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लॉकडाउन ने तोड़ी उम्मीद, खीरे की फसल के साथ किसान हुए बर्बाद - Farmers of Rajnandgaon upset

राजनांदगांव जिले के करीब 12 हजार किसानों ने खीरे की खेती की थी, लेकिन लॉकडाउन में उन्हें भारी घाटा हो रहा है. वे तैयार फसल को बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं, जिससे वो खराब हो रही है.

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किसानों को घाटा
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Published : May 27, 2020, 4:11 PM IST

राजनांदगांव: कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए देशभर में किए गए लॉकडाउन का जहां अन्य कामों पर असर पड़ा है, तो वहीं कृषि क्षेत्र भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है. सब्जी की खेती करने वाले किसानों का हाल बदहाल है. जिले में खीरे की खेती करने वाले किसान भारी नुकसान झेल रहे हैं. दरअसल बाजार में अचानक खीरे की मांग बंद हो गई है. इससे किसानों को फसल का मूल्य नहीं मिल पा रहा है.

बता दें जिले के करीब 12 हजार किसानों ने इस बार परंपरागत खेती छोड़कर खीरे की खेती की थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण भारी घाटा हो रहा है. फसल पूरी तरह तैयार है, लेकिन बाजार में भाव गिर गए हैं और मांग भी घट गई है.

किसानों को घाटा

परिवहन नहीं, सप्लाई नहीं

लॉकडाउन के कारण अन्य जिलों और राज्यों के लिए परिवहन व्यवस्था नहीं है. खीरे की गर्मी में काफी मांग होती है, मगर इस साल मामला उल्टा पड़ गया है. किसान तैयार फसल को बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं, साथ ही अन्य राज्यों में भी नहीं भेज पा रहे हैं. ऐसे में खेतों में खड़ी फसल खराब हो रही है.

किसान कुशाल कुमार का कहना है कि उन्होंने 10 एकड़ जमीन पर खीरे की खेती की थी. हर बार की तरह महाराष्ट्र की सब्जी मंडी में खीरे को भेजने की तैयारी थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते परिवहन व्यवस्था बंद रही. इस कारण उन्हें सीधे तौर पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. करीब 10 से 12 लाख का नुकसान हुआ है. परिवहन नहीं होने से खीरे मंडी तक नहीं पहुंच सके.

पढ़ें: कोरबा संग्राहलय में कुरान-ए-शरीफ बना कौतूहल का विषय, दूर-दूर से देखने आते हैं लोग

कितना घाटा हो रहा है

किसान खड़ी फसल के बावजूद नुकसान उठा रहे हैं. वहीं तैयार फसल को औने-पौने दाम में लोकल मार्केट में भी बेचना पड़ रहा है. किसानों की मानें तो फसल की तोड़ाई के लिए लगाए जा रहे मजदूरों तक का पैसा नहीं निकल पा रहा है. फसल लगाने के लिए किसानों को 60 से 70 हजार प्रति एकड़ की लागत लगती है. वहीं फसल के तैयार होने पर 2 लाख रुपए मिलते हैं.

तो अब क्या करें फसल का

इस बार जिले के किसान खीरे की खेती से आस लगाकर बैठे हुए थे. कुछ किसानों ने अपनी खड़ी फसल को खेत में ही छोड़ दिया है. कुछ किसानों ने इसे मुफ्त में ही लोगों को बांट दिया है. डोंगरगढ़ ब्लॉक में किसानों ने तैयार फसल को जानवरों के लिए छोड़ दिया.

अफवाहों ने भी किया नुकसान

कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में अफवाहों का बाजार भी गर्म रहा. इसका नुकसान भी खीरे की खेती करने वाले किसानों को हुआ. खीरे की तासीर ठंडी होती है और लोगों का मानना है कि कोरोना के संक्रमण के इस काल में ठंडी चीजों से परहेज करना चाहिए. इस वजह से भी बाजार में खीरे की डिमांड घट गई.

राजनांदगांव: कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए देशभर में किए गए लॉकडाउन का जहां अन्य कामों पर असर पड़ा है, तो वहीं कृषि क्षेत्र भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है. सब्जी की खेती करने वाले किसानों का हाल बदहाल है. जिले में खीरे की खेती करने वाले किसान भारी नुकसान झेल रहे हैं. दरअसल बाजार में अचानक खीरे की मांग बंद हो गई है. इससे किसानों को फसल का मूल्य नहीं मिल पा रहा है.

बता दें जिले के करीब 12 हजार किसानों ने इस बार परंपरागत खेती छोड़कर खीरे की खेती की थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण भारी घाटा हो रहा है. फसल पूरी तरह तैयार है, लेकिन बाजार में भाव गिर गए हैं और मांग भी घट गई है.

किसानों को घाटा

परिवहन नहीं, सप्लाई नहीं

लॉकडाउन के कारण अन्य जिलों और राज्यों के लिए परिवहन व्यवस्था नहीं है. खीरे की गर्मी में काफी मांग होती है, मगर इस साल मामला उल्टा पड़ गया है. किसान तैयार फसल को बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं, साथ ही अन्य राज्यों में भी नहीं भेज पा रहे हैं. ऐसे में खेतों में खड़ी फसल खराब हो रही है.

किसान कुशाल कुमार का कहना है कि उन्होंने 10 एकड़ जमीन पर खीरे की खेती की थी. हर बार की तरह महाराष्ट्र की सब्जी मंडी में खीरे को भेजने की तैयारी थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते परिवहन व्यवस्था बंद रही. इस कारण उन्हें सीधे तौर पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. करीब 10 से 12 लाख का नुकसान हुआ है. परिवहन नहीं होने से खीरे मंडी तक नहीं पहुंच सके.

पढ़ें: कोरबा संग्राहलय में कुरान-ए-शरीफ बना कौतूहल का विषय, दूर-दूर से देखने आते हैं लोग

कितना घाटा हो रहा है

किसान खड़ी फसल के बावजूद नुकसान उठा रहे हैं. वहीं तैयार फसल को औने-पौने दाम में लोकल मार्केट में भी बेचना पड़ रहा है. किसानों की मानें तो फसल की तोड़ाई के लिए लगाए जा रहे मजदूरों तक का पैसा नहीं निकल पा रहा है. फसल लगाने के लिए किसानों को 60 से 70 हजार प्रति एकड़ की लागत लगती है. वहीं फसल के तैयार होने पर 2 लाख रुपए मिलते हैं.

तो अब क्या करें फसल का

इस बार जिले के किसान खीरे की खेती से आस लगाकर बैठे हुए थे. कुछ किसानों ने अपनी खड़ी फसल को खेत में ही छोड़ दिया है. कुछ किसानों ने इसे मुफ्त में ही लोगों को बांट दिया है. डोंगरगढ़ ब्लॉक में किसानों ने तैयार फसल को जानवरों के लिए छोड़ दिया.

अफवाहों ने भी किया नुकसान

कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में अफवाहों का बाजार भी गर्म रहा. इसका नुकसान भी खीरे की खेती करने वाले किसानों को हुआ. खीरे की तासीर ठंडी होती है और लोगों का मानना है कि कोरोना के संक्रमण के इस काल में ठंडी चीजों से परहेज करना चाहिए. इस वजह से भी बाजार में खीरे की डिमांड घट गई.

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