रायपुर: टीएस सिंह देव छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सबसे प्रमुख और वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. वे राजघराने से आते हैं, यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के वर्तमान विधायकों में सिंहदेव सबसे अमीर विधायक हैं. छत्तीसगढ़ में चौथी विधानसभा में सिंहदेव विपक्ष के नेता थे. वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार में वे स्वास्थ्य मंत्री के रूप में अपनी भूमिका से न्याय कर रहे हैं.
2008 में पहली बार सिंहदेव बने थे विधायक: टीएस सिंहदेव ने साल 2008 में अंबिकापुर विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उस दौरान वे पहली बार विधायक बने. उसके बाद से वे लगातार अंबिकापुर विधानसभा सीट पर जीत हासिल करते आए हैं. 2013 विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की. तब उन्हें पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा सौंपा. इसके बाद से वे लगातार राजनीति में सक्रिय हैं.
जन घोषणा पत्र बनाने में थी अहम भूमिका: सिंहदेव सौम्य, सहज सरल मिलनसार होने के नाते लोगों से जल्दी घुल मिल जाते हैं. यही वजह है कि लोग भी उनसे अपनी बात कहने में कोई गुरेज नहीं करते. इसे देखते हुए पार्टी ने उन्हें एक महत्वपूर्ण जिम्मा विधानसभा चुनाव 2018 के पहले सौंपा यह था, वो था चुनाव के लिए घोषणा पत्र तैयार करना. इस घोषणापत्र को तैयार करने में टीएस सिंहदेव की अहम भूमिका रही. माना जाता है कि, इस दमदार घोषणा पत्र के कारण ही पार्टी ने चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की.
सत्ता पर काबिज होते ही बनाए गए कैबिनेट मंत्री: कांग्रेस ने सत्ता पर काबिज होते ही टीएस सिंहदेव को मंत्री बनाया. पार्टी ने सिंहदेव को पंचायत एवं स्वास्थ्य मंत्री का जिम्मा सौंपा. इस बीच वे अच्छा काम करते रहे. खासकर कोरोना के दौरान स्वास्थ्य विभाग का काम काफी सराहनीय रहा. जहां कोरोना के समय पूरे देश में स्वास्थ्य की स्थिति बद से बदतर हो गई थी, वहीं छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य के क्षेत्र में लेकर बेहतर रहा. दूसरे राज्य ऑक्सीजन के लिए तरस रहे थे और छत्तीसगढ़ न सिर्फ अपने राज्य की ऑक्सीजन की पूर्ति कर रहा था बल्कि दूसरे राज्यों में भी ऑक्सीजन सप्लाई कर रहा था.
एक साथ नजर आते थे बघेल और सिंहदेव: सरकार और पार्टी में सब कुछ ठीक चल रहा था. सीएम के बाद दूसरे स्थान पर टीएस सिंहदेव को रखा जाता था. पार्टी की बैठक हो या फिर कोई अन्य कार्यक्रम, सिंहदेव की जगह हमेशा सीएम के बगल में होती थी. कई बार तो भूपेश बघेल गाड़ी में बैठे होते थे और उनके सारथी बनकर टीएस सिंह देव गाड़ी चलाते थे. लेकिन यह ज्यादा दिन देखने को नहीं मिला. जैसे ही ढाई साल सरकार के हुए, उसके बाद बघेल और सिंहदेव के बीच दरार आ गई.
ढाई साल के फॉर्मूले से बघेल और सिंहदेव में बढ़ी दूरियां: ढाई ढाई साल के सीएम फॉर्मूले को लेकर सिंहदेव और बघेल में कई बार मतभेद देखने को मिले. भूपेश और सिंहदेव की जो जोड़ी जय और वीरू के नाम से जानी जाती थी, उसी जोड़ी में ग्रहण लगने लगा. यह दो गुटों में बंट गए. एक भूपेश बघेल का गुट, दूसरा टीएस सिंहदेव का. यह विवाद लगातार जारी रहा. आलम यह था कि, विभाग की बैठकों में भी सिंहदेव को नहीं बुलाया जाता था. यहां तक कि कई बार पार्टी बैठक की सूचना भी सिंहदेव तक नहीं पहुंचती थी. कुल मिलाकर सरकार और पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया था.
भूपेश समर्थक विधायकों ने दिल्ली में किया था शक्ति प्रदर्शन: इस बीच भूपेश समर्थक विधायकों ने दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन भी किया. वहीं सिंहदेव के समर्थक भी हाईकमान तक अपनी बात पहुंचाने में लगे रहे, लेकिन वे उसमें सफल ना हो सके. परिणाम यह हुआ कि ढाई साल के बाद भी भूपेश बघेल को सीएम पद से नहीं हटाया और टीएस सिंहदेव सीएम नहीं बन पाए. तब से लेकर अब तक लगातार सिंहदेव सीएम बनने की बात कहते रहे हैं.
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सिंहदेव ने पंचायत विभाग के मंत्री का पद छोड़ा: इस बीच एक और घटना देखने को मिली. सिंहदेव ने अपने पंचायत विभाग से इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफे को सरकार ने स्वीकार भी कर लिया. उनकी जगह रविंद्र चौबे को पंचायत विभाग दे दिया गया. उसके बाद से ही लगातार बघेल ओर सिंहदेव के बीच दूरियां बढ़ती गईं. आलम यह था कि यह दोनों नेता एक साथ मंच पर भी नजर नहीं आ रहे थे.