रायपुर: काला मोतियाबिंद आंखों के लिए सबसे ज्यादा घातक माना जाता है. कई बार इस बीमारी की वजह से लोगों की आंखों की रौशनी तक चली जाती है. इस बीमारी में आंखों के अंदर पानी का दबाव बढ़ता जाता है. जिससे आंखों की नसों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. लोगों में काला मोतियाबिंद के प्रति जागरुकता लाने के लिए 6 मार्च से 12 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जा रहा है. रायपुर में भी इसका आयोजन किया गया है. इस दौरान सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक केंद्रों और जिला अस्पताल में 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की आंखों की जांच की जा रही है.
आज के दौर में बढ़ा ग्लूकोमा का खतरा
दुनिया जैसे-जैसे हाईटेक होती जा रही है. वैसे-वैसे कई तरह के गैजेट और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह से लोगों की आंखों पर दबाव बढ़ रहा है. दिनभर टीवी देखने, लैटटॉप और कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने से आंखों से जुड़ी बीमारियां काफी ज्यादा देखने को मिल रही है. इन बीमारियों में ग्लूकोमा यानी की काला मोतियाबिंद बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है. इस बारे में ईटीवी भारत ने मेकाहारा आई स्पेशलिस्ट असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर अमृता वर्मा से जाना कि यह बीमारी लोगों के लिए कितनी खतरनाक है.
विश्व ग्लूकोमा सप्ताह : रहें जागरूक, अगर आप में भी हैं ये लक्षण तो तुरंत कराएं उपचार...
छत्तीसगढ़ में ग्लूकोमा के मरीजों की संख्या बढ़ी
मेकाहारा की आई स्पेशलिस्ट असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर अमृता वर्मा ने बताया कि हर दिन छत्तीसगढ़ में ग्लूकोमा के मरीज मिल रहे हैं. रोजोना मेकाहारा के ओपीडी में 10 फीसदी से 12 फीसदी आई पेशेंट पहुंच रहे हैं. जिनमें ग्लूकोमा की बीमारी देखने को मिल रही है. डॉक्टर अमृता वर्मा वर्मा ने बताया कि 40 साल से अधिक उम्र वाले लोगों में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है. अगर इसका इलाज सही समय पर नहीं हुआ तो मरीज अंधा भी हो सकता है. कई केसों में यह बीमारी अनुवांशिक भी होती है. यह वजह है कि इसकी समय पर जांच कराने की जरूरत है. सही समय पर इलाज कराकर ग्लूकोमा के खतरे से बचा जा सकता है
क्या है ग्लूकोमा बीमारी ?
डॉक्टर अमृता वर्मा के मुताबिक आंखों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को ग्लूकोमा कहते हैं. ग्लूकोमा आंख के अंदर उच्च-से-सामान्य दबाव से जुड़ा होता है. इस स्थिति को ओकुलर हाइपरटेंशन कहा जाता है. यह ऐसी बीमारी है जिसमें आंखों के अंदर के पानी का दबाव धीरे-धीरे बढ़ जाता और आंखों की नस सूखने लगती है. इससे देखने में परेशानी होने लगती है या दिखना बंद भी हो सकता है. यह स्थिति बहुत खतरनाक है क्योंकि नस सूखने के बाद इलाज में काफी दिक्कत होती है.
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ग्लूकोमा के लक्षण
• चश्मे का नंबर जल्दी जल्दी बढ़ना
• दृष्टि का दायरा सिकुड़ना
• अगल-बगल की चीजों का दिखाई ना पड़ना
• आखों का लाल होना
• सिर में लगातार दर्द बने रहना
सही समय पर इलाज से ठीक हो सकती है बीमारी
डॉक्टर अमृता वर्मा ने बताया कि, इस तरह की बीमारी आंखों के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदायक होती है. मरीज शुरुआती लक्षणों को देखकर डॉक्टर के पास आ जाए तो सिर्फ ड्रॉप के माध्यम से आंखों को ठीक किया जा सकता है. हालांकि यह ड्रॉप व्यक्ति को उम्र भर इस्तेमाल करनी पड़ेगी. लेकिन अगर मरीज की बीमारी गंभीर हो जाती है तो ऑपरेशन तक की नौबत आ सकती है. इसलिए इस बीमारी को नजरअंदाज न करें.