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Dussehra Special: विजयादशमी महज एक पर्व नहीं, यह विजय गाथा है - Saraswati

विजयादशमी (Vijayadashami) को विजय पर्व के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन रावण (Rawan) का भगवान श्री राम (Ram) ने वध किया था. यही कारण है कि इस त्योहार (Festival) को राम (Ram) की रावण (Rawan) पर जीत के खुशी में मनाया जाता है.

Vijayadashami is not just a festival
विजयादशमी महज एक पर्व नहीं
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Published : Oct 14, 2021, 3:44 PM IST

Updated : Oct 14, 2021, 7:52 PM IST

रायपुरः यूं तो विजयादशमी (Vijayadashami) में रावण (Rawan)पर राम (Ram) की विजय की कहानी आम है. हालांकि ये दिन अशुभता के अंत का दिन है. यही कारण है कि इस दिन से लोग नये जीवन के साथ नये कार्यों को भी प्रारम्भ करते हैं. दरअसल, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को 'विजयादशमी' कहा जाता है. इस दिन के 'विजयादशमी' नाम के पीछे कई कारण शास्त्रों में मिलते हैं. यह दिन देवी भगवती के विजया नाम पर विजयादशमी कहलाता है. इसी दिन भगवान श्रीराम ने लंका (Lanka) पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए भी इसे विजयादशमी कहा जाता है.

शस्त्र पूजा है महत्वपूर्ण

ज्योतिष शास्त्र की मानें तो आश्विन शुक्ल दशमी के दिन तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है. यह काल सभी कार्यों में सिद्धि प्रदान करने वाला होता है. इस दिन अपराजिता पूजन (Aprajita pujan), शमी पूजन (Shami pujan) भी किया जाता है. विजयादशमी को वैसे तो क्षत्रियों का प्रमुख पर्व माना जाता है. इस दिन वे शस्त्र पूजन करते हैं. इस दिन ब्राह्मण सरस्वती (Saraswati) पूजन करते हैं.वैश्य लोग बही-खातों का पूजन करते हैं.

Dussehra Special: जानिए क्या है दशहरे में रावण दहन का महत्व, शस्त्र पूजा से जुड़ी हैं ये मान्यताएं

विजयादशमी की कथा

एक बार माता पार्वती ने शिवजी से विजयादशमी के फल के बारे में पूछा. शिवजी ने उत्तर दिया- आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो सर्वमनोकामना पूरी करने वाला होता है. इस दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग हो तो और भी शुभ हो जाता है. भगवान राम ने इसी विजय काल में लंकापति रावण को परास्त किया था. इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन के गांडीव धनुष को धारण किया था.

शिवजी ने उत्तर दिया- दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराकर 12 वर्ष का वनवास तथा तेरहवें वर्ष में अज्ञात वास की शर्त रखी थी. तेरहवें वर्ष में यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुन: 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता. इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को शमी वृक्ष पर छुपाया था तथा स्वयं बृहन्नला के वेश में राजा विराट के पास सेवा दी थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपना धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी. विजयादशमी के दिन रामचंद्रजी ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने रामचंद्रजी की विजय का उद्घोष किया था. इसीलिए दशहरे के दिन शाम के समय विजय काल में शमी का पूजन होता है.

रायपुरः यूं तो विजयादशमी (Vijayadashami) में रावण (Rawan)पर राम (Ram) की विजय की कहानी आम है. हालांकि ये दिन अशुभता के अंत का दिन है. यही कारण है कि इस दिन से लोग नये जीवन के साथ नये कार्यों को भी प्रारम्भ करते हैं. दरअसल, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को 'विजयादशमी' कहा जाता है. इस दिन के 'विजयादशमी' नाम के पीछे कई कारण शास्त्रों में मिलते हैं. यह दिन देवी भगवती के विजया नाम पर विजयादशमी कहलाता है. इसी दिन भगवान श्रीराम ने लंका (Lanka) पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए भी इसे विजयादशमी कहा जाता है.

शस्त्र पूजा है महत्वपूर्ण

ज्योतिष शास्त्र की मानें तो आश्विन शुक्ल दशमी के दिन तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है. यह काल सभी कार्यों में सिद्धि प्रदान करने वाला होता है. इस दिन अपराजिता पूजन (Aprajita pujan), शमी पूजन (Shami pujan) भी किया जाता है. विजयादशमी को वैसे तो क्षत्रियों का प्रमुख पर्व माना जाता है. इस दिन वे शस्त्र पूजन करते हैं. इस दिन ब्राह्मण सरस्वती (Saraswati) पूजन करते हैं.वैश्य लोग बही-खातों का पूजन करते हैं.

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विजयादशमी की कथा

एक बार माता पार्वती ने शिवजी से विजयादशमी के फल के बारे में पूछा. शिवजी ने उत्तर दिया- आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो सर्वमनोकामना पूरी करने वाला होता है. इस दिन श्रवण नक्षत्र का संयोग हो तो और भी शुभ हो जाता है. भगवान राम ने इसी विजय काल में लंकापति रावण को परास्त किया था. इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन के गांडीव धनुष को धारण किया था.

शिवजी ने उत्तर दिया- दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराकर 12 वर्ष का वनवास तथा तेरहवें वर्ष में अज्ञात वास की शर्त रखी थी. तेरहवें वर्ष में यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुन: 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ता. इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष को शमी वृक्ष पर छुपाया था तथा स्वयं बृहन्नला के वेश में राजा विराट के पास सेवा दी थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपना धनुष उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी. विजयादशमी के दिन रामचंद्रजी ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने रामचंद्रजी की विजय का उद्घोष किया था. इसीलिए दशहरे के दिन शाम के समय विजय काल में शमी का पूजन होता है.

Last Updated : Oct 14, 2021, 7:52 PM IST
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