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'आदिवासियों के त्योहार का सरकारीकरण कर छीना जा रहा जल, जंगल और जमीन'

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Published : Aug 9, 2019, 11:45 PM IST

Updated : Aug 10, 2019, 3:09 PM IST

सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष बीपीएस नेताम ने आदिवासी दिवस के सरकारीकरण का आरोप लगाया है. नेताम ने कहा कि एक दिन आदिवासियों के लिए त्योहार मनाकर सरकार उनसे उनकी जल, जंगल और जमीन छीन रही है. आदिवासियों से जमीन अधिग्रहित कर उन्हें जंगलों से खदेड़ दिया जाता है.

विश्व आदिवासी दिवस पर रैली निकालते लोग

रायपुर: हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. आदिवासी दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के तमाम जिलों में रंगारंग आयोजन किया जाता है. इसके लिए सरकार की तरफ से कई प्रावधान किए जाते हैं. आदिवासी दिवस पर आयोजन को लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं. आदिवासियों के नेता का कहना है कि 'हर साल सिर्फ एक दिन आदिवासियों के लिए त्योहार मनाकर उन्हें राजनीतिक रूप से साधने की कोशिश की जाती है, लेकिन आदिवासियों की वर्तमान हालात पर कोई चर्चा नहीं होती है'.

'आदिवासियों के त्यौहार का सरकारीकरण कर दिया गया है'

आदिवासी नेताओं का कहना है कि 'आदिवासियों के उत्थान के लिए जमीनी स्तर पर किसी तरह के कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं'. आदिवासियों के तमाम मुद्दों और मसलों पर ETV भारत ने सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष और सेवानिवृत्त अधिकारी बीपीएस नेताम से खास चर्चा की. ETV भारत से चर्चा के दौरान बीपीएस नेताम ने आदिवासी दिवस मनाये जाने के पीछे के उद्देश्य और वर्तमान में समाज की व्यावहारिक दिक्कतों पर अपनी बात रखी.

त्योहार का सरकारीकरण
बीपीएस नेताम ने बताया कि 'द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सभी राष्ट्रों का सम्मेलन बुलाकर यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि दुनिया भर के मूल निवासियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए. 1994 में यूनेस्को ने 193 देशों का सम्मेलन आयोजित किया था और इसके बाद इंटरनेशनल मूल निवासियों का दिवस आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा'. बीपीएस नेताम ने बताया कि 'इस सम्मेलन में अनुच्छेद 46 का प्रस्ताव पारित किया गया है, जो हमारे संविधान की तरह है. आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन को कैसे संरक्षित किया जाए, इसका उल्लेख हमारे भारतीय संविधान में भी है. छत्तीसगढ़ में भी सर्व आदिवासी समाज ने पिछले कई सालों से आदिवासी दिवस को भव्य तरीके से मनाते आ रही है, लेकिन अब इस त्योहार का सरकारीकरण कर दिया गया है.

आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ा जा रहा
उन्होंने कहा कि 'जिन घनघोर जंगलों में आदिवासी निवास करते हैं, उनको क्या पता कि उस जंगलों के गर्भ में अमूल्य खनिजों का भंडार है'. नेताम ने कहा, 'इन खनिजों को निकालने के लिए लगातार प्रयास होते रहे हैं, छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो सालों से आदिवासी अपने जंगलों को सहेज कर रखे हैं. अब प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए उन्हें जंगलों से खदेड़ा जा रहा है. स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता है. जमीन अधिग्रहित कर जंगलों से खदेड़ दिया जाता है'. उन्होंने कहा कि, 'हम चाहते हैं जिनकी जमीन उस क्षेत्र में हो उनको किसी भी सरकारी उपक्रम में लीज होल्डर बनाया जाए, ताकि मूल आदिवासियों को उनका हिस्सा मिल सके'.

रायपुर: हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. आदिवासी दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के तमाम जिलों में रंगारंग आयोजन किया जाता है. इसके लिए सरकार की तरफ से कई प्रावधान किए जाते हैं. आदिवासी दिवस पर आयोजन को लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं. आदिवासियों के नेता का कहना है कि 'हर साल सिर्फ एक दिन आदिवासियों के लिए त्योहार मनाकर उन्हें राजनीतिक रूप से साधने की कोशिश की जाती है, लेकिन आदिवासियों की वर्तमान हालात पर कोई चर्चा नहीं होती है'.

'आदिवासियों के त्यौहार का सरकारीकरण कर दिया गया है'

आदिवासी नेताओं का कहना है कि 'आदिवासियों के उत्थान के लिए जमीनी स्तर पर किसी तरह के कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं'. आदिवासियों के तमाम मुद्दों और मसलों पर ETV भारत ने सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष और सेवानिवृत्त अधिकारी बीपीएस नेताम से खास चर्चा की. ETV भारत से चर्चा के दौरान बीपीएस नेताम ने आदिवासी दिवस मनाये जाने के पीछे के उद्देश्य और वर्तमान में समाज की व्यावहारिक दिक्कतों पर अपनी बात रखी.

त्योहार का सरकारीकरण
बीपीएस नेताम ने बताया कि 'द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सभी राष्ट्रों का सम्मेलन बुलाकर यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि दुनिया भर के मूल निवासियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए. 1994 में यूनेस्को ने 193 देशों का सम्मेलन आयोजित किया था और इसके बाद इंटरनेशनल मूल निवासियों का दिवस आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा'. बीपीएस नेताम ने बताया कि 'इस सम्मेलन में अनुच्छेद 46 का प्रस्ताव पारित किया गया है, जो हमारे संविधान की तरह है. आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन को कैसे संरक्षित किया जाए, इसका उल्लेख हमारे भारतीय संविधान में भी है. छत्तीसगढ़ में भी सर्व आदिवासी समाज ने पिछले कई सालों से आदिवासी दिवस को भव्य तरीके से मनाते आ रही है, लेकिन अब इस त्योहार का सरकारीकरण कर दिया गया है.

आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ा जा रहा
उन्होंने कहा कि 'जिन घनघोर जंगलों में आदिवासी निवास करते हैं, उनको क्या पता कि उस जंगलों के गर्भ में अमूल्य खनिजों का भंडार है'. नेताम ने कहा, 'इन खनिजों को निकालने के लिए लगातार प्रयास होते रहे हैं, छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो सालों से आदिवासी अपने जंगलों को सहेज कर रखे हैं. अब प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए उन्हें जंगलों से खदेड़ा जा रहा है. स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता है. जमीन अधिग्रहित कर जंगलों से खदेड़ दिया जाता है'. उन्होंने कहा कि, 'हम चाहते हैं जिनकी जमीन उस क्षेत्र में हो उनको किसी भी सरकारी उपक्रम में लीज होल्डर बनाया जाए, ताकि मूल आदिवासियों को उनका हिस्सा मिल सके'.

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9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। आदिवासी दिवस को लेकर छत्तीसगढ़ में भी कई तरह के रंगारंग आयोजन किया गया लेकिन हर साल की तरह केवल 1 दिन ही आदिवासियों का त्यौहार मना कर उन्हें साधने के लिए तमाम राजनीतिक दल और सरकारी प्रयास करती रही हैं। इन तमाम प्रयासों के बाद भी आदिवासियों की वर्तमान हालात सालों पहले जैसे ही है। उनके उत्थान को लेकर जमीनी स्तर पर किसी तरह के कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। इन तमाम मुद्दों और मसलो को लेकर ईटीवी भारत ने सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी बीपीएस नेताओं से खास चर्चा की है। ईटीवी भारत से चर्चा के दौरान बीपीएस नेताम ने आदिवासी दिवस मनाया जाने के पीछे के उद्देश्य और वर्तमान में समाज की कई तरह की व्यावहारिक दिक्कतों को लेकर भी खुलकर चर्चा की है।

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उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सभी राष्ट्रों का सम्मेलन बुलाकर यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि दुनिया भर के मूल निवासियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए. 1994 में यूनेस्को ने 193 देशों का सम्मेलन आयोजित किया था और इसके बाद इंटरनेशनल मूल निवासियों का दिवस आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस सम्मेलन में अनुच्छेद 46 का प्रस्ताव पारित किया गया है, जो हमारे संविधान की तरह है। आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन को कैसे संरक्षित किया जाए, इसका उल्लेख हमारे भारतीय संविधान में भी है। छत्तीसगढ़ में भी सर्व आदिवासी समाज ने पिछले कई सालों से आदिवासी दिवस को भव्य तरीके से मनाते आ रही है, लेकिन अब बाद में इस त्यौहार का सरकारीकरण भी कर दिया गया है।
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उन्होंने चर्चा में कहा कि जिन घनघोर जंगलों में आदिवासी निवास करते हैं, उनको क्या पता कि उस जंगलों के नीचे भीतर गर्भ में अमूल्य खनिजों का भंडार है। इन खनिजों को निकालने के लिए ही लगातार प्रयास होते रहे हैं, छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो सालों से आदिवासी अपने जंगलों को सहेज कर रखे हैं। अब प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए ही उन्हें जंगलों से खदेड़ा जा रहा है स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता है।जमीन अधिग्रहित कर जंगलों से खदेड़ दिया जाता है, हम चाहते हैं जिनकी जमीन उस क्षेत्र में हो उनको किसी भी सरकारी उपक्रम में लीज होल्डर बनाया जाए, ताकि मूल आदिवासियों को उनका हिस्सा मिल सके।

वन टू वन- बीपीएस नेताम, अध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज, छत्तीसगढ़

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर
Conclusion:
Last Updated : Aug 10, 2019, 3:09 PM IST
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