रायपुर: सिकल सेल एक गंभीर बीमारी है. डॉक्टरों के मुताबिक सिकल सेल बीमारी खून से जुड़ी (Sickle cell blood disease) बीमारी है. जो शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं (red blood cells) यानि की आरबीसी को प्रभावित करती है. यह बीमारी जेनेटिकल डिसऑर्डर की वजह से होती है. माता पिता के जीन से यह बीमारी बच्चों तक पहुंचती (World Sickle Cell Day 2022) है. हर साल 19 जून को सिकल सेल जागरुकता दिवस मनाया जाता है. विश्व सिकल सेल जागरुकता दिवस के दिन लोगों को इस बीमारी के प्रति आगाह किया (What is sickle cell disease) जता है. ताकि वह इस बीमारी से अपना बचाव कर सके.
भारत में किन राज्यों में है सिकल सेल बीमारी के मरीज: भारत में सिकल सेल मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक और पूर्वोत्तर राज्य में पाया जाता है. छत्तीसगढ़ में 9.6 प्रतिशत लोगों में सिकल सेल के जींस पाए जाते हैं, जबकि 0.98 प्रतिशत से 1 प्रतिशत लोग इससे ग्रसित हैं. प्रदेश में करीब सवा दो लाख से ढाई लाख लोग सिकल सेल से ग्रसित हैं, जो कि काफी बड़ी संख्या है.
सिकल सेल के लक्षण: डॉक्टरों के मुताबिक सिकल सेल बीमारी अनुवांशिक तौर पर एक जेनरेशन से दूसरे जेनरेशन में (Signs and symptoms of sickle cell) पहुंचती है. अगर माता और पिता दोनों सिकल सेल रोग से ग्रसित हैं, तो नई पीढ़ी में इस रोग के पहुंचने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है. सिकल सेल बीमारी की वजह से बच्चों में खून की कमी हो जाती है. लक्षण की बात करें तो इस बीमारी के मरीज में चिड़चिड़ापन आ जाता है. बच्चा बेहद कमजोर हो जाता है. उसे सांस लेने में तकलीफ होती है. सिकल सेल से पीड़ित मरीज में कमजोरी होती है. वह बहुत जल्दी थक जाता है. डॉक्टरों के मुताबिक अगर किसी शख्स या बच्चे में इस तरह के लक्षण दिखे तो उसे जल्द से जल्द डॉक्टर के पास ले जाएं और उसका इलाज शुरू (ways to prevent sickle cell disease) करें.
बेहद गंभीर बीमारी है सिकल सेल: डॉक्टरों के मुताबिक जो मरीज सिकल सेल की बीमारी से पीड़ित होता है उसके शरीर में खून की कमी हो (sickle cell anaemia) जाती है. बार बार मरीज को खून चढ़ाना पड़ता है. सिकल सेल के मरीज की तिल्ली धीरे-धीरे काफी बड़ी होने लगती है. जिससे शरीर के अन्य अंगों को यह प्रभावित करने लगती है. सिकल सेल के मरीज को जीवन काल में 4 से 5 बार असहनीय दर्द होता है. उसके बाद उसे अटैक भी आ सकता है.
सिकल सेल के कितने प्रकार हैं.
1. सिकल वाहक कैरियर (ए-एस)
सिकल सेल केरियर या सिकल सेल ट्रेट (हेटेरोजायगोटस) भी कहते हैं. लेकिन इसमें रोग के कोई लक्षण नहीं होते हैं. इन्हें किसी तरह के इलाज की जरूरत नहीं होती है. यह सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं. इन्हें खुद भी मालूम नहीं होता है कि उनके रक्त में सिकल का जींस है. सिकल सेल रोग की रोकथाम के अभियान में इनका विशेष महत्व है, लेकिन ऐसे लोग जब दूसरे सिकल रोगी या वाहक से विवाह करते हैं, तो सिकल पीड़ित संतान होने की संभावना बढ़ जाती है.
2. सिकल पीड़ित रोगी (एस-एस)
सिकल सेल सफर, इसे (होमोजाएगोटस) भी कहते हैं. जब दोनों अभिभावकों के असामान्य जींस मिलते हैं, तो संतान सिकल रोगी या सफर होती है. इसे सिकल सेल एनीमिया रोग भी कहा जाता है. ऐसी स्थिति में रोग के सभी लक्षण मिलते हैं. सिकल सेल में लाल रक्त कण की आयु बहुत कम हो जाती है. सामान्य तौर पर लाल रक्त कण की आयु 100 से 120 दिन की होती है. वहीं सिकलसेल से ग्रसित रोगी के लाल रक्त कणों की आयु मात्र 10 से 12 दिन तक रह जाती है, जिससे रोगी की असमय मृत्यु हो जाती है.
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शादी से पहले सिकल कुंडली का मिलान जरूरी: डॉक्टरों के मुताबिक इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए सिकल सेल कुंडली का मिलान जरूरी है. इसलिए शादी से पहले जिस तरह वर और वधू की कुंडली मिलाई जाती है. ठीक उसी प्रकार सिकल कुंडली का मिलान भी जरूरी है. वर और वधू का सिकल सेल टेस्ट किया जाना चाहिए. सिकल सेल पीड़ित व्यक्ति को सामान्य व्यक्ति से शादी करनी चाहिए या नहीं इस सवाल पर डॉक्टर कहते हैं कि सिकल सेल से पीड़ित को सामान्य से ही शादी करनी चाहिए, जिससे उनकी आने वाली पीढ़ी को इस बीमारी से बचाया जा सके.
रायपुर में सिकल सेल संस्थान: छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2013 में सिकल सेल रोग के निदान के लिए समर्पित सिकल सेल संस्थान छत्तीसगढ़ की स्थापना रायपुर में की गई. यह संस्थान रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए विशेष उपचार और काउंसलिंग की सुविधा मुफ्त में मुहैया कराता है.