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वन अधिकार कानून में संशोधन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन, प्रधानमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन

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Published : Jul 23, 2019, 3:26 PM IST

वन अधिकार कानून में संसोधन के खिलाफ रायपुर में तमाम सामाजिक संगठनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया. सामाजिक संगठन कानून में संशोधन का विरोध कर रहे हैं. मामले में 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.

वन अधिकार कानून में संसोधन के खिलाफ आंदोलन

रायपुर: वन अधिकार कानून में संसोधन के खिलाफ रायपुर के बूढ़ा तालाब धरना स्थल पर छत्तीसगढ़ के कई सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन किया. धरना प्रदर्शन कर रहे सामाजिक संगठन को लोगों ने वन अधिकार कानून में बदलाव न करने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा है.

वन अधिकार कानून में संशोधन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन

धरना स्थल पर बैठे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ किसान मजदूर आंदोलन संघ के साथ लोगों का कहना है कि सरकार आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के साथ अन्याय कर रही है. उन्होंने कहा कि अगर कानून में संशोधन कर दिया जाता है तो लाखों वनवासी बेघर हो जाएंगे. सामाजिक संगठन के लोगों ने सरकार से 2006 में बने वन अधिकार कानून को सही क्रियांन्वयन कर जो हितग्राही बच गए हैं उन्हें इस कानून के तहत उनका हक देने की मांग कर रहे हैं.

आदिवासियों का आरोप है कि केंद्र सरकार वन अधिकार कानून में संशोधन कर जंगलों को कॉर्पोरेट हाउस को देने की योजना बना रही है. सुप्रीम कोर्ट में 13 फरवरी 2019 को वन अधिकार कानून की वैधानिकता पर सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने वनवासियों के खिलाफ फैसला देते हुए वनों पर निर्भर आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों की बेदखली का आदेश दे दिया. जिसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन और विरोध प्रदर्शन किया गया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले पर 10 जुलाई 2019 तक रोक लगा दी. मामले में 24 जुलाई को अगली सुनवाई होनी है. इससे पहले तमाम विभिन्न संगठन प्रदर्शन कर सरकार से कानून में संशोधन को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

रायपुर: वन अधिकार कानून में संसोधन के खिलाफ रायपुर के बूढ़ा तालाब धरना स्थल पर छत्तीसगढ़ के कई सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन किया. धरना प्रदर्शन कर रहे सामाजिक संगठन को लोगों ने वन अधिकार कानून में बदलाव न करने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा है.

वन अधिकार कानून में संशोधन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन

धरना स्थल पर बैठे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ किसान मजदूर आंदोलन संघ के साथ लोगों का कहना है कि सरकार आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के साथ अन्याय कर रही है. उन्होंने कहा कि अगर कानून में संशोधन कर दिया जाता है तो लाखों वनवासी बेघर हो जाएंगे. सामाजिक संगठन के लोगों ने सरकार से 2006 में बने वन अधिकार कानून को सही क्रियांन्वयन कर जो हितग्राही बच गए हैं उन्हें इस कानून के तहत उनका हक देने की मांग कर रहे हैं.

आदिवासियों का आरोप है कि केंद्र सरकार वन अधिकार कानून में संशोधन कर जंगलों को कॉर्पोरेट हाउस को देने की योजना बना रही है. सुप्रीम कोर्ट में 13 फरवरी 2019 को वन अधिकार कानून की वैधानिकता पर सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने वनवासियों के खिलाफ फैसला देते हुए वनों पर निर्भर आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों की बेदखली का आदेश दे दिया. जिसके खिलाफ देशव्यापी आंदोलन और विरोध प्रदर्शन किया गया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले पर 10 जुलाई 2019 तक रोक लगा दी. मामले में 24 जुलाई को अगली सुनवाई होनी है. इससे पहले तमाम विभिन्न संगठन प्रदर्शन कर सरकार से कानून में संशोधन को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

Intro:रायपुर वनों को कारपोरेट के हाथों सौंपने वन अधिनियम में संशोधन कर रही है मोदी सरकार वनों से आदिवासियों की बेज्जती के सुप्रीम कोर्ट आदेश हुआ भारतीय वन अधिनियम में संशोधन के खिलाफ छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन सहित दलित आदिवासी मंच जिला किसान संघ भारत जन आंदोलन हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति जन अधिकार संगठन किसान सभा छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ वन अधिकार मंच छत्तीसगढ़ मजदूर यूनियन नदी घाटी मोर्चा जन अधिकार संगठन छत्तीसगढ़ किसान मजदूर आंदोलन महिला महासंघ जसपुर आदि संयुक्त तत्वाधान में आज बूढ़ा तालाब स्थित धरना स्थल में एक दिवसीय धरना देने के साथ ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन


Body:गौरतलब हो कि आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासी यों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय की भूल को सुधारते हुए उनके वन अधिकारों को मान्यता देने के लिए वनाधिकार मान्यता कानून 2006 बनाया गए कानून लागू होने के एक दशक बाद भी आज तक इसका सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हुआ जिसके कारण लाखों लोग अपने वन अधिकारों से वंचित है


Conclusion:ऐसी स्थिति में जब वन अधिकार मान्यता कानून का सही तरीके से पालन भी नहीं हो पाया है केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार इसे कमजोर करने की भरसक प्रयास कर रही है इसी मंशा के कारण जब विभिन्न पर्यावरण समूह के मामलों पर 13 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट वन अधिकार मान्यता कानून की वैधानिकता पर सुनवाई कर रहा था तो मोदी सरकार व अन्य राज्य के सरकारों के वकील कोर्ट में खड़े ही नहीं हुए या फिर मूकदर्शक बने रहे कोर्ट ने सुनवाई करते हुए वनों पर निर्भर उन आदिवासियों व अन्य परंपरागत वन निवासियों की बेदखली का आदेश दे दिया जिनके वनाधिकार के दावे निरस्त हो चुके हैं इस आदेश के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संशोधन किया और इसे 10 जुलाई 2019 तक इस पर रोक लगा दिया 24 जुलाई को पुनः सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई करने जा रहा है


बाइट सुदेश टीकम अध्यक्ष जिला किसान संघ राजनांदगांव


रितेश तंबोली ईटीवी भारत रायपुर
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