रायपुर: आज बैकुंठ चतुर्दशी मनाया जा रहा है. बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इस पर्व पर हरि- हर मिलन यानि भगवान शिव और विष्णु जी की औपचारिक मुलाकात करवाने की परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि आज के दिन व्रत पूजा करने वालों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.
जानिए पौराणिक कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार नारद जी बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास गए. नारद जी बोले, हे भगवान आपको पृथ्वी वासी कृपा निधान कहते हैं. किंतु इससे केवल आपके प्रिय भक्त ही तृप्त हो पाते हैं. साधारण नर नारी नहीं, इसलिए कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे साधारण नर नारी भी आपकी कृपा के पात्र बन जाए. इस पर भगवान विष्णु बोले- हे नारद कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर नारी व्रत का पालन करते हुए भक्ति पूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग की प्राप्ति होगी. इसके बाद भगवान विष्णु ने जय विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वारा खुले रखे जाएं. भगवान ने यह भी बताया कि इस दिन जो मनुष्य थोड़ा बहुत भी मेरा नाम लेकर पूजा करेगा उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी.
जानिए शुभ मुहूर्त: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 25 नवंबर 2023 को है. शाम 5 बजकर 22 मिनट पर चतुर्दशी तिथि आरंभ होगी. अगले दिन 26 नवंबर 2023 को दोपहर 3:53 पर चतुर्दशी तिथि का समापन होगा.
इस बारे में पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताया कि, "कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है. क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु और शिव की विधिवत पूजा करके भोग लगाया जाता है. पुष्प, धूप, दीप, चंदन आदि पदार्थों से आरती उतारी जाती है. बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र के कई शहरों में मनाया जाता है."
भगवान विष्णु की पूजा से बैकुंठ की होती है प्राप्ति: शास्त्रों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी पर विष्णु जी की पूजा निशीथ काल में की जाती है. आमतौर पर ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा का शुभ अवसर प्राप्त हो सके. लेकिन साल भर में मात्र एक दिन बैकुंठ चतुर्दशी पर हरि-हर दोनों की एक साथ पूजा होती है.
इस दिन भगवान विष्णु जी, भगवान शिव को तुलसी की पत्तियां देते हैं. भगवान शिव बदले में भगवान विष्णु को बेलपत्र देते हैं. शिव पुराण के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान शिव ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था. इस दिन शिव और विष्णु दोनों ही एक ही रूप में रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भी बैकुंठ चतुर्दशी के दिन एक हजार कमल के फूलों से विष्णु जी की पूजा आराधना करते हैं, उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है.