रायपुर: विश्व में 17 जुलाई को विश्व न्याय दिवस 2022 (world justice day 2022) के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन का विशेष महत्व है. यह दिन लोगों को न्याय दिलाने के लिए प्रेरित करता है. न्याय दिवस का मुख्य उद्देश्य है कि पीड़ितों को समय पर न्याय मिले.
आज विश्व न्याय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको ऐसी महिला से मिलवाने जा रहा है, जो अपने अधिकार के लिए पिछले 22 सालों से न्याय की गुहार लगा रही है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं रायपुर के धनेश्वरी ठाकुर की. जो पिछले 22 सालों से सम्मान निधि पेंशन पाने के लिए भटक रही (Dhaneshwari Thakur of Raipur hopes for an honor fund )है. धनेश्वरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय ठाकुर घनश्याम सिंह की अविवाहित पुत्री हैं.
अविवाहित पुत्री को दी जाती है सम्मान निधि: स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में उनकी पत्नी के बाद उनके अविवाहित बच्चों को सम्मान निधि (पेंशन) की पात्रता होती है. 60 वर्षीय धनेश्वरी ठाकुर सम्मान निधि के लिए न्याय की गुहार लगा रही है. महज 1,250 रुपए की सम्मान निधि को देने में भी प्रशासन ने लंबा वक्त लगा दिया है. हालांकि यह मामला सामने आने के बाद सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से धनेश्वरी ठाकुर को सम्मान निधि देने का आदेश जारी किया गया है. लेकिन वह इस फैसले से भी खुश नहीं हैं. उनका कहना है कि "अब तक उन्हें पेंशन बहाली का आदेश प्राप्त नहीं हुआ है. जो राशि प्रशासन की ओर से दी जा रही है, वह भी बेहद कम है". इस पूरे मामले को लेकर ईटीवी भारत ने धनेश्वरी से बातचीत की.
पेंशन के लिए कोर्ट का चक्कर लगाने को मजबूर: बातचीत के दौरान धनेश्वरी साहू ने बताया, "मेरे पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. पेंशन पर पहले पत्नी को अधिकार होता है. लेकिन मेरे पिताजी के जाने से पहले ही मेरी माता जी का देहांत हो गया है. उसके बाद मेरे पिताजी का देहांत हुआ. मैं अविवाहित हूं, मेरी उम्र 60 साल हो गई है. अभी तक मुझे पेंशन नहीं मिला है और मैं सम्मान निधि पेंशन के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रही हूं."
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फैसला हक में फिर भी नहीं मिली निधि: वहीं, इस विषय में धनेश्वरी ठाकुर के भाई भूपेंद्र ठाकुर ने बताया कि, " साल 1999 में हमारे पिता का देहांत हुआ. उनके देहांत के बाद हमने उनकी अविवाहित पुत्री के लिए सम्मान निधि का ज्ञापन सौंपा. जांच के बाद कलेक्टर द्वारा तत्कालीन मध्य प्रदेश की सरकार को पेंशन निधि के लिए पत्र भेजा. उसी दौरान मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बना और मध्य प्रदेश की सरकार ने वह प्रकरण छत्तीसगढ़ सरकार को वापस भेज दिया. तत्कालीन अजीत जोगी की सरकार ने आवेदन खारिज कर दिया. उसके बाद हमने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अपील की. उस दौरान हाईकोर्ट की बेंच ने बहन के हक में फैसला सुनाया. हम जीते और सरकार हार गई. उसके बाद रमन सिंह की सरकार आई और उसने इस प्रकरण को डबल बेंच में अपील किया. डबल बेंच की अपील में भी चीफ जस्टिस ने बहन के हक में फैसला दिया. 2018 में सरकार ने अपने खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी 2019 में वह अपील खारिज कर दी."
2019 में ही मिल जाना था सम्मान निधि: धनेश्वरी के भाई भूपेंद्र ठाकुर ने बताया, "सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के बाद 2019 में ही हमारी बहन को अधिकार मिल जाना था. लेकिन सरकार ने हमें वह अधिकार नहीं दिया और हमें इसकी जानकारी भी नहीं मिल पाई. बाद में 1 फ्रीडम फाइटर के परिवार ने वह दस्तावेज लाकर दिया. दस्तावेज मिलने के बाद हमने उसे सरकार के पास भेजा लेकिन उनके द्वारा अब तक मेरी बहन को पेंशन नहीं दिया गया है."
जो राशि दी जा रही है उससे हम संतुष्ट नहीं: धनेश्वरी ठाकुर के भाई भूपेंद्र ठाकुर ने बताया " 6 जुलाई को सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से पत्र लिखा गया है, जिसमें मेरी बहन को 1 जुलाई 1999 से 30 जून 2022 तक का मूल राशि के साथ 8 फीसदी ब्याज राशि 3 लाख 65 हजार 793 के भुगतान करने का आदेश दिया है. जो राशि दी जा रही है उससे हम संतुष्ट नहीं है. जो सम्मान निधि वर्तमान में मिल रही है, वह मेरी बहन को मिलनी चाहिए."
नियमित पेंशन शुरू की जाए: धनेश्वरी के भाई भूपेंद्र ठाकुर ने बताया, "सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से जो आदेश जारी किया गया है. हम चाहते हैं कि उसमें सुधार किया जाए. अभी तक नियमित पेंशन जारी करने का आदेश नहीं दिया गया है. हमें उम्मीद है कि सरकार हमें जरूर न्याय देगी."