रायपुर: गर्मी का मौसम शुरू होते ही नक्सलियों की गतिविधियां तेज हो जाती है. इस दौरान नक्सली लगातार जवानों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं. नक्सली जगह-जगह लैंडमाइन लगाते हैं. एंबुश लगाकर ज्यादा से ज्यादा जवानों को अपना शिकार बनाने की कोशिश करते हैं.
ऐसे समय पर सुरक्षा में तैनात जवानों के लिए नक्सल समस्या किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होती है. परिस्थिति को भांपते हुए पुलिस विभाग ने नक्सलियों से मोर्चा लेने की रणनीति बनाए जाने के दावे किए थे. बावजूद इसके नक्सली अपने हिंसक मंसूबों में कामयाब हो रहे हैं. हाल ही में बीजापुर की हुई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ इसका ताजा उदाहरण है. इस नक्सली मुठभेड़ में हमने अपने 22 जवान खोए हैं.
गर्मी के मौसम में ज्यादा एक्टिव होते हैं नक्सली
- 23 मार्च 2021: नारायणपुर में नक्सलियों ने आईडी से जवानों की बस को उड़ा दिया. 5 जवान शहीद हुए जबकि 10 घायल हुए.
- 21 मार्च 2020: सुकमा के मिनपा हमले में 17 जवान शहीद हुए.
- 28 अप्रैल 2019: बीजापुर जिले में नक्सलियों ने पुलिस जवानों पर हमला किया. 2 जवान शहीद हुए. एक ग्रामीण गंभीर रूप से घायल हुआ.
- 9 अप्रैल 2019: दंतेवाड़ा से लोकसभा चुनाव में मतदान से ठीक पहले नक्सलियों ने चुनाव प्रचार के लिए जा रहे भाजपा विधायक भीमा मंडावी की कार पर हमला किया. भीमा मंडावी के अलावा 4 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए.
- 19 मार्च 2019: दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में उन्नाव के रहने वाले सीआरपीएफ जवान शशिकांत तिवारी शहीद हुए. घात लगाकर हुए हमले में 5 अन्य लोग भी घायल हुए.
- 24 अप्रैल 2017: छत्तीसगढ़ के सुकमा में लंच करने बैठे जवानों पर घात लगाकर हमला हुआ. 25 से ज्यादा जवान शहीद हो गए.
- 1 मार्च 2017: सुकमा जिले में अवरोध सड़कों को खाली कराने के काम में जुटे सीआरपीएफ के जवानों पर घात लगाकर हमला हुआ. 11 जवान शहीद हुए. 3 से ज्यादा जवान घायल हुए.
- 11 मार्च 2014: झीरम घाटी के पास एक इलाके में नक्सलियों ने हमला किया. 15 जवान शहीद हुए. 1 ग्रामीण की भी मौत हुई.
- 12 अप्रैल 2014: बीजापुर और दरभा घाटी में आईईडी ब्लास्ट में 5 जवानों समेत 14 लोगों की मौत हो गई थी. मृतकों में 7 मतदान कर्मी थे. सीआरपीएफ के 5 जवानों समेत एंबुलेंस चालक और कंपाउंडर की मौत हुई थी.
- दिसंबर 2014: सुकमा के चिंता गुफा इलाके में एंटी नक्सल ऑपरेशन चल रहा था. सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला कर दिया. नक्सलियों के इस हमले में 14 जवान शहीद हो गए जबकि 12 घायल हुए थे.
- 25 मई 2013: झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर दिया. कांग्रेस के 30 नेता और कार्यकर्ता की मौत हो गई. पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व विधायक महेंद्र कर्मा और उदय मुदलियार, दिनेश पटेल, योगेंद्र शर्मा सहित कई अन्य कांग्रेसी नेताओं की मौत हुई थी.
- 29 जून 2010: नारायणपुर जिले के थोड़ा में सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सलियों ने हमला किया. इस हमले में पुलिस के 27 जवान शहीद हुए थे.
- 17 मई 2010: दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे एक यात्री बस में सवार जवानों पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग लगाकर हमला किया. 12 विशेष पुलिस अधिकारी सहित 36 लोग मारे गए थे.
- 6 अप्रैल 2010: दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में सुरक्षाकर्मियों पर हमला हुआ. इसे देश का सबसे बड़ा नक्सली हमला भी माना जाता है. इसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे.
- 12 जुलाई 2009: छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में घात लगाकर किए गए नक्सली हमले में पुलिस अधीक्षक वी के चौबे समेत 29 जवान शहीद हुए थे.
- 9 जुलाई 2007: एर्राबोर उरपलमेटा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस बल पर नक्सलियों ने हमला किया. जिसमें 23 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे.
- 15 मार्च 2007: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पहली बार बीजापुर जिले के रानीबोदली कैंप पर हमला किया. हमले में 55 जवान शहीद हो गए थे.
पिछले 5 साल में हुए नक्सली हमलों में 1000 लोगों की जान जा चुकी है. इनमें 314 आम लोग भी शामिल हैं. इनका नक्सल आंदोलन से कोई लेना-देना भी नहीं था. लेकिन इस हिंसा की आग में इन्हें भी अपनी जान गंवानी पड़ी है. वहीं इन 5 सालों में 220 जवान शहीद हुए हैं. साथ ही 466 नक्सली भी मुठभेड़ में मारे गए हैं. इस तरह 1000 लोगों की जान साल 2015 से लेकर फरवरी 2020 तक के समय में गई है.
ETV भारत ने नक्सल मामलों के जानकार से भी चर्चा की है. नक्सल मामलों के जानकार भी मानते हैं कि नक्सली गर्मी में बड़ी हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं. नक्सल एक्सपर्ट वर्णिका शर्मा की मानें तो गर्मी के मौसम में नक्सलियों के एक्टिव होने के कुछ प्रमुख कारण हैं.
नक्सली पोजीशनल वार फेयर की अवस्था में आ चुके हैं. अब गुरिल्ला मैच्योर टैक्टिक्स का हिस्सा हो चुका है. ऐसे में निश्चित अवधि का चुनाव कर लेते हैं. इस अवधि में बैक टू बैक हिंसक घटनाओं को अंजाम देते हैं. नक्सली इन हिंसक घटनाओं को अंजाम देकर यह साबित करना चाहते हैं कि यह अवधि एक प्रकार की दहशतगर्दी की अवधि है. इस दौरान तीन प्रमुख बातों पर फोकस करते हैं.
- पहला लोगों के बीच भय का वातावरण निर्मित करना.
- दूसरा सरकार के सामने यह साबित करना चाहते हैं कि यदि हम शांति वार्ता की अपील कर रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि हम कमजोर हैं.
- तीसरा गर्मी के मौसम में जवानों को सर्चिंग में सहूलियत होती है. जंगल में पतझड़ होता है, जिस वजह से जवान नक्सलियों को दूर से देख लेते हैं. साथ ही मुठभेड़ के दौरान पोजिशन लेने में भी आसानी होती है.
रणनीति में बड़े बदलाव की जरूरत
वर्णिका शर्मा का यह भी कहना है कि यदि इस अभियान के दौरान जवानों की जरा सी भी चूक हुई तो वह उन्हें भारी पड़ जाती है. पिछली घटनाओं को देख लिया जाए या फिर हाल ही में बीजापुर की घटना को तो कहीं ना कहीं छोटी सी चूक से जवानों को भारी नुकसान हुआ है. ऐसे में अभियान के दौरान फोकस विजन पर जोर देने की जरूरत है. रणनीति में बड़े बदलाव की जरूरत भी महसूस की जा रही है.
वर्णिका शर्मा ने बताया कि वारदात को अंजाम देने के बाद नक्सलियों की कोई जवाबदेही नहीं होती है, लेकिन सुरक्षा बल की कार्रवाई आम जनता की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए होती है. ऐसे में सुरक्षा बल को भी साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति के तहत नक्सलियों से मोर्चा लेना होगा.
नक्सलियों के जंगल से बाहर आने का करना था इंतजार
वर्णिका शर्मा ने कहा कि जब जवानों को बीजापुर में ज्यादा संख्या में नक्सलियों के मौजूदगी की सूचना थी तो उन्हें थोड़ा सा इंतजार करना चाहिए था. यदि कुछ दिन इंतजार किया जाता तो हो सकता था कि नक्सली बाहर आते तो उन पर हमला किया जा सकता था. लेकिन जब नक्सली पूरी तैयारी के साथ मोर्चे पर तैनात थे तो उस दौरान हमला करना कहीं ना कहीं जवानों के लिए घातक साबित हो गया.
फोर्स हर घटना से सीखती है: सीआरपीएफ महानिदेशक
केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) के महानिदेशक कुलदीप सिंह का कहना है कि हर घटना के बाद नई रणनीति के तहत आगे की योजना बनाई जाती है. यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. किसी भी घटना से सीख ली जाती है और हमेशा परिवर्तन भी किए जाते हैं.
- कहां कमी रह गई?
- किस तरह का सुधार किया जाना चाहिए?
- इक्विपमेंट में किस तरह का बदलाव किया जा सकता है?
- कितना गोला बारूद लेकर अभियान में जाना है, जवानों के प्रशिक्षण में यदि किसी तरह के बदलाव की जरूरत होती तो उस पर भी विचार किया जाता है.
जनवरी से जून का महीना चुनौतीपूर्ण: डीएम अवस्थी
डीजीपी डीएम अवस्थी के मुताबिक जनवरी-फरवरी में नक्सल गतिविधियां और तेज हो जाती हैं. यह जून तक जारी रहती है. इस तरह लगभग 6 महीने नक्सली लगातार सक्रिय रहते हैं. यह समय पुलिस और सुरक्षाबलों के लिए कठिन समय रहता है. जिसका मुकाबला नक्सल अभियान चलाकर किया जाता है.
बहरहाल एक बार फिर गर्मी के मौसम में नक्सलियों ने बीजापुर में एक बड़ी हिंसक घटना को अंजाम दिया है. नक्सल मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हो गए हैं. सुरक्षा बल के लिए काफी बड़ी क्षति है. अब देखने वाली बात है कि गर्मी के मौसम में हिंसक घटनाओं को अंजाम देने से रोकने के लिए सुरक्षा बल क्या रणनीति तैयार करते हैं.