रायपुर: कांग्रेस नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट मंगलवार को अनशन पर बैठे तो, उनके इस अनशन का छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने समर्थन किया. इस समर्थन के बाद एक बार फिर सिंहदेव सुर्खियों में आ गए हैं. इससे एक ओर जहां कांग्रेस के भीतर चल रही कलह उजागर हो रही है, वहीं टीएस सिंहदेव के भाजपा में जाने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं. ढाई ढाई साल के फॉर्मूले को लेकर सुर्खियों में रहने वाले सिंहदेव ने एक बार फिर अपनी कसक बयां कर कांग्रेस में खलबली मचा दी है.
इस्तीफे से उजागर हुई थी सीएम बघेल से अनबन: स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव की छत्तीसगढ़ में स्थिति को लेकर वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "टीएस सिंहदेव ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह किनारे पर हैं. इसके पहले ढाई ढाई साल के मामले को लेकर सिंहदेव और बघेल में अनबन चल रही है. इस बीच सिंहदेव ने पंचायत विभाग से इस्तीफा दे दिया था. कैबिनेट मंत्री रहते हुए इस्तीफे में जिन शब्दों का उपयोग किया गया, उससे समझा जा सकता है कि इस सरकार में उनकी कैसी पूछ पूछ परख थी.
सरकार के अंदर कमजोर है सिंहदेव की स्थिति: शशांक शर्मा के मुताबिक "सिंहदेव की सरकार के अंदर स्थिति कमजोर हो गई है. ढाई ढाई साल के मामले को लेकर जिस तरह से पार्टी ने उन्हें किनारे किया है, यह सभी जानते हैं. सिंहदेव को धीरे-धीरे साइडलाइन किया जा रहा है."
पंजाब की तर्ज पर सीएम बनने की अब भी उम्मीद: इन सब बातों के बावजूद सिंहदेव की सीएम बनने उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है. आज भी उन्हें उम्मीद है कि पंजाब की तर्ज पर चुनाव के चंद माह पूर्व मौका मिल सकता है. इसके वजह ये है कि जिस तरह से सरकार पर ईडी के छापे पड़ रहे हैं, बड़े-बड़े लोग अंदर जा रहे हैं, ऐसे में हो सकता है कि आखिरी मूवमेंट में किसी नए व्यक्ति को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया जाए. इसी उम्मीद के साथ सिंहदेव लगातार सीएम बनने की बात कर रहे हैं.
सोनिया से की होगी फॉर्मूले पर अमल न करने की शिकायत: सिंहदेव की सोनिया गांधी के मुलाकात के मायने को लेकर शशांक शर्मा ने कहा कि "शायद सिंहदेव ने ढाई ढाई साल के मामले सहित, छत्तीसगढ़ में बनी वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों की जानकारी सोनिया गांधी को दी होगी. क्योंकि जब विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात आई थी. तो उस दौरान छत्तीसगढ़ से चारों नेताओं ने सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. उसके बाद राहुल गांधी से मिलने गए थे. राहुल गांधी ने ही यह निर्णय लिया था. मुझे लगता है कि, सिंहदेव शिकायत करने गए थे कि राहुल का जो निर्णय हुआ था, उसका पालन नहीं हुआ है."
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सिंहदेव अचानक हुए सक्रिय: पिछले कुछ दिनों से टीएस सिंह देव की सक्रियता पर शशांक शर्मा ने कहा कि "कांग्रेस प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा के आने के बाद सभी को एक साथ लेकर चलने की रणनीति बना रही है. भले ही पार्टी के अंदर जो भी हो लेकिन बाहर दिखाने की कोशिश की जा रही है कि, सब एक हैं. यही वजह है कि सिंहदेव इन दिनों सक्रिय नजर आ रहे हैं." इस बार जीत के बाद सीएम बनाने को लेकर शशांक शर्मा ने कहा कि "मुझे नहीं लगता कि एक बार धोखा खाने के बाद टीएस सिंहदेव दोबारा उन पर विश्वास करेंगे."
पार्टी नहीं दे रही टीएस सिंह देव को तवज्जो: भाजपा प्रदेश प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास का कहना है कि "पार्टी ने सिंहदेव को किनारे कर दिया है. उनकी न तो सरकार में कोई अहमियत है और न ही पार्टी में. यहां तक कि उनके विभाग की बैठकों में ही उन्हें नहीं पूछा जाता था. टीएस सिंह देव की सरकार से इतनी नाराजगी थी कि, उन्होंने कुछ माह पूर्व अपने पंचायत विभाग से भी इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद रविंद्र चौबे को पंचायत विभाग सौंप दिया गया. ऐसे कई उदाहरण है जब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव में खुलकर विरोध देखने को मिला.
सिंहदेव पार्टी के लिए अहम, कई बार सौंपी गई है महत्वपूर्ण जिम्मेदारी: कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता घनश्याम राजू तिवारी का कहना है कि "टीएस सिंह देव का पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान है. वे हमारे वरिष्ठ नेता हैं. उनका मार्गदर्शन पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होता है. सरकार में भी उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है, जिसे वह बखूबी निभा रहे हैं. समय-समय पर पार्टी उन्हें कई जवाबदारी सौंपती रही है, चाहे अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव हो या अन्य कोई कार्यक्रम, उन सभी में दी गई जिम्मेदारी को टीएस सिंहदेव ने बखूबी निभाया है. ऐसा कहीं भी देखने को नहीं मिला, जिससे सिंहदेव कद काम हुआ हो. कांग्रेस में सभी को अपनी बात रखने की स्वतंत्रता है और यही वजह है कि सभी लोग अपनी बात रखते हैं. इसका यह मतलब नहीं है कि यह पार्टी में नाराजगी है या फिर उनमें कोई मनमुटाव है."