रायपुर: विनायक गणेश चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) व्रत गणेश भगवान (Lord Ganesha) को समर्पित माना जाता है. व्रत में भक्त गणेश भगवान की पूजा अर्चना करते हैं और उपवास रखते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में गणेश भगवान को सर्वप्रथम पूज्य माना जाता है. हिंदी पंचांग के अनुसार, प्रत्येक महीने में दो चतुर्थी पड़ती है. इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में पूजा जाता है. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 14 जून यानी सोमवार को पड़ रही है. इस दिन विनायक चतुर्थी है.
इस बार बन रहा है अद्भुत संयोग
ज्योतिषाचार्य पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) को गणेश चतुर्थी (Ganesha Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है. ये पर्व इस साल 14 जून सोमवार को पड़ रहा है. इसकी विशेषता है कि इस दिन पुष्य नक्षत्र में चंद्रमा विराजमान रहेगा है. अर्थात् चंद्र पुष्य का एक सुखद संयोग बन रहा है. धान्य छेदन के लिए यह एक विशिष्ट मूहूर्त है. व्यापार वृद्वि, व्यापार प्रारंभ और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रारंभ करने के लिए यह विशिष्ठ मूहूर्त माना गया है. कोई भी शुभ कार्य, कोई भी अच्छा कार्य, कोई भी पावन कार्य करने के लिए यह दिन विशेष महत्व का है.
भगवान गणेश को सर्वप्रथम स्थान
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने के पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इससे कार्यों में सफलता मिलती है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त सच्चे मन से विनायक गणेश चतुर्थी व्रत रखता है और विधि-विधान से गणपति की पूजा अर्चना करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. उसपर सदा विघ्नहर्ता का आशीर्वाद बना रहता है. ऐसे जातकों के मार्ग में आने वाले संकट और बाधाएं नष्ट हो जाते हैं.
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पूजा का महत्त्व
विनायक चतुर्थी व्रत रखकर गणेश भगवान की पूजा करने से उनकी कृपा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. भगवान गणेश को ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि इनकी पूजा से सुख, समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है. गणपति भगवान अपने भक्त को सभी संकट से दूर रखते हैं.
पूजा की विधि
प्रातः काल नित्यकर्म, स्नानादि करके पूजा स्थल पर पवित्र आसन पर बैठे. गणेश भगवान की प्रतिमा का गंगाजल से स्नान कराएं. इसके बाद सभी पूजन सामग्री पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि गणेश भगवान को चढ़ाएं. सभी देवताओं का आवाहन करें. ॐ श्री गणेशाय नमः का जप करें. बाद में आरती करें. इसके बाद विसर्जन करके प्रणाम करें और प्रसाद का वितरण करें.