रायपुर: 2 साल 11 महीने और 18 दिन में तैयार हुए भारतीय संविधान के निर्माण की यात्रा बहुत रोचक रही है. अगर हम अपने संविधान से जुड़ी कहानियों और किस्सों को सुनें, तो वे बड़े रोचक लगते हैं. जैसे- संविधान को अंग्रेजी और हिन्दी में किसने लिखा और फीस के तौर पर क्या लिया. संविधान की प्रति पर चित्र किसने बनाए, संविधान बनाने में कितनी महिलाओं का योगदान रहा. ऐसी ही एक और रोचक जानकारी हम आपको देते हैं कि हमारा राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' कहां से आया है और इसका छत्तीसगढ़ से क्या संबंध है.
'सत्यमेव जयते' हमारा राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है, जिसका अर्थ है सत्य की सदैव ही विजय होती है. यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे अंकित है. 'सत्यमेव जयते' सारनाथ में 250 ईसा पूर्व सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सिंह स्तंभ के शिखर से लिया गया है लेकिन मूल आदर्श वाक्य मुण्डकोपनिषद से लिया गया है.
मुण्डकोपनिषद से लिया गया वाक्य
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः। येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम् ।।
मण्डू ऋषि ने की थी मुंडकोपनिषद की रचना
मुंडकोपनिषद की रचना मण्डू ऋषि ने की थी. पिछले कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ में पुरातात्विक खुदाई की गई तो पता चला है कि इस उपनिषद की रचना महर्षि मण्डू ने बिलासपुर के नजदीक शिवनाथ नदी पर स्थित मदकू द्वीप पर की थी. मण्डू ऋषि के नाम पर ही इस जगह का नाम मदकू द्वीप पड़ा.
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सत्य के पथ पर चलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा
इतिहासकार बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में स्थित अलग-अलग रियासतों में इस तरह के आदर्श सूचक वाक्यों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. इससे पता चलता है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति और दर्शन कितने उच्च स्थान पर था.
सत्य की सदैव विजय हो यही हमारे संविधान का मूल मंत्र है. गणतंत्र दिवस के मौके पर हम सभी को इस आदर्श वाक्य के मुताबिक सत्य की राह पर आगे बढ़ने का प्रण लेना चाहिए.