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आज भी दफन है ताशकंद के उस काली रात का राज

लाल बहादुर शास्त्री (Lal bahadur shastri)जी का जन्म 2 अक्टूबर को हुआ था. उनकी मौत 10 और 11 जनवरी साल 1966 के दरम्यानी रात (The night between 10th and 11th January 1966) को हुई थी. जब वो ताशकंद (Tashkant) में भारत-पाक समझौते (Indo-Pak Agreement) के लिए गए थे. उनकी मौत के कारण को लेकर आज भी असमंजस है. ताशकंद में समझौते (Agreement in Tashkant) के रात के साये में ही उनके मौत का राज (secret of death) दफन हो गया.

Secrets of Tashkent's Black Night
ताशकंद के उस काली रात का राज
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Published : Oct 2, 2021, 12:22 PM IST

रायपुरः आज लालबहादुर शास्त्री (Lal bahadur shastri) का जन्मदिन (Birthday) है. आज के दिन को उनके त्याग, उसूल और बलिदान के लिए याद किया जाता है. वहीं, एक ऐसा वाकया जिसे याद कर लोगों की रूह कांप जाती है. एक ऐसा राज जो आज भी दफन है. जिसके बारे में कोई आज तक नहीं जान पाया. वो ताशकंद (Tashkant) के उस काली घनी रात का राज, जिस रात मौत ने शास्त्रीजी(Shastriji) को अपने गले लगा लिया था.

ताशकंद समझौता और शास्त्रीजी की मौत

साल, 1965 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में मात दे दी थी. जिसके बाद साल 1966 में 10 जनवरी के दिन भारत- पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था, जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है. बताया जाता है कि वो समझौता तत्कालीन सोवियन रूस के ताशकंद नाम के शहर में हुई थी. इसीलिए ताशकंद समझौता के नाम से इसे जाना जाता है. वहीं, ताशकंद समझौता के बाद 10 और 11 जनवरी के दरम्यानी रात को लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई.आखिर अचानक उनकी मृत्यु कैसे हुई, ये आज भी एक राज बना हुआ है.

लाल बहादुर शास्त्री जयंतीः पढ़ाई का ऐसा जुनून कि हर रोज नदी तैरकर जाते थे स्कूल

कईयों ने किया दिल का दौरा पड़ने से मौत का दावा

वहीं, शास्त्रीजी की मौत के बाद कई लोगों ने दावा किया कि शास्त्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है. हालांकि उनके डॉक्टर ने कहा था कि पूर्व पीएम को दिल की कभी कोई बीमारी नहीं थी.

शास्त्रीजी के सूचना अधिकारी ने बताया राज

लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके सूचना अधिकारी रहे प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर भी थे . उन्होंने पूरी घटना के बारे में विस्तार से लिखा है कि रात में मैं सो रहा था.अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज से जग गया. दरवाजा एक रूसी महिला खटखटा रही थी. उन्होंने मुझसे कहा कि आपके प्रधानमंत्री की हालत गंभीर है. मैंने तुरंत कपड़ा बदला और एक भारतीय अधिकारी के साथ शास्त्रीजी के कमरे में गया जो मेरे कमरे से कुछ ही दूरी पर था. वहां मैंने बिस्तर पर उन्हें मृत पाया.

'बियॉन्ड द लाइन्स' में शास्त्रीजी के मौत की घटना का जिक्र

साथ ही कुलदीप नैयर ने अपनी जीवनी 'बियॉन्ड द लाइन्स' में लिखा है कि जब भारत में इसकी सूचना दी गई तो किसी को यकीन नहीं हो रहा था. उन्होंने यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया के पास फोन करके पहले सूचना दी. उन्होंने किताब में लिखा है कि उस दिन नाइट ड्यूटी में सुरिंदर धिंगरा थे. शास्त्रीजी नहीं रहे मैंने उनको यह फ्लैश चलाने को कहा. धिंगरा हंसने लगे और मुझसे कहा कि आप मजाक कर रहे हैं. धिंगरा ने मुझे कहा कि शाम के ही समारोह में तो हमने शास्त्रीजी की स्पीच कवर की है. मैंने फिर उनसे कहा कि समय बर्बाद नहीं करें और तुरंत फ्लैश चलाएं. फिर भी उनको यकीन नहीं आया. तब जाकर मुझे पंजाबी में कुछ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा जिसके बाद वह हरकत में आए.

पत्नी के मुताबिक मौत के वक्त निला था शरीर

वहीं, शास्त्रीजी की पत्नी ललिता देवी ने उनके मौत के बाद बताया था कि मृत्यु के बाद उनका शरीर नीला था और कहीं-कहीं कटने के भी निशान थे. बताया जाता है कि शास्त्रीजी का पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया था.इधर,शास्त्रीजी के बेटे अनिल शास्त्री का मानना था कि उनके पिता को ताशकंद शहर से 20 किलोमीटर दूर एक होटल में रखा गया. उनके कमरे में न तो फोन था,न ही कोई बेल, न कोई शख्स मदद के लिए. बेटे के अनुसार शास्त्रीजी हमेशा अपने साथ एक डायरी रखते थे, लेकिन ताशकंद से उनकी डायरी वापस नहीं आई. जिसके कारण आज भी उनके मौत का राज ताशकंद की उस रात में ही दफन हो चुका है. आज भी कई लोग उस राज को जानने को आतुर है, पर अब तक उस राज से पर्दा नहीं उठा है.

रायपुरः आज लालबहादुर शास्त्री (Lal bahadur shastri) का जन्मदिन (Birthday) है. आज के दिन को उनके त्याग, उसूल और बलिदान के लिए याद किया जाता है. वहीं, एक ऐसा वाकया जिसे याद कर लोगों की रूह कांप जाती है. एक ऐसा राज जो आज भी दफन है. जिसके बारे में कोई आज तक नहीं जान पाया. वो ताशकंद (Tashkant) के उस काली घनी रात का राज, जिस रात मौत ने शास्त्रीजी(Shastriji) को अपने गले लगा लिया था.

ताशकंद समझौता और शास्त्रीजी की मौत

साल, 1965 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में मात दे दी थी. जिसके बाद साल 1966 में 10 जनवरी के दिन भारत- पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था, जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है. बताया जाता है कि वो समझौता तत्कालीन सोवियन रूस के ताशकंद नाम के शहर में हुई थी. इसीलिए ताशकंद समझौता के नाम से इसे जाना जाता है. वहीं, ताशकंद समझौता के बाद 10 और 11 जनवरी के दरम्यानी रात को लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो गई.आखिर अचानक उनकी मृत्यु कैसे हुई, ये आज भी एक राज बना हुआ है.

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कईयों ने किया दिल का दौरा पड़ने से मौत का दावा

वहीं, शास्त्रीजी की मौत के बाद कई लोगों ने दावा किया कि शास्त्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है. हालांकि उनके डॉक्टर ने कहा था कि पूर्व पीएम को दिल की कभी कोई बीमारी नहीं थी.

शास्त्रीजी के सूचना अधिकारी ने बताया राज

लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके सूचना अधिकारी रहे प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर भी थे . उन्होंने पूरी घटना के बारे में विस्तार से लिखा है कि रात में मैं सो रहा था.अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज से जग गया. दरवाजा एक रूसी महिला खटखटा रही थी. उन्होंने मुझसे कहा कि आपके प्रधानमंत्री की हालत गंभीर है. मैंने तुरंत कपड़ा बदला और एक भारतीय अधिकारी के साथ शास्त्रीजी के कमरे में गया जो मेरे कमरे से कुछ ही दूरी पर था. वहां मैंने बिस्तर पर उन्हें मृत पाया.

'बियॉन्ड द लाइन्स' में शास्त्रीजी के मौत की घटना का जिक्र

साथ ही कुलदीप नैयर ने अपनी जीवनी 'बियॉन्ड द लाइन्स' में लिखा है कि जब भारत में इसकी सूचना दी गई तो किसी को यकीन नहीं हो रहा था. उन्होंने यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया के पास फोन करके पहले सूचना दी. उन्होंने किताब में लिखा है कि उस दिन नाइट ड्यूटी में सुरिंदर धिंगरा थे. शास्त्रीजी नहीं रहे मैंने उनको यह फ्लैश चलाने को कहा. धिंगरा हंसने लगे और मुझसे कहा कि आप मजाक कर रहे हैं. धिंगरा ने मुझे कहा कि शाम के ही समारोह में तो हमने शास्त्रीजी की स्पीच कवर की है. मैंने फिर उनसे कहा कि समय बर्बाद नहीं करें और तुरंत फ्लैश चलाएं. फिर भी उनको यकीन नहीं आया. तब जाकर मुझे पंजाबी में कुछ कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा जिसके बाद वह हरकत में आए.

पत्नी के मुताबिक मौत के वक्त निला था शरीर

वहीं, शास्त्रीजी की पत्नी ललिता देवी ने उनके मौत के बाद बताया था कि मृत्यु के बाद उनका शरीर नीला था और कहीं-कहीं कटने के भी निशान थे. बताया जाता है कि शास्त्रीजी का पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया था.इधर,शास्त्रीजी के बेटे अनिल शास्त्री का मानना था कि उनके पिता को ताशकंद शहर से 20 किलोमीटर दूर एक होटल में रखा गया. उनके कमरे में न तो फोन था,न ही कोई बेल, न कोई शख्स मदद के लिए. बेटे के अनुसार शास्त्रीजी हमेशा अपने साथ एक डायरी रखते थे, लेकिन ताशकंद से उनकी डायरी वापस नहीं आई. जिसके कारण आज भी उनके मौत का राज ताशकंद की उस रात में ही दफन हो चुका है. आज भी कई लोग उस राज को जानने को आतुर है, पर अब तक उस राज से पर्दा नहीं उठा है.

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