रायपुर: छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे को लेकर सियासी उठापटक चल रही है. 1 और 2 दिसंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है. विधानसभा के विशेष सत्र में सरकार आरक्षण संसोधन विधेयक लाने वाली है. आदिवासियों का आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत पर आ गया है. ऐसे में अब आदिवासी समाज के लोगों में नाराजगी है. प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में आदिवासी समाज प्रदर्शन कर रहा है. राजधानी रायपुर में भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय आदिवासियों के 32 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हुए हैं. ETV भारत ने नंद कुमार साय से खास बातचीत की...
सवाल- आप कितने दिनों से हड़ताल पर बैठे है?
जवाब- कोर्ट में आरक्षण का मामला था, निर्णय आया उस समय पता चला आदिवासियों का आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर केवल 20 प्रतिशत रह गया है. 12 प्रतिशत आरक्षण खत्म हो गया. इसलिए छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज के सभी लोग नाराज हैं. सभी जगह लोग आंदोलन कर रहे हैं. इसलिए मैं भी आंदोलन पर बैठा हूं. मामला कई सालों से कोर्ट में चल रहा था. 4 साल से कांग्रेस की सरकार पावर में है. निगरानी क्यों नहीं की गई और कोर्ट से जब जानकारी मिली तो यह पता चला कि कोर्ट में जिन तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है कि आदिवासियों का आरक्षण 32 प्रतिशत क्यों रहेगा, वह सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया है. कोर्ट में तथ्य प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी सरकार की थी. उसके कारण आदिवासियों का 12 प्रतिशत आरक्षण खत्म हो गया. समाज चिंतित है. बस्तर से लेकर सरगुजा तक आंदोलन चल रहे हैं. सरकार से बड़ी गलती हुई है इसलिए मैं धरने पर बैठा हूं. सरकार इसे कैसे ठीक करेगी यह उनकी जिम्मेदारी है.
सवाल- 1 और 2 दिसंबर सरकार विधानसभा का विशेष सत्र लाने वाली है इसे लेकर आपका क्या कहना है?
जवाब- सरकार की जिम्मेदारी है और यह सरकार का कर्तव्य है. अगर सावधानी पूर्वक कोर्ट में तथ्य प्रस्तुत कर दिया जाते तो धरने की जरूरत ही नहीं पड़ती. जिस दिन आरक्षण की मांग पूरी हो जाएगी, उस दिन धरना प्रदर्शन करने का कोई औचित्य नहीं रहेगा.
सवाल- सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण का स्पष्ट निर्देश है लेकिन छत्तीसगढ़ में 72 प्रतिशत से अधिक आरक्षण लाने की चर्चा है.
जवाब- इसमें कई प्रकार के तथ्य हैं. नवमी अनुसूची का भी हवाला दिया गया है. आरक्षण तो 50 प्रतिशत से 70 प्रतिशत अलग अलग राज्यों में है. जिस ढंग से उसे प्रस्तुत किया जाना है. वहीं मुख्य बात है, किस आधार पर आरक्षण करना चाहिए उसे सरकार को बताना पड़ेगा, और यह बात ठीक से प्रस्तुत की जाएगी तो कैसे गड़बड़ी हो सकती है. उसी को दुरुस्त रखना है. सरकार को देखना चाहिए कि इस तरह की कोई गलती और आगे ना हो.
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सवाल-संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे ने भाजपा से भी इस अध्यादेश को समर्थन करने की बात कही है?
जवाब- इसका विरोध कोई नहीं करेगा. कोई भी पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी. ऐसा मेरा मानना है चाहे वह निर्दलीय क्यों ना हो. सभी की सहमति से अध्यादेश पारित होना चाहिए.
सवाल - सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने अपील की है सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन पेंडिंग है ऐसे में अगर अध्यादेश लागू किया जाएगा तो कौन सा निर्णय माना जाएगा?
जवाब- सरकार सुप्रीम कोर्ट इसलिए जल्दी गई होगी कि कहीं देर ना हो जाए. अगर सरकार कोई विधेयक लाती है तो इस मामले को भी सुप्रीम कोर्ट के नोटिस में ला करके ठीक दिशा दी जा सकती है.
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सवाल- सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा का आरक्षण असंवैधानिक है. सरकार अध्यादेश लाएगी और ऐसे में अगर फिर से यह मामला कोर्ट में चले गया तब की क्या स्थिति होगी?
जवाब- यह भी सरकार की जिम्मेदारी है कि अगर ऐसा कभी होता है तो उसकी तैयारी भी सरकार को करनी चाहिए. इन सभी चीजों की समझ सरकार को बनाकर रखनी चाहिए. अलग अलग राज्यों में लोगों को स्टडी करने भेजा गया है. इस बात की जानकारी हासिल करने के लिए ही सरकार ने भेजा होगा. मामला यदि कोर्ट में जाता है तो उसकी तैयारी भी सरकार के पास पहले से होनी चाहिए और उसकी क्या प्रक्रिया हो सकती है उसकी जानकारी पुख्ता रूप से होनी चाहिए ताकि कोई भी परिस्थिति आए उसका सामना किया जा सके.
सवाल- आपका आंदोलन कब तक जारी रहेगा?
जवाब- जब तक आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिल जाता तब तक मैं धरना प्रदर्शन करता रहूंगा. विधानसभा विशेष सत्र बुलाया गया है. सरकार की तरफ से लाया गया अध्यादेश अमलीजामा पहन लेता है. उसके बाद धरना प्रदर्शन का कोई औचित्य नहीं रहेगा.