राजनांदगांव: आज हम आपको ऐसे इंसान से मिलाएंगे, जिसने कई लोगों को जीने की नई चाह दी है, कई जिंदगियों को बचाया है. 'रक्तदान जीवनदान है' और इस बात का एहसास हमें तब होता है जब हमारा कोई अपना खून के लिए जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ता है और ऐसा ही एक वाकया हुआ था राजनांनगांव के रहने वाले फणींद्र जैन के साथ, जिसके बाद उन्होंने रक्तदान करने का फैसला लिया.
दुनिया की किसी भी मशीन में रक्त का निर्माण नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थितियों में लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक करने वाला फणींद्र उन सब लोगों के लिए मिसाल है जो रक्तदान से कतराते हैं. फणींद्र ने 1995 से रक्तदान की शुरुआत की थी. पिता के साथ हुए एक वाकए ने फणींद्र को इस कदर जुनून दिया कि फणींद्र 24 साल के अंदर 82 बार रक्तदान कर चुका है. आखिरी बार फणींद्र ने 6 अप्रैल को रक्तदान किया है. फणींद्र का इच्छा है कि वह जल्द से जल्द इस काम में अपनी सेंचुरी बनाएं.
रक्तदान के लिए जागरूक करने का लिया संकल्प
ETV भारत से चर्चा करते हुए फणींद्र ने बताया कि उनके पिता हुकुमचंद जैन के हाथ का ऑपरेशन किया जाना था, पूरा परिवार अस्पताल में मौजूद था इस बीच अचानक फणींद्र के दिमाग में आया क्यों न अस्पताल घूमकर लोगों की पीड़ा जानी जाए. उन्होंने उस दिन अस्पताल के मरीजों से घूम-घूम कर चर्चा की और उन्हों समझ आया कि दुनिया में न जाने ऐसे कितने लोग हैं जो खून न मिल पाने की वजह से अपनों से दूर हो जाते हैं और तब से ही फणींद्र ने लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक करने और रक्तदान करने का संकल्प किया.
'लोगों को मानसिकता बदलने की जरूरत'
उनका कहना है कि आज के आधुनिक युग में लोगों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है. रक्तदान के लिए लोगों के मन में अलग-अलग भ्रांतियां हैं, जिसे दूर करने की आवश्यकता है.