनों के बीच युद्ध हुआ. युद्ध के बाद राजा विक्रमादित्य ने कामकंदला और माधवानल का मिलन कराय.
- इस युद्ध को समाप्त करने के लिए भगवान शंकर और मां भवानी को सामने आना पड़ा ऐसी मान्यता और किवदंती लोगों में आज भी मौजूद हैं.
चैत और क्वार नवरात्रि में लगता है मेला
नवरात्रि के दोनों ही पक्ष में मां बमलेश्वरी के मंदिर में भक्तों का मेला लगा रहता है. एक और जहां पदयात्री पदयात्रा करते हुए मां के दर्शन को पहुंचते हैं. वहीं दूसरी ओर अन्य साधनों से भी बड़ी संख्या में लोग मंदिरों में माथा टेकने के लिए पहुंचते हैं. डोंगरगढ़ में मां बमलेश्वरी के 2 मंदिर हैं. एक नीचे मंदिर और एक तकरीबन 2 हजार फीट ऊपर. दोनों ही मंदिरों में दर्शन करने के लिए दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है. कुंवार और चैत की नवरात्रि में मंदिर के आसपास भव्य मेला लगता है, जहां दूर-दराज से लोग आते हैं और मेले में शामिल होते हैं.
भक्तों ने कहा- मिलता है सुकून
भक्तों का कहना है कि लगातार दर्शनार्थियों का आना जाना लगा रहता है इसके बावजूद देवी की कृपा से आज तक डोंगरगढ़ में कभी भी कोई हादसा नहीं हुआ. भक्तों का कहना है कि मां के दरबार में मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है.
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पूरे छत्तीसगढ़ से आते हैं लोग
मंदिर समिति के पुजारी का कहना है कि छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं. वही देश के अलग-अलग राज्यों से भी लोग आते हैं. वे कहते हैं कि महाराष्ट्र, गुजरात दिल्ली तक के लोग यहां मां के दरबार में हाजिरी लगाते हैं. उन्होंने बताया कि आदिकाल में कामाख्या नगरी के राजा की मन्नत पर मां बमलेश्वरी यहां अपने स्वरूप में विराजी थीं, तब से लेकर आज तक मां की सेवा यहां के लोग कर रहे हैं. चैत और क्वार नवरात्रि में यहां पर मेला लगा रहता है. यहां पर दोनों ही पक्ष में मनोकामना के आस्था के ज्योत भी प्रज्वलित किए जाते हैं.