ETV Bharat / state

ऐतिहासिक दशहरा मैदान में पहले पहुंचती है बालाजी की पालकी, तब होता है रावण वध

दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है. लेकिन राजधानी के रावण भाटा की एक ऐतिहासिक कहानी है. जिसमें राम की सेना और रावण की सेना जाती है. रावण वध के बाद बालाजी की पालकी नगर भ्रमण कर क्षेत्र के लोगों को आशीर्वाद देते हुए वापस मंदिर पहुंचती है. यह परंपरा 200 साल से चली आ रही है.

Ravana
रावण
author img

By

Published : Oct 14, 2021, 7:57 PM IST

रायपुर: दशहरा (Dussehra) बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है. पूरे भारत वर्ष में यूं तो कई जगह दशहरा मनाया (Celebrate Dussehra ) जाता है और रावण का दहन (ravana ombustion होता है, लेकिन राजधानी के रावण भाटा की एक ऐतिहासिक कहानी है. यह कहानी लगभग 200 साल से अधिक पुरानी है. दरअसल यहां दशहरे की शुरुआत दूधाधारी मंदिर के महंत द्वारा सालों पहले की गई थी. जिसमें रामलीला के बाद रावण वध किया जाता था, लेकिन कुछ सालों से रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले खड़े कर उन्हें जलाया जाता है.

यह भी पढ़ें: विजयदशमी 2021: रायपुर में 50 से 60 फीट के रावण का होगा दहन


दशहरे के दिन निकलती है बालाजी की पालकी

दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोज वर्मा ने बताया कि राजधानी के रावण भाठा मैदान को ऐतिहासिक दशहरा मैदान कहा जाता है. इस मैदान का संबंध सीधे 16 ईसवीं में निर्मित दूधाधारी मठ से है. मठ के महंत द्वारा यहां पर दशहरा उत्सव की शुरुआत हुई है. साल में एक बार यानी दशहरा के दिन मंदिर से बालाजी की पालकी निकाली जाती है, जो नगर भ्रमण करते हुए रावण भाठा मैदान पहुंचती है. वहां रावण वध के बाद बालाजी की पालकी नगर भ्रमण कर क्षेत्र के लोगों को आशीर्वाद देते हुए वापस मंदिर पहुंचती है. यह परंपरा 200 साल से चली आ रही है.

राम और रावण की सेना एक साथ पहुंचती है मैदान

दशहरा उत्सव के दिन रामलीला मंडली पहले पैदल दशहरा मैदान जाया करती थी. इसमें राम की सेना के साथ रावण की सेना भी जाती है. धीरे-धीरे समय का फेर बदनाम ट्रैक्टर पर सवार होकर मैदान पहुंचा जाता था. लेकिन दशहरा उत्सव समिति के आने के बाद अब गाजे-बाजे के साथ रथ पर सवार होकर मैदान पहुंचता है. इसके साथ ही पीछे बालाजी की पालकी भी रहती है. वहीं क्षेत्र के लोग भी बड़ी तादाद में राम की भक्ति में लीन होकर नाचते गाते हुए दशहरा मैदान पहुंचते हैं.

प्राचीन शस्त्र का प्रदर्शन

दूधाधारी मंदिर में जन्माष्टमी, दशहरा, रामनवमी को साल में तीन बार पट खुलता है. दशहरा को यहां रखे प्राचीन शस्त्र को निकाला जाता है जो बालाजी के पालकी के साथ रावणभाटा जाते हैं. जहां प्राचीन शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाता है. इसके बाद विजय जुलूस नगर भ्रमण करते हुए 11:30 बजे मंदिर पहुंचता है. फिर आरती कर पट बंद किया जाता है. इस दिन बालाजी और राम दरबार का श्रृंगार स्वर्ण आभूषणों से किया जाता है.

रायपुर: दशहरा (Dussehra) बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है. पूरे भारत वर्ष में यूं तो कई जगह दशहरा मनाया (Celebrate Dussehra ) जाता है और रावण का दहन (ravana ombustion होता है, लेकिन राजधानी के रावण भाटा की एक ऐतिहासिक कहानी है. यह कहानी लगभग 200 साल से अधिक पुरानी है. दरअसल यहां दशहरे की शुरुआत दूधाधारी मंदिर के महंत द्वारा सालों पहले की गई थी. जिसमें रामलीला के बाद रावण वध किया जाता था, लेकिन कुछ सालों से रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले खड़े कर उन्हें जलाया जाता है.

यह भी पढ़ें: विजयदशमी 2021: रायपुर में 50 से 60 फीट के रावण का होगा दहन


दशहरे के दिन निकलती है बालाजी की पालकी

दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोज वर्मा ने बताया कि राजधानी के रावण भाठा मैदान को ऐतिहासिक दशहरा मैदान कहा जाता है. इस मैदान का संबंध सीधे 16 ईसवीं में निर्मित दूधाधारी मठ से है. मठ के महंत द्वारा यहां पर दशहरा उत्सव की शुरुआत हुई है. साल में एक बार यानी दशहरा के दिन मंदिर से बालाजी की पालकी निकाली जाती है, जो नगर भ्रमण करते हुए रावण भाठा मैदान पहुंचती है. वहां रावण वध के बाद बालाजी की पालकी नगर भ्रमण कर क्षेत्र के लोगों को आशीर्वाद देते हुए वापस मंदिर पहुंचती है. यह परंपरा 200 साल से चली आ रही है.

राम और रावण की सेना एक साथ पहुंचती है मैदान

दशहरा उत्सव के दिन रामलीला मंडली पहले पैदल दशहरा मैदान जाया करती थी. इसमें राम की सेना के साथ रावण की सेना भी जाती है. धीरे-धीरे समय का फेर बदनाम ट्रैक्टर पर सवार होकर मैदान पहुंचा जाता था. लेकिन दशहरा उत्सव समिति के आने के बाद अब गाजे-बाजे के साथ रथ पर सवार होकर मैदान पहुंचता है. इसके साथ ही पीछे बालाजी की पालकी भी रहती है. वहीं क्षेत्र के लोग भी बड़ी तादाद में राम की भक्ति में लीन होकर नाचते गाते हुए दशहरा मैदान पहुंचते हैं.

प्राचीन शस्त्र का प्रदर्शन

दूधाधारी मंदिर में जन्माष्टमी, दशहरा, रामनवमी को साल में तीन बार पट खुलता है. दशहरा को यहां रखे प्राचीन शस्त्र को निकाला जाता है जो बालाजी के पालकी के साथ रावणभाटा जाते हैं. जहां प्राचीन शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाता है. इसके बाद विजय जुलूस नगर भ्रमण करते हुए 11:30 बजे मंदिर पहुंचता है. फिर आरती कर पट बंद किया जाता है. इस दिन बालाजी और राम दरबार का श्रृंगार स्वर्ण आभूषणों से किया जाता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.