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World tribal day : छत्तीसगढ़ की पहचान हैं आदिवासी, इनके दम पर ही जिंदा हैं परंपराएं

विश्व आदिवासी दिवस पर हम आपको छत्तीसगढ़ के उन आदिवासियों से रू-ब-रू कराएंगे जिनकी तस्वीर का दीदार करते ही आप बस्तर की परंपरा को दूर रह कर भी करीब से देख लेंगे.

विश्व आदिवासी दिवस
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Published : Aug 9, 2019, 11:25 AM IST

Updated : Aug 9, 2019, 1:34 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया ये दो ऐसे शब्द हैं, जिन्हें सुनते ही जेहन में उन भोले वाले आदिवासियों के चेहरे सामने आ जाते हैं, जिन पर प्रदेश को गर्व है. इनकी अपनी संस्कृति, भाषा और संस्कार हैं. इन आदिवासी लोगों की खास विशेषता है, इनका सामूहिक जीवन, सामूहिक उत्तर दायित्व और भावात्मक संबंध. छत्तीसगढ़ में कई जातियों और जनजातियों के लोग निवास करते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या में से 30.62 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है.

विश्व आदिवासी दिवस पर हम आपको छत्तीसगढ़ में रहने वाले उन लोगों से रू-ब-रू कराएंगे, जिनका दीदार करते ही आप बस्तर और सरगुजा पहुंच जाएंगे, जहां आदिवासियों ने अपनी परंपराओं को सहेज कर रखा है. शायद यही वजह है कि ये दोनों संभाग छत्तीसगढ़ की 'जान' सा प्रतीत होते हैं. इनमें से गोंड सबसे बड़ा समूह है, जो प्रदेश में लगभग सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं. इसके बाद कंवर, हल्वा, भतरा, उरांव और बींझवार प्रमुख बड़े आदिवासी समूह हैं. प्रदेश के बैगा, अबूझमाड़िया, कमार, बिरहोर और पहाड़ी कोरवा विशेष पिछड़ी आदिवासी जातियां हैं. कंवर, बिंझवार, उरांव, हल्बा, भतरा, सवरा अन्य प्रमुख जनजातियां हैं. पहाड़ी कोरवा को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है.

नृत्य करतीं आदिवासी महिलाएं  (सौजन्य सोशल मीडिया)
नृत्य करतीं आदिवासी महिलाएं (सौजन्य - सोशल मीडिया)

आदिवासियों का अलग रंग, अलग संस्कृति
यूं तो पूरे प्रदेश में आदिवासी रहते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा की पहचान ही यहां रहने वाले आदिवासी हैं. जिनका रहन-सहन, वेशभूषा आम लोगों से बिल्कुल अलग है. आज सूट-बूट वाले जमाने में भी आदिवासी अपने पहनावे में रहना पसंद करते हैं. कपड़े, गहने, खान-पान, तीज-त्योहार सबकुछ अलग और शायद इसी वजह से हमारी उत्सुकता भी इन्हीं में घर किए रहती है.

जंगलों में रहते हैं बैगा
प्रदेश में बड़ी संख्या में धनुहार जनजाति के लोग रहते हैं. इन्हें लोधा और बैगा कहा जाता है. ये लोग ज्यादातर जंगल में रहना पसंद करते हैं. इस जनजाति के प्रमुख नृत्यों में बैगानी करमा, दशहरा या बिलमा तथा परधौनी नृत्य है. इसके अलावा विभिन्न अवसरों पर घोड़ा पैठाई, बैगा झरपट तथा रीना और फाग नृत्य भी करते हैं.

मांदर बजाता आदिवासी युवक  (सौजन्य सोशल मीडिया)
मांदर बजाता आदिवासी युवक (सौजन्य- सोशल मीडिया)

संस्कृति के बहुत धनी होते हैं गोंड जनजाति के लोग
छत्तीसगढ़ के दक्षिण इलाके की प्रमुख जनजाति गोंड है. जनसंख्या की दृष्टि से बात करें तो ये लगभग पूरे अंचल में फैले हुए है और सबसे बड़ा आदिवासी समूह कहलाते हैं. अगर ये कहें कि इन्होंने ही सबसे सुंदर संस्कृति विकसित की है तो ये गलत नहीं होगा. नृत्य और संगीत इनका प्रमुख मनोरंजन है. बस्तर की गोंड जनजाति अपने सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन के लिए सबका ध्यान आकर्षित करती है. ये लोग व्यवस्थित रूप से गांवों में रहते हैं. कृषि करते हैं और इनकी कृषि प्रथा डिप्पा कहलाती है.

बस्तर की मुरिया जनजाति-
बस्तर की मुरिया जनजाति सौंदर्य, कला और परंपरा के लिए जानी जाती है. इनके मांदरी और गेड़ी नृत्य को कौन नहीं जानता है. मुरिया जनजाति के जातिगत संगठन में युवाओं की गतिविधि के केंद्र घोटुल का प्रमुख नृत्य है, इसमें स्त्रियां हिस्सा नहीं लेती. ककसार धार्मिक नृत्य-गीत है. नृत्य के समय युवा पुरुष नर्तक अपनी कमर में पीतल और लोहे की घंटियां बांधे रहते हैं साथ में छतरी और सिर पर आकर्षक सजावट कर वे नृत्य करते हैं.

मुरिया जनजाति की महिला  (सौजन्य सोशल मीडिया)
मुरिया जनजाति की महिला (सौजन्य- सोशल मीडिया)

हल्बा
यह जनजाति रायपुर, दुर्ग, धमतरी और बस्तर जिलों में बसी हुई है. बस्तरहा, छत्तीसगढ़िया और मरेथियां, हल्बाओं की शाखाएं हैं. ये किसानी करते हैं.

बस्तर की वेशभूषा
यहां महिलाएं लुगरा लपेटे, खाली पैर एंठी और सूता पहने नजर आएंगी. वहीं पुरुष लुंगी लपेटे सिर पर गमछा बांधे नजर आएंगे. यहां बैगा, गोंड, मुरिया, हल्बा प्रमुख जातियों के साथ-साथ कई अन्य जातियां भी निवास करती हैं.

पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी महिला  (सौजन्य सोशल मीडिया)
पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी महिला (सौजन्य- सोशल मीडिया)

पढ़ें : इस साल अपने देवता के लिए जंगल से निकलकर सड़क पर उतर आए थे आदिवासी

प्रचलित भाषा और बोली

  • बस्तर की प्रचलित भाषा हल्बी और गोंडी है, जो यहां बोली जाती है.
  • गोंड जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से यह सबसे बड़ा आदिवासी समूह है. ये छत्तीसगढ़ के पूरे अंचल में फैले हुए हैं. इनसे ही गोंडी भाषा का विस्तार हुआ है.
  • इस बोली में एक अलग ही मिठास है, जो देसी के साथ विदेशियों को भी खुद से जोड़ लेती है. पर्यटन की दृष्टि से सबसे ज्यादा पर्यटक बस्तर में आते हैं और यहां का अद्भुत नजारा उन्हें यहां की वादियों से जोड़ देता है.

प्रमुख नृत्य और गीत

  • बस्तर की कला संस्कृति आज की इस फैशन ट्रेंड से बिल्कुल अलग है. यहां कर्मा, सुआ और डंडा नृत्य प्रसिद्ध है.
  • यहां की महिलाएं तरी हरी ना ना नरी पर सुआ गाना गाकर नृत्य करती हैं.
  • वहीं पुरुष डंडा नृत्य करते हैं. करमा गीत और करमा नृत्य मनोरंजन के गीत व नृत्य हैं.
  • करमा गीत बारिश शुरू होने के साथ ही गाए जाते हैं और फसल के कट जाने तक गाये जाते हैं.
    सुआ नृत्य करती आदिवासी महिलाएं  (सौजन्य सोशल मीडिया)
    सुआ नृत्य करती आदिवासी महिलाएं (सौजन्य सोशल मीडिया)

बस्तर का हाट बाजार

  • बस्तर का हाट बाजार बेहद प्रसिध्द है. यहां आदिवासी हाथ से बनी अपनी कला का विस्तार करते हैं, जो छत्तीसगढ़ के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी प्रसिध्द है.
  • इसमें ज्यादातर वस्तुएं बांस से बनी होती हैं.

बस्तर के पेय पदार्थ

  • बस्तर में चापड़ा और ताड़ी की मांग सबसे ज्यादा है.
  • इसे पीने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. इनकी कीमत बेहद कम होती है.

बस्तर के पर्यटन

  • बस्तर संभाग का जगदलपुर, दंतेवाड़ा पर्यटन की दृष्टि से बेहद ही खास है. यहां वे तमाम अनछुए पहलू हैं जो आज लोगों के नजर से दूर हैं. इतिहास के कई ऐसे पहलू हैं, जो बस्तर से जुड़े हुए हैं.
    चित्रकोट जल प्रपात
    चित्रकोट जल प्रपात
  • बस्तर में तीरथगढ़, चित्रकोट, कोटमसर गुफा, नारायणपाल गुफा, तामड़ा घुमर, मंद्री घुमर, कैलाश गुफा जैसे तमाम पर्यटन स्थल हैं, जो आदिवासियों की रोजी-रोटी देने के साथ-साथ उसे जीवित और सुरक्षित रखती हैं.
    तीरथगढ़ जल प्रपात
    तीरथगढ़ जल प्रपात

यहां आदिवासी प्रदेश के सघन जंगलों और पहाड़ी भागों में निवास करते हैं और आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी पिछड़े हुए हैं.

रायपुर : छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया ये दो ऐसे शब्द हैं, जिन्हें सुनते ही जेहन में उन भोले वाले आदिवासियों के चेहरे सामने आ जाते हैं, जिन पर प्रदेश को गर्व है. इनकी अपनी संस्कृति, भाषा और संस्कार हैं. इन आदिवासी लोगों की खास विशेषता है, इनका सामूहिक जीवन, सामूहिक उत्तर दायित्व और भावात्मक संबंध. छत्तीसगढ़ में कई जातियों और जनजातियों के लोग निवास करते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या में से 30.62 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों की है.

विश्व आदिवासी दिवस पर हम आपको छत्तीसगढ़ में रहने वाले उन लोगों से रू-ब-रू कराएंगे, जिनका दीदार करते ही आप बस्तर और सरगुजा पहुंच जाएंगे, जहां आदिवासियों ने अपनी परंपराओं को सहेज कर रखा है. शायद यही वजह है कि ये दोनों संभाग छत्तीसगढ़ की 'जान' सा प्रतीत होते हैं. इनमें से गोंड सबसे बड़ा समूह है, जो प्रदेश में लगभग सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं. इसके बाद कंवर, हल्वा, भतरा, उरांव और बींझवार प्रमुख बड़े आदिवासी समूह हैं. प्रदेश के बैगा, अबूझमाड़िया, कमार, बिरहोर और पहाड़ी कोरवा विशेष पिछड़ी आदिवासी जातियां हैं. कंवर, बिंझवार, उरांव, हल्बा, भतरा, सवरा अन्य प्रमुख जनजातियां हैं. पहाड़ी कोरवा को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाता है.

नृत्य करतीं आदिवासी महिलाएं  (सौजन्य सोशल मीडिया)
नृत्य करतीं आदिवासी महिलाएं (सौजन्य - सोशल मीडिया)

आदिवासियों का अलग रंग, अलग संस्कृति
यूं तो पूरे प्रदेश में आदिवासी रहते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा की पहचान ही यहां रहने वाले आदिवासी हैं. जिनका रहन-सहन, वेशभूषा आम लोगों से बिल्कुल अलग है. आज सूट-बूट वाले जमाने में भी आदिवासी अपने पहनावे में रहना पसंद करते हैं. कपड़े, गहने, खान-पान, तीज-त्योहार सबकुछ अलग और शायद इसी वजह से हमारी उत्सुकता भी इन्हीं में घर किए रहती है.

जंगलों में रहते हैं बैगा
प्रदेश में बड़ी संख्या में धनुहार जनजाति के लोग रहते हैं. इन्हें लोधा और बैगा कहा जाता है. ये लोग ज्यादातर जंगल में रहना पसंद करते हैं. इस जनजाति के प्रमुख नृत्यों में बैगानी करमा, दशहरा या बिलमा तथा परधौनी नृत्य है. इसके अलावा विभिन्न अवसरों पर घोड़ा पैठाई, बैगा झरपट तथा रीना और फाग नृत्य भी करते हैं.

मांदर बजाता आदिवासी युवक  (सौजन्य सोशल मीडिया)
मांदर बजाता आदिवासी युवक (सौजन्य- सोशल मीडिया)

संस्कृति के बहुत धनी होते हैं गोंड जनजाति के लोग
छत्तीसगढ़ के दक्षिण इलाके की प्रमुख जनजाति गोंड है. जनसंख्या की दृष्टि से बात करें तो ये लगभग पूरे अंचल में फैले हुए है और सबसे बड़ा आदिवासी समूह कहलाते हैं. अगर ये कहें कि इन्होंने ही सबसे सुंदर संस्कृति विकसित की है तो ये गलत नहीं होगा. नृत्य और संगीत इनका प्रमुख मनोरंजन है. बस्तर की गोंड जनजाति अपने सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन के लिए सबका ध्यान आकर्षित करती है. ये लोग व्यवस्थित रूप से गांवों में रहते हैं. कृषि करते हैं और इनकी कृषि प्रथा डिप्पा कहलाती है.

बस्तर की मुरिया जनजाति-
बस्तर की मुरिया जनजाति सौंदर्य, कला और परंपरा के लिए जानी जाती है. इनके मांदरी और गेड़ी नृत्य को कौन नहीं जानता है. मुरिया जनजाति के जातिगत संगठन में युवाओं की गतिविधि के केंद्र घोटुल का प्रमुख नृत्य है, इसमें स्त्रियां हिस्सा नहीं लेती. ककसार धार्मिक नृत्य-गीत है. नृत्य के समय युवा पुरुष नर्तक अपनी कमर में पीतल और लोहे की घंटियां बांधे रहते हैं साथ में छतरी और सिर पर आकर्षक सजावट कर वे नृत्य करते हैं.

मुरिया जनजाति की महिला  (सौजन्य सोशल मीडिया)
मुरिया जनजाति की महिला (सौजन्य- सोशल मीडिया)

हल्बा
यह जनजाति रायपुर, दुर्ग, धमतरी और बस्तर जिलों में बसी हुई है. बस्तरहा, छत्तीसगढ़िया और मरेथियां, हल्बाओं की शाखाएं हैं. ये किसानी करते हैं.

बस्तर की वेशभूषा
यहां महिलाएं लुगरा लपेटे, खाली पैर एंठी और सूता पहने नजर आएंगी. वहीं पुरुष लुंगी लपेटे सिर पर गमछा बांधे नजर आएंगे. यहां बैगा, गोंड, मुरिया, हल्बा प्रमुख जातियों के साथ-साथ कई अन्य जातियां भी निवास करती हैं.

पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी महिला  (सौजन्य सोशल मीडिया)
पारंपरिक वेशभूषा में आदिवासी महिला (सौजन्य- सोशल मीडिया)

पढ़ें : इस साल अपने देवता के लिए जंगल से निकलकर सड़क पर उतर आए थे आदिवासी

प्रचलित भाषा और बोली

  • बस्तर की प्रचलित भाषा हल्बी और गोंडी है, जो यहां बोली जाती है.
  • गोंड जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से यह सबसे बड़ा आदिवासी समूह है. ये छत्तीसगढ़ के पूरे अंचल में फैले हुए हैं. इनसे ही गोंडी भाषा का विस्तार हुआ है.
  • इस बोली में एक अलग ही मिठास है, जो देसी के साथ विदेशियों को भी खुद से जोड़ लेती है. पर्यटन की दृष्टि से सबसे ज्यादा पर्यटक बस्तर में आते हैं और यहां का अद्भुत नजारा उन्हें यहां की वादियों से जोड़ देता है.

प्रमुख नृत्य और गीत

  • बस्तर की कला संस्कृति आज की इस फैशन ट्रेंड से बिल्कुल अलग है. यहां कर्मा, सुआ और डंडा नृत्य प्रसिद्ध है.
  • यहां की महिलाएं तरी हरी ना ना नरी पर सुआ गाना गाकर नृत्य करती हैं.
  • वहीं पुरुष डंडा नृत्य करते हैं. करमा गीत और करमा नृत्य मनोरंजन के गीत व नृत्य हैं.
  • करमा गीत बारिश शुरू होने के साथ ही गाए जाते हैं और फसल के कट जाने तक गाये जाते हैं.
    सुआ नृत्य करती आदिवासी महिलाएं  (सौजन्य सोशल मीडिया)
    सुआ नृत्य करती आदिवासी महिलाएं (सौजन्य सोशल मीडिया)

बस्तर का हाट बाजार

  • बस्तर का हाट बाजार बेहद प्रसिध्द है. यहां आदिवासी हाथ से बनी अपनी कला का विस्तार करते हैं, जो छत्तीसगढ़ के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी प्रसिध्द है.
  • इसमें ज्यादातर वस्तुएं बांस से बनी होती हैं.

बस्तर के पेय पदार्थ

  • बस्तर में चापड़ा और ताड़ी की मांग सबसे ज्यादा है.
  • इसे पीने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. इनकी कीमत बेहद कम होती है.

बस्तर के पर्यटन

  • बस्तर संभाग का जगदलपुर, दंतेवाड़ा पर्यटन की दृष्टि से बेहद ही खास है. यहां वे तमाम अनछुए पहलू हैं जो आज लोगों के नजर से दूर हैं. इतिहास के कई ऐसे पहलू हैं, जो बस्तर से जुड़े हुए हैं.
    चित्रकोट जल प्रपात
    चित्रकोट जल प्रपात
  • बस्तर में तीरथगढ़, चित्रकोट, कोटमसर गुफा, नारायणपाल गुफा, तामड़ा घुमर, मंद्री घुमर, कैलाश गुफा जैसे तमाम पर्यटन स्थल हैं, जो आदिवासियों की रोजी-रोटी देने के साथ-साथ उसे जीवित और सुरक्षित रखती हैं.
    तीरथगढ़ जल प्रपात
    तीरथगढ़ जल प्रपात

यहां आदिवासी प्रदेश के सघन जंगलों और पहाड़ी भागों में निवास करते हैं और आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी पिछड़े हुए हैं.

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tribal


Conclusion:
Last Updated : Aug 9, 2019, 1:34 PM IST
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