रायपुरः हर वर्ष 4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस (World Animal Day 2021) यानी वर्ल्ड एनिमल डे मनाया जाता है. यह अंतरराष्ट्रीय पशु दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन पशुओं के अधिकारों और उनके कल्याण से संबंधित विभिन्न कारणों की समीक्षा की जाती है. ऐसे में ETV भारत ने विश्व पशु दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के राजकीय पशु (State animal) वन भैंसा (Wild buffalo) के बारे में पशु प्रेमी नितिन सिंघवी (Nitin Singhvi) से बात की. खास बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि फिलहाल छत्तीसगढ़ में प्योर ब्लड (Original blood) का एक भी वन भैंसा नहीं बचा है. जो भी हैं, वे दूसरी नस्ल के प्रजनन हैं.
2001 में राजकीय पशु घोषित
खास बातचीत के दौरान पशु प्रेमी नितिन सिंघवी ने बताया कि छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु वन भैंसा है. 2001 में जब यह विलुप्ति के कगार पर था. तब इसके संरंक्षण और संवर्धन को ध्यान में रखते हुए वन भैंसे को राजकीय पशु घोषित किया गया. उस समय इसकी संख्या 72 हुआ करती थी. वन भैंसा का ब्लड पूरी दुनिया में प्योर माना जाता है. ऐसे में वन भैंसा हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है.
2006 में 80 फीसद वन भैंसे विलुप्त
छत्तीसगढ़ में 2001 में 72 वन भैंसे थे. राज्य के जंगलों में 2005 तक सभी वन भैंसे देखे गए. हालांकि साल 2006 में अचानक 80 फीसद वन भैंसा विलुप्त हो गया. जिसके बाद केवल 12 ही शेष बचे. बाद में वन भैंसे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में आदेश दिया. साल 2002 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कहा था कि हमारे पास पैसे नहीं है, जिसकी वजह से इन्हें बचा नहीं पाए.
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सीतानदी के प्रजनन केंद्र में वन भैंसे
सिंघवी बताते है कि 'मेरी जानकारी में वर्तमान में एक भी वन भैंसा प्योर ब्लड का नहीं बचा हुआ है. वन विभाग के पास में टोटल 12 वन भैंसे उदंती सीता नदी के प्रजनन केंद्र में रखे गए हैं. जिसमें 2018 में मेनका और रंभा को गांव वालों के पास से लेकर आए हैं. चूंकि यह वन भैंसा के समान दिख रहे थे. उनके दो बच्चे हुए. फिलहाल ये 8 बचे हुए है. अब इन 8 में से एक भी प्योर ब्लड का नहीं है. जानकारों ने बताया कि डीएनए रिपोर्ट के आधार पर एक भी प्योर नहीं है.
असम के भैंस मंगाए गए
करनाल में क्लोनिंग कराई गई थी. इस पर विभाग ने करीब 95 लाख रुपये खर्च किये थे. इतना ही नहीं बल्कि दो से ढाई करोड़ का जंगल सफारी में बाड़ा बनाया गया है. लेकिन वो वन भैंस न होकर देसी मुर्रा भैंस हैं, जो काफी ज्यादा दूध देती है. वर्तमान स्थिति की बात करें तो एक भी प्योर ब्लड का नहीं है. एक मादा और एक नर को प्रजनन कराने के लिए फरवरी के आसपास में वन विभाग ने असम से एक भैंस लेकर आए. असम के वन भैंसों को लाने का मकसद है कि छत्तीसगढ़ के वन भैंसों के साथ मेटिंग कराकर एक नई जीन्स पैदा करना. जबकि इस प्रकार के मामले को लेकर देहरादून की यूनिवर्सिटी ने इसका विरोध भी किया.
ओरिजन ब्लड के वन भैंसे हो चुके विलुप्त
आगे उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में इंद्रावती नदी पार कर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से कुछ वन भैंसे आ जाते हैं. जिसे वन विभाग खुद अपने राज्य का बताते हैं. चूंकि वह पशु हैं, उन्हें नहीं पता होता कौन सा इलाका उनका है और कौन सा नहीं. वह घूमते-फिरते छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में ओरिजन ब्लड के वन भैंसे पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं.