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मंडप पूजा का महत्व, किन-किन बातों का रखें ध्यान, आइये जानते हैं...

पूरे विवाह संस्कार में मंडप एक मंदिर की भांति व्यवहार करता है. जिस तरह मंदिर में देवता स्थापित रहते हैं, उसी तरह मंडप में पंचदेव, गौरी, गणपति, कलश देवता, वरुण देवता, नवग्रह षोडश मातृका पूजन, 64 योगिनी आदि स्थापित रहते हैं. मंडपाछादन करते समय बांस की शुभ लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं मंडप पूजा का महत्व...

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मंडप पूजा का महत्व
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Published : Nov 24, 2021, 10:47 PM IST

रायपुर: पूरे विवाह संस्कार में मंडप एक मंदिर की भांति व्यवहार करता है. जिस तरह मंदिर में देवता स्थापित रहते हैं उसी तरह मंडप में पंचदेव, गौरी, गणपति, कलश देवता, वरुण देवता, नवग्रह षोडश मातृका पूजन 64 योगिनी आदि स्थापित रहते हैं. मंडपाछादन करते समय बांस की शुभ लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है.

मंडप पूजा का महत्व

बांस एक तेजी से विकसित होने वाली प्रजाति है. इसका विकास शीघ्रता से होता है. यह प्रतीत है कि वर और वधू का विकास तेजी से हो और उनके दांपत्य जीवन में संतति का आगमन भी जल्दी से हो बांस विद्युत का सुचालक माना जाता है.

यह भी पढ़ें: विवाह मुहूर्त के सबसे बड़े और अहम पल कौन से हैं जानिए

सुरक्षा के लिहाज के बांस का इस्तेमाल

प्राचीन काल में विवाह के समय बिजली गिरने का भय होता था. बांस बिजली सुचालक होने के कारण जमीन के अंदर चला जाता है. फलस्वरूप वर, वधू और पूरे परिवार की सुरक्षा हो जाती है. यह सुरक्षा के रूप में कार्य करता है. बास के बीच में गठान पाए जाते हैं. यह गठान बांस को शक्तिशाली बनाती है.

इसके चयन के पीछे वजह यह रहती है कि पति और पत्नी एक दूसरे को बल, संबल और शक्ति प्रदान करें. बांस के गठनो को पर्व भी कहा जाता है. पर्व का अर्थ है जुड़ना या जोड़ना यह दो परिवारों का सुंदर योग है. जिससे एक नए परिवार का जन्म होता है.

मंगलवार को नहीं करनी चाहिए जमीन की खुदाई
मंडप बनाने के पूर्व यह ध्यान रखना चाहिए कि मंगलवार के दिन भूमि को नहीं खोदना चाहिए. मंगल भूमि का ही प्रतीक है. इसलिए मंगलवार को खुदाई वर्जित है. अन्य 6 दिनों में किसी भी शुभ दिन का चयन कर इस कार्य को करना चाहिए. मंडप के लिए गड्ढा खोदने के उपरांत गड्ढे में सुपारी, हल्दी, सिक्का, पीला चावल, कुछ फूल आदि डाले जाते हैं. मंडप की ऊंचाई लगभग 9 या 10 हाथ की होनी चाहिए.

मंडप को कुश या दुब के माध्यम से भी सजाया जाता है. मंडप के आग्नेय वायव्य और ईशान कोण की विधिवत पूजा कर देवता की स्थापना की जानी चाहिए. इसके बाद योग्य आचार्य को कंकण बांधने की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए.

वर और कन्या के माध्यम से पृथ्वी, गणपति, गौरी कलश आदि का पूजन विधान पूर्वक करना चाहिए. कन्या पक्ष में बांस के 5 खंभे लगाए जाते हैं और वर पक्ष में एक स्तंभ के माध्यम से मंडप बनाया जाता है. कन्या पक्ष का मंडप बड़ा रहता है. इस मंडप को लगाने वाले को यज्ञोपवीत धारण कर लगाना चाहिए. इस पूरी प्रक्रिया में दाहिने हाथ का उपयोग किया जाता है. मंडप स्थापना के बाद तेल पूजा एवं हरिद्रालेपन किया जाता है.


यज्ञ कुंड की होती है स्थापना
मंडप के नीचे ही किसी छोटी कन्या के माध्यम से वर और कन्या दोनों का ही हरिद्रालेपन विधान पूर्वक मंडप में किया जाना चाहिए. मंडप में यज्ञ कुंड या विधि की स्थापना की जाती है. सिलबट्टा आदि भी रखने का विधान है. मंडप में ही चकरी रखा जाता है और साथ ही तोता भी रखा जाता है.

जिससे वर और वधु दोनों को ही मीठे वचन बोलने की प्रेरणा मिलती है. गृहस्थी के सारे सामान कन्या पक्ष मंडप में सजाकर रखते हैं. जिससे आने वाले समय में वर और कन्या अपने गृहस्थ जीवन की गाड़ी को अनुकूलता के साथ आगे चला सके. वास्तव में मंडप एक दिव्य मंदिर की तरह ही होते हैं.

इस मंडप में ही सप्तपदी अर्थात सात फेरे लिए जाते हैं. इन सात फेरों में वर और कन्या एक दूसरे को वचन प्रदान करते हैं और इन वचनों के प्राण और प्रण से निभाने का संकल्प लेते हैं. इस पवित्र मंडप में ही पिता अपनी बेटी का कन्यादान कर कन्यादान के ऋण से मुक्त हो जाता है और श्रेष्ठता को धारण करता है.

रायपुर: पूरे विवाह संस्कार में मंडप एक मंदिर की भांति व्यवहार करता है. जिस तरह मंदिर में देवता स्थापित रहते हैं उसी तरह मंडप में पंचदेव, गौरी, गणपति, कलश देवता, वरुण देवता, नवग्रह षोडश मातृका पूजन 64 योगिनी आदि स्थापित रहते हैं. मंडपाछादन करते समय बांस की शुभ लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है.

मंडप पूजा का महत्व

बांस एक तेजी से विकसित होने वाली प्रजाति है. इसका विकास शीघ्रता से होता है. यह प्रतीत है कि वर और वधू का विकास तेजी से हो और उनके दांपत्य जीवन में संतति का आगमन भी जल्दी से हो बांस विद्युत का सुचालक माना जाता है.

यह भी पढ़ें: विवाह मुहूर्त के सबसे बड़े और अहम पल कौन से हैं जानिए

सुरक्षा के लिहाज के बांस का इस्तेमाल

प्राचीन काल में विवाह के समय बिजली गिरने का भय होता था. बांस बिजली सुचालक होने के कारण जमीन के अंदर चला जाता है. फलस्वरूप वर, वधू और पूरे परिवार की सुरक्षा हो जाती है. यह सुरक्षा के रूप में कार्य करता है. बास के बीच में गठान पाए जाते हैं. यह गठान बांस को शक्तिशाली बनाती है.

इसके चयन के पीछे वजह यह रहती है कि पति और पत्नी एक दूसरे को बल, संबल और शक्ति प्रदान करें. बांस के गठनो को पर्व भी कहा जाता है. पर्व का अर्थ है जुड़ना या जोड़ना यह दो परिवारों का सुंदर योग है. जिससे एक नए परिवार का जन्म होता है.

मंगलवार को नहीं करनी चाहिए जमीन की खुदाई
मंडप बनाने के पूर्व यह ध्यान रखना चाहिए कि मंगलवार के दिन भूमि को नहीं खोदना चाहिए. मंगल भूमि का ही प्रतीक है. इसलिए मंगलवार को खुदाई वर्जित है. अन्य 6 दिनों में किसी भी शुभ दिन का चयन कर इस कार्य को करना चाहिए. मंडप के लिए गड्ढा खोदने के उपरांत गड्ढे में सुपारी, हल्दी, सिक्का, पीला चावल, कुछ फूल आदि डाले जाते हैं. मंडप की ऊंचाई लगभग 9 या 10 हाथ की होनी चाहिए.

मंडप को कुश या दुब के माध्यम से भी सजाया जाता है. मंडप के आग्नेय वायव्य और ईशान कोण की विधिवत पूजा कर देवता की स्थापना की जानी चाहिए. इसके बाद योग्य आचार्य को कंकण बांधने की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए.

वर और कन्या के माध्यम से पृथ्वी, गणपति, गौरी कलश आदि का पूजन विधान पूर्वक करना चाहिए. कन्या पक्ष में बांस के 5 खंभे लगाए जाते हैं और वर पक्ष में एक स्तंभ के माध्यम से मंडप बनाया जाता है. कन्या पक्ष का मंडप बड़ा रहता है. इस मंडप को लगाने वाले को यज्ञोपवीत धारण कर लगाना चाहिए. इस पूरी प्रक्रिया में दाहिने हाथ का उपयोग किया जाता है. मंडप स्थापना के बाद तेल पूजा एवं हरिद्रालेपन किया जाता है.


यज्ञ कुंड की होती है स्थापना
मंडप के नीचे ही किसी छोटी कन्या के माध्यम से वर और कन्या दोनों का ही हरिद्रालेपन विधान पूर्वक मंडप में किया जाना चाहिए. मंडप में यज्ञ कुंड या विधि की स्थापना की जाती है. सिलबट्टा आदि भी रखने का विधान है. मंडप में ही चकरी रखा जाता है और साथ ही तोता भी रखा जाता है.

जिससे वर और वधु दोनों को ही मीठे वचन बोलने की प्रेरणा मिलती है. गृहस्थी के सारे सामान कन्या पक्ष मंडप में सजाकर रखते हैं. जिससे आने वाले समय में वर और कन्या अपने गृहस्थ जीवन की गाड़ी को अनुकूलता के साथ आगे चला सके. वास्तव में मंडप एक दिव्य मंदिर की तरह ही होते हैं.

इस मंडप में ही सप्तपदी अर्थात सात फेरे लिए जाते हैं. इन सात फेरों में वर और कन्या एक दूसरे को वचन प्रदान करते हैं और इन वचनों के प्राण और प्रण से निभाने का संकल्प लेते हैं. इस पवित्र मंडप में ही पिता अपनी बेटी का कन्यादान कर कन्यादान के ऋण से मुक्त हो जाता है और श्रेष्ठता को धारण करता है.

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