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अगर आप पहली बार वट सावित्री व्रत कर रहीं हैं तो इन बातों का रखें ध्यान ! - वट सावित्री व्रत के नियम

ज्येष्ठ मास की अमावस्या को हर साल वट सावित्री व्रत महिलाएं करती हैं. इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करने का विधान है. इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने से व्रत सफल माना जाता है.

Vat Savitri Vrat
वट सावित्री व्रत
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Published : May 26, 2022, 10:21 PM IST

रायपुर: वट सावित्री व्रत के बारे में मान्यता है कि यह व्रत सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था. सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से भी वापस ले आई थी. इसलिए वट सावित्री व्रत वाले दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए. तभी व्रत का फल मिलता है. ये व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए रखा जाता है. हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को इस व्रत को व्रती रखती हैं. इस बार 30 मई को ये व्रत है.

इस दिन विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. कहते हैं कि इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से पति की आयु लम्बी होती हैं. दांपत्य जीवन में आ रही परेशानियां दूर होती है. जो महिलाएं इस व्रत को पहली बार रखती हैं, उनके लिए यह व्रत अहम हो जाता है. उन्हें इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए.

वट सावित्री व्रत के नियम: आप अगर पहली बार वट सावित्री का व्रत करने जा रही हैं, तो ध्यान रखें कि इस दिन 16 श्रृंगार करके ही पूजा किया जाता है. बिना पूजा किए अन्न-जल ग्रहण नहीं करना चाहिए. सूर्य देव को जल का अर्घ्य जरूर देकर भींगे हुए चने से वट वृक्ष की पूजा की जाती है. सबसे पहले सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद व्रत का संकल्प लें. दो बांस वाली टोकरी लें, एक में 7 प्रकार के अनाज भर लें और उसमें बह्मा जी का मूर्ति को स्थापित करें. दूसरी टोकरी में भी सप्त धान्य भरकर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें. इस टोकरी को पहली टोकरी के बाएं रखें. इसके बाद इन दोनों टोकरी वट वृक्ष के नीचे ले जाकर स्थापित कर दें. इसके बाद विधि-विधान से पूजा करना चाहिए. पूजा के समय वट वृक्ष की जड़ को जल अर्पित करना चाहिए. फिर वट वृक्ष के चारों ओर 7 बार कच्चा धागा लपेटें. इसके बाद वट वृक्ष की परिक्रमा जरूर करें.वट वृक्ष के पत्तों की माला बनाकर पहनें और वट सावित्री व्रत कथा जरूर सुनें. चने का बायना और कुछ पैसे अपनी सास को देकर उनसे आशीर्वाद लें. इसके अलावा फल, अनाज, कपड़ा आदि एक टोकरी में रखकर किसी बाह्मण को दान करें. कहते हैं कि इस व्रत का पारण 11 भीगे हुए चने खाकर किया जाता है.

वट सावित्री व्रत कथा: सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थीं, जो अपने पिता की एकमात्र संतान थीं. सावित्री का विवाह द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ. नारद जी ने सावित्री के पिता अश्वपति को बताया कि सत्यवान गुणवान और धर्मात्मा है, लेकिन उसके पास अल्पायु है. विवाह के एक साल बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी. पिता ने सावित्री को काफी समझाया, लेकिन वह नहीं मानीं. उन्होंने कहा कि सत्यवान ही उनके पति हैं, वह दूसरा विवाह नहीं कर सकती हैं. सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहते थे, सावित्री भी उनके साथ रहने लगीं.नारद जी ने सत्यवान की मृत्यु का जो समय बताया था, उससे पूर्व समय से सावित्री उपवास करने लगीं. जिस दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन निश्चित था, उस दिन वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगे, तो सावित्री भी उनके साथ वन में गईं.

सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगे, वैसे ही उनके सिर में तेज दर्द होने लगा. वह वट वृक्ष के नीचे आकर सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए. कुछ समय बाद सावित्री ने देखा कि यमराज मयदूतों के साथ सत्यवान के प्राण लेने आए हैं. वे सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगे. उनके पीछे पीछे सावित्री भी चलने लगीं.कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री उनके पीछे पीछे चली आ रही हैं, तो उन्होंने सावित्री से कहा कि सत्यवान से तुम्हारा साथ धरती तक ही था. अब तुम वापस लौट जाओ. सावित्री ने कहा कि जहां पति जाएंगे, वहां उनके साथ जाना एक पत्नी का धर्म है.

यह भी पढ़ें: वास्तु के अनुसार धन को इस दिशा में रखने से मिलता है लाभ

यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा. सावित्री ने अपने सास, ससुर की आंखों की रोशनी वापस आने का वर मांगा. यमराज ने वह वरदान दे दिया. ​कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री अभी भी उनके पीछे चल रही हैं, तो उन्होंने फिर एक वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने अपने ससुर का खोया राजपाट वापस मिलने का वरदान मांगा. यमराज ने वह भी वरदान दे दिया.इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रहीं. यमराज ने उनसे एक और वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने सत्यवान के 100 पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा. अपने वचन से बंधे यमराज ने सावित्री को 100 पुत्रों की माता होने का वरदान दिया और सत्यवान के प्राण लौटा दिए. वे वहां ये अदृश्य हो गए.सावित्री वहां से लौटकर वट वृक्ष के पास आ गईं. उन्होंने देखा कि सत्यवान पुन:जीवित हो गए हैं, उनको यमराज ने जीवन दान दे दिया है. सावित्री के व्रत और पतिव्रता धर्म से सत्यवान को दोबारा जीवन मिल गया और उनके ससुर को खोया राजपाट भी मिल गया. वे पहले की तरह देखने भी लगे.इसके बाद से ही सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत करने लगीं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो, उन्हें भी पुत्र सुख प्राप्त हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो.

रायपुर: वट सावित्री व्रत के बारे में मान्यता है कि यह व्रत सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था. सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से भी वापस ले आई थी. इसलिए वट सावित्री व्रत वाले दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए. तभी व्रत का फल मिलता है. ये व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए रखा जाता है. हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को इस व्रत को व्रती रखती हैं. इस बार 30 मई को ये व्रत है.

इस दिन विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. कहते हैं कि इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से पति की आयु लम्बी होती हैं. दांपत्य जीवन में आ रही परेशानियां दूर होती है. जो महिलाएं इस व्रत को पहली बार रखती हैं, उनके लिए यह व्रत अहम हो जाता है. उन्हें इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए.

वट सावित्री व्रत के नियम: आप अगर पहली बार वट सावित्री का व्रत करने जा रही हैं, तो ध्यान रखें कि इस दिन 16 श्रृंगार करके ही पूजा किया जाता है. बिना पूजा किए अन्न-जल ग्रहण नहीं करना चाहिए. सूर्य देव को जल का अर्घ्य जरूर देकर भींगे हुए चने से वट वृक्ष की पूजा की जाती है. सबसे पहले सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद व्रत का संकल्प लें. दो बांस वाली टोकरी लें, एक में 7 प्रकार के अनाज भर लें और उसमें बह्मा जी का मूर्ति को स्थापित करें. दूसरी टोकरी में भी सप्त धान्य भरकर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें. इस टोकरी को पहली टोकरी के बाएं रखें. इसके बाद इन दोनों टोकरी वट वृक्ष के नीचे ले जाकर स्थापित कर दें. इसके बाद विधि-विधान से पूजा करना चाहिए. पूजा के समय वट वृक्ष की जड़ को जल अर्पित करना चाहिए. फिर वट वृक्ष के चारों ओर 7 बार कच्चा धागा लपेटें. इसके बाद वट वृक्ष की परिक्रमा जरूर करें.वट वृक्ष के पत्तों की माला बनाकर पहनें और वट सावित्री व्रत कथा जरूर सुनें. चने का बायना और कुछ पैसे अपनी सास को देकर उनसे आशीर्वाद लें. इसके अलावा फल, अनाज, कपड़ा आदि एक टोकरी में रखकर किसी बाह्मण को दान करें. कहते हैं कि इस व्रत का पारण 11 भीगे हुए चने खाकर किया जाता है.

वट सावित्री व्रत कथा: सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थीं, जो अपने पिता की एकमात्र संतान थीं. सावित्री का विवाह द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ. नारद जी ने सावित्री के पिता अश्वपति को बताया कि सत्यवान गुणवान और धर्मात्मा है, लेकिन उसके पास अल्पायु है. विवाह के एक साल बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी. पिता ने सावित्री को काफी समझाया, लेकिन वह नहीं मानीं. उन्होंने कहा कि सत्यवान ही उनके पति हैं, वह दूसरा विवाह नहीं कर सकती हैं. सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहते थे, सावित्री भी उनके साथ रहने लगीं.नारद जी ने सत्यवान की मृत्यु का जो समय बताया था, उससे पूर्व समय से सावित्री उपवास करने लगीं. जिस दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन निश्चित था, उस दिन वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगे, तो सावित्री भी उनके साथ वन में गईं.

सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगे, वैसे ही उनके सिर में तेज दर्द होने लगा. वह वट वृक्ष के नीचे आकर सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए. कुछ समय बाद सावित्री ने देखा कि यमराज मयदूतों के साथ सत्यवान के प्राण लेने आए हैं. वे सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगे. उनके पीछे पीछे सावित्री भी चलने लगीं.कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री उनके पीछे पीछे चली आ रही हैं, तो उन्होंने सावित्री से कहा कि सत्यवान से तुम्हारा साथ धरती तक ही था. अब तुम वापस लौट जाओ. सावित्री ने कहा कि जहां पति जाएंगे, वहां उनके साथ जाना एक पत्नी का धर्म है.

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यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा. सावित्री ने अपने सास, ससुर की आंखों की रोशनी वापस आने का वर मांगा. यमराज ने वह वरदान दे दिया. ​कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री अभी भी उनके पीछे चल रही हैं, तो उन्होंने फिर एक वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने अपने ससुर का खोया राजपाट वापस मिलने का वरदान मांगा. यमराज ने वह भी वरदान दे दिया.इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रहीं. यमराज ने उनसे एक और वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने सत्यवान के 100 पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा. अपने वचन से बंधे यमराज ने सावित्री को 100 पुत्रों की माता होने का वरदान दिया और सत्यवान के प्राण लौटा दिए. वे वहां ये अदृश्य हो गए.सावित्री वहां से लौटकर वट वृक्ष के पास आ गईं. उन्होंने देखा कि सत्यवान पुन:जीवित हो गए हैं, उनको यमराज ने जीवन दान दे दिया है. सावित्री के व्रत और पतिव्रता धर्म से सत्यवान को दोबारा जीवन मिल गया और उनके ससुर को खोया राजपाट भी मिल गया. वे पहले की तरह देखने भी लगे.इसके बाद से ही सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत करने लगीं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो, उन्हें भी पुत्र सुख प्राप्त हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो.

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