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जानिये क्या है 'गणपति बप्पा मोरया' जयकारे के पीछे की कहानी

देश भर में हर तरफ 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया' के जयकारे लग रहे हैं. गणेश उत्सव के मौके पर गली, मोहल्लों से लेकर शहरों के कोने-कोने तक हर तरफ बस इन्हीं जयकारों की धूम मची हुई है.

'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया'
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Published : Sep 5, 2019, 11:06 PM IST

Updated : Sep 5, 2019, 11:49 PM IST

लखनऊः गणेश उत्सव के आखिरी दिन जब गणेश जी की प्रतिमा विसर्जित की जाती है तो हर किसी की आंखों में आंसू और होठों पर एक ही जयकारा 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ती मोरया' का उद्घोष होता रहता है. क्या आपको पता है कि 'गणपति बप्पा मोरया' के जयकारे क्यों लगाए जाते हैं. इस जयकारे की शुरुआत कब से हुई? चलिए इस जयकारे के पीछे की कहानी हम आपको बताते हैं.

'गणपति बप्पा मोरया'

गणेश भक्त के नाम से जुड़ी है जयकारे की कहानी
चौदहवीं सदी में पुणे के समीप चिंचवाड़ मोर गांव में मोरया गोसावी नामक गणेश भक्त रहते थे. मोरया गोसावी के माता-पिता कर्नाटक से आकर यहां बस गए थे. मान्यता है कि मोरया गोसावी गणेश जी के इतने बड़े भक्त थे कि गांव में ही स्थित मयूरेश्वर मंदिर में जीवित समाधि ले ली थी. ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ युगों-युगों तक लिया जाएगा. तब से उन्हीं के नाम पर 'गणपति बप्पा मोरया' नामक जयकारे की शुरुआत हुई.

एक दूसरी भी है मान्यता
इस जयकारे के जन्म की एक दूसरी मान्यता भी है. कहा जाता है कि पुणे के पास मोरगांव है, जहां गाणपत्य संप्रदाय के लोगों का निवास था. इसके अलावा मोरगांव में मोरों की संख्या अधिक थी. ऐसी मान्यता है कि इस गांव में गणेश की सिद्ध प्रतिमा थी, जिसे मयूरेश्वर कहा जाता है. भगवान गणेश के इसी मयूरेश्वर रूप पर ही 'गणपति बप्पा मोरया' जयकारे की शुरुआत हुई.

भगवान गणेश के प्रसिद्ध स्थल
गणेश यात्रा की शुरुआत मयूरेश्वर से होकर थेऊर, सिद्धटेक, रांजणगाव, ओझर, लेण्याद्रि, महड़, पाली, और अष्टविनायक हैं. 'सुखकर्ता-दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची' श्लोक की रचना सन्त कवि समर्थ रामदास ने चिंचवाड़ के उसी क्षेत्र से मोरया गोसावी के सानिध्य में की थी. संत तुकाराम भी मोरया गोसावी के सानिध्य में रह चुके थे.

लखनऊः गणेश उत्सव के आखिरी दिन जब गणेश जी की प्रतिमा विसर्जित की जाती है तो हर किसी की आंखों में आंसू और होठों पर एक ही जयकारा 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ती मोरया' का उद्घोष होता रहता है. क्या आपको पता है कि 'गणपति बप्पा मोरया' के जयकारे क्यों लगाए जाते हैं. इस जयकारे की शुरुआत कब से हुई? चलिए इस जयकारे के पीछे की कहानी हम आपको बताते हैं.

'गणपति बप्पा मोरया'

गणेश भक्त के नाम से जुड़ी है जयकारे की कहानी
चौदहवीं सदी में पुणे के समीप चिंचवाड़ मोर गांव में मोरया गोसावी नामक गणेश भक्त रहते थे. मोरया गोसावी के माता-पिता कर्नाटक से आकर यहां बस गए थे. मान्यता है कि मोरया गोसावी गणेश जी के इतने बड़े भक्त थे कि गांव में ही स्थित मयूरेश्वर मंदिर में जीवित समाधि ले ली थी. ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ युगों-युगों तक लिया जाएगा. तब से उन्हीं के नाम पर 'गणपति बप्पा मोरया' नामक जयकारे की शुरुआत हुई.

एक दूसरी भी है मान्यता
इस जयकारे के जन्म की एक दूसरी मान्यता भी है. कहा जाता है कि पुणे के पास मोरगांव है, जहां गाणपत्य संप्रदाय के लोगों का निवास था. इसके अलावा मोरगांव में मोरों की संख्या अधिक थी. ऐसी मान्यता है कि इस गांव में गणेश की सिद्ध प्रतिमा थी, जिसे मयूरेश्वर कहा जाता है. भगवान गणेश के इसी मयूरेश्वर रूप पर ही 'गणपति बप्पा मोरया' जयकारे की शुरुआत हुई.

भगवान गणेश के प्रसिद्ध स्थल
गणेश यात्रा की शुरुआत मयूरेश्वर से होकर थेऊर, सिद्धटेक, रांजणगाव, ओझर, लेण्याद्रि, महड़, पाली, और अष्टविनायक हैं. 'सुखकर्ता-दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची' श्लोक की रचना सन्त कवि समर्थ रामदास ने चिंचवाड़ के उसी क्षेत्र से मोरया गोसावी के सानिध्य में की थी. संत तुकाराम भी मोरया गोसावी के सानिध्य में रह चुके थे.

Intro:गोरखपुर। यह बाइट डेस्क की डिमांड है। सुधीर जी को इससे सूचित करें।


Body:इस बाइट से जुड़ी खबर डेस्क खुद तैयार कर रहा है।


Conclusion:मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
9415875724
Last Updated : Sep 5, 2019, 11:49 PM IST
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