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क्यों पत्थर के रूप में होती है शालिग्राम की पूजा, क्या है तुलसी विवाह का इतिहास

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को तुलसी विवाह कराने की परंपरा रही है. ये तिथि इस साल 8 नवंबर दिन शुक्रवार को पड़ रही है. इस दिन मां तुलसी का विवाह शालिग्राम से करवाया जाता है.

जानें क्यों पत्थर के रूप में होती है शालिग्राम की पूजा
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Published : Nov 8, 2019, 11:58 AM IST

Updated : Nov 8, 2019, 5:27 PM IST

रायपुर: देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी के विवाह की परंपरा है. आइए जानते हैं, भगवान विष्णु के रूप शालिग्राम और माता तुलसी से जुड़ी कुछ खास बातें.

पत्थर के रूप में होती है शालिग्राम की पूजा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को तुलसी विवाह कराने की परंपरा रही है. इस दिन मां तुलसी का विवाह शालिग्राम से करवाया जाता है. शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है. कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही भगवान विष्णु के साथ सभी देवी-देवता भी योग निद्रा से बाहर आते हैं. इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा की जाती है.

तुलसी विवाह के पीछे की कहानी
राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था. वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था. उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म. उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था. जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई.

उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया. उन्होंने जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा का स्पर्श किया. वृंदा का पति जलंधर, देवताओं से पराक्रम से युद्ध कर रहा था लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया. जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, जलंधर का सिर उसके आंगन में आ गिरा.

वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए तुम पत्थर के बनोगे. यह पत्थर शालिग्राम कहलाया. विष्णु ने कहा, 'हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी. जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी.

गन्ने का मण्डप बनाकर ओढ़ाई जाती है तुलसी को ओढ़नी
महिलाओं ने बताया कि कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के गमले को सजाते हैं. उसके चारों तरफ गन्ने का मण्डप बनाकर उसके ऊपर ओढ़नी ओढ़ाते हैं. फिर गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाई जाती है और उनका श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद भगवान गणेश आदि देवताओं और शालिग्राम जी का विधिवत पूजन किया जाता है. फिर तुलसी जी की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है और ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है. इसके बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा की जाती है और आरती उतार कर विवाहोत्सव संपन्न किया जाता है. हिन्दू विवाह के समान ही तुलसी विवाह के भी सभी कार्य संपन्न होते हैं.

रायपुर: देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी के विवाह की परंपरा है. आइए जानते हैं, भगवान विष्णु के रूप शालिग्राम और माता तुलसी से जुड़ी कुछ खास बातें.

पत्थर के रूप में होती है शालिग्राम की पूजा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को तुलसी विवाह कराने की परंपरा रही है. इस दिन मां तुलसी का विवाह शालिग्राम से करवाया जाता है. शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है. कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही भगवान विष्णु के साथ सभी देवी-देवता भी योग निद्रा से बाहर आते हैं. इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा की जाती है.

तुलसी विवाह के पीछे की कहानी
राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था. वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था. उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म. उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था. जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई.

उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया. उन्होंने जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा का स्पर्श किया. वृंदा का पति जलंधर, देवताओं से पराक्रम से युद्ध कर रहा था लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया. जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, जलंधर का सिर उसके आंगन में आ गिरा.

वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है इसलिए तुम पत्थर के बनोगे. यह पत्थर शालिग्राम कहलाया. विष्णु ने कहा, 'हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी. जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी.

गन्ने का मण्डप बनाकर ओढ़ाई जाती है तुलसी को ओढ़नी
महिलाओं ने बताया कि कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के गमले को सजाते हैं. उसके चारों तरफ गन्ने का मण्डप बनाकर उसके ऊपर ओढ़नी ओढ़ाते हैं. फिर गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाई जाती है और उनका श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद भगवान गणेश आदि देवताओं और शालिग्राम जी का विधिवत पूजन किया जाता है. फिर तुलसी जी की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है और ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है. इसके बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा की जाती है और आरती उतार कर विवाहोत्सव संपन्न किया जाता है. हिन्दू विवाह के समान ही तुलसी विवाह के भी सभी कार्य संपन्न होते हैं.

Intro:कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह कराने की परंपरा रही है। ये तिथि इस साल 8 नवंबर दिन शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन मां तुलसी का विवाह शालिग्राम से करवाया जाता है। शालिग्राम भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही भगवान विष्णु के साथ सभी देवी देवता भी योग निद्रा से बाहर आते हैं। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा की जाती है।

Body:कथा अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। यही पत्थर शालिग्राम कहलाया। विष्णु ने कहा, ‘हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी।शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।

Conclusion:महिलाओं द्वारा बताया गया कि कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी के पौधे के गमले को सजाते हैं। उसके चारों तरफ ईख का मण्डप बनाकर उसके ऊपर ओढ़नी ओढ़ाते हैं। फिर गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाई जाती है और उनका श्रृंगार किया जाता हैं। इसके बाद भगवान गणेश आदि देवताओं तथा शालिग्राम जी का विधिवत पूजन किया जाता है। फिर तुलसी जी की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है और ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है इसके बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा की जाती है और आरती उतार कर विवाहोत्सव संपन्न किया जाता है। हिन्दू विवाह के समान ही तुलसी विवाह के भी सभी कार्य संपन्न होते हैं।

बाइट :- उर्मिला तिवारी (स्थानीय निवासी)

अभिषेक कुमार सिंह ईटीवी भारत रायपुर
Last Updated : Nov 8, 2019, 5:27 PM IST
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