रायपुर:आधुनिकता की ओर तेज दौड़ती भागती दुनिया में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर देश को आगे बढ़ाने में मदद कर रही (Women auto drivers of Raipur created a separate identity) हैं. आज भारत की महिलाएं विज्ञान , राजनीति , खेल , शिक्षा सभी क्षेत्रों में आगे (Saluting Bravehearts ) हैं. महिलाओं को अपना परिवार चलाने और जीवन यापन के लिए सहारे की जरूरत नहीं पड़ती. रायपुर की ही ऐसी बहुत सारी महिला ऑटो चालक (nari shakti) हैं .जो ऑटो रिक्शा चलाकर अपने परिवार को संभाल रही (Inspiring women in Raipur )हैं. ईटीवी भारत ने कुछ ऐसे ही महिला ऑटो चालक से बात की.
पारिवारिक परेशानी के कारण थामा स्टेयरिंग : महिला ऑटो ड्राइवर (Women auto driver) जया यादव ने बताया कि " करीब डेढ़ 2 साल पहले हम हस्बैंड वाइफ अपने रिश्तेदार के यहां जा रहे थे तभी हमारा एक्सीडेंट हो गया. एक्सीडेंट के बाद से मेरे हस्बैंड बेड से उठ नहीं सकते हैं. हमारे दो बच्चे हैं. एक बेटा एक बेटी , दोनों स्कूल में पढ़ाई करते हैं. छोटे बेटे को कैंसर है उसका ट्रीटमेंट भी चल रहा है. शुरू के कुछ महीने मैंने आसपास के घरों में झाड़ू पोछा लगाया लेकिन वह काम मुझे अच्छा नहीं लगता था. इसके अलावा मैं अपने बच्चों को भी समय नहीं दे पाती थी. झाड़ू पोछा बर्तन करने में पैसे भी ज्यादा नहीं मिलते थे , ऊपर से हमें लोगों से सुनना भी पढ़ता था.6 महीने मैंने लोगों के घरों में झाड़ू पोछा बर्तन किया. जिसके बाद मैंने खुद ऑटो खरीदा और ऑटो चलाना शुरु किया. शुरू-शुरू में ऑटो चलाने में मुझे काफी परेशानी हुई. लेकिन पिछले 1 साल से ऑटो चला रही हूं. ऑटो चलाना अब मुझे अच्छा लगता है , आमदनी भी हो जाती है. परिवार को समय भी दे पाते हैं. लोगों से भी हमें काफी सराहना मिलती है लोग यह देख कर खुश होते हैं कि महिलाएं भी आज कदम से कदम मिलाकर चल रही है.
पति की मौत के बाद ऑटो बनीं सहारा : महिला ऑटो ड्राइवर पुष्पा ध्रुव ने बताया " 2018 में मेरे हस्बैंड गुजर गए. हस्बैंड के गुजर जाने के बाद मेरे दो बच्चे हैं. उनको पालना , घर चलाना काफी मुश्किल हो रहा था. मैंने पहले जूस दुकान में काम करना चालू किया. लेकिन एक दिन जब मैं सीढ़ी से गिर गई , तो मालिक ने मुझे इलाज के लिए पैसा नहीं दिया. ऊपर से मुझे खूब सुनाया और पैसा भी काट लिया. जिसके बाद मैंने यह सोचा कि मैं काम करूंगी तो पैसा मिलेगा नहीं करूंगी तो नहीं मिलेगा. तब मैंने खुद का कुछ करने का सोचा. तब मैंने ई-रिक्शा खरीदा.
साइकिल चलाना नहीं आता लेकिन दौड़ाती हूं ऑटो : महिला ऑटो ड्राइवर पुष्पा ध्रुव ने कहा कि " मैंने आज तक साइकिल भी नहीं चलाया था. लेकिन मजबूरी थी कुछ ना कुछ तो करना था. जिसके बाद मेरे बेटे ने मुझे ई रिक्शा चलाना सिखाया. आज मुझे ई-रिक्शा चलाते हुए करीबन 5 साल हो गए हैं. अब मैं अपने बच्चों का परवरिश भी अच्छे से कर पा रही हूं और घर भी अच्छे से चला पा रही हूं. मेरी रोज की कमाई लगभग 500 रुपए हो जाती है. मैं अपने हिसाब से काम कर पाती हूं. बच्चों के लिए भी समय मिल जाता है. "
ऑटो से चलता है परिवार : महिला ऑटो ड्राइवर ममता साहू ने बताया " घर की परिस्थिति खराब होने की वजह से मैंने ऑटो चलाना चालू किया. आज मुझे ऑटो चलाते हुए करीबन 4 साल हो गए हैं. पहले के मुकाबले अब घर की स्थिति थोड़ी अच्छी हुई है. आज ऑटो चलाकर मैं अपने साथ-साथ अपने बच्चों और अपने परिवार को पाल रही हूं. हालांकि पिछले कुछ महीनों से ज्यादा यात्री नहीं मिल रहे हैं लेकिन फिर भी थोड़ी बहुत कमाई हो जाती है.
समाज भी कर रहा महिलाओं की प्रशंसा : दुकानदार पीयूष शर्मा ने बताया " आज महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर पुरुषों के चल रही है , इससे हमें गर्व महसूस होता है. आज मेरी धर्मपत्नी व्यापार में दुकान में मेरा हाथ बटाने आती है. तो मेरा काम आसान होता है. वहीं मेरा व्यापार भी बढ़ता है. हमें महिलाओं पर काफी प्राउड फील भी होता है. यह बहुत गर्व की बात है कि आज महिलाएं सिर्फ घर के चूल्हा चौका तक सीमित नहीं है. बल्कि हमारी बहने-महिलाएं घर से बाहर निकल रही हैं. हमें गर्व होता है कि देश को आगे बढ़ाने में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी अपना योगदान दे रही हैं.