राजनांदगांव: शहर के हमाल पारा में श्री साईं सेवा धर्मार्थ समिति ने शरद पूर्णिमा के अवसर पर खीर का वितरण किया. हमाल पारा में हर साल शरद पूर्णिमा के अवसर पर साईं मंदिर में पूजा-पाठ के बाद अमृततुल्य खीर के प्रसाद का वितरण किया जाता है. इस साल भी इस परंपरा को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए निभाया गया है.
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को-जागृति और कोजागरा का अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है. कहते हैं कि इस रात देवी लक्ष्मी सागर मंथन से प्रकट हुई थीं, इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस भी कहते हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं. इसलिए जो इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन पर देवी की असीम कृपा होती है. इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा कौड़ी से करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है, जो लोग धन और सुख-शांति की कामना रखते हैं, वह इस अवसर पर सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन कर सकते हैं.
मध्य रात्रि को किया जाता है सेवन
मान्यता के अनुसार खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए. चांदी में रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है. इससे विषाणु दूर रहते हैं. हल्दी का उपयोग निषिद्ध है. हर व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए. इसके लिए रात 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है. दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है. यह तत्व चंद्रमा की किरणों से ज्यादा मात्रा में शक्ति का शोषण करता है. चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है. इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है. मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है, क्योंकि चांद की रोशनी में औषधीय गुण होते हैं, जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता होती है.