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Bhakt prahlad ki katha : भक्त प्रह्लाद की कथा और होलिका दहन

हमारे इतिहास में ऐसे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनकी स्मृति में त्यौहार मनाए जाते हैं. ऐसा ही एक त्यौहार फाग यानी होली है. इसे फागुन भी कहते हैं. होलिका दहन से जुड़ी भक्त प्रह्लाद की कथा भी है. आइये जानते हैं भक्त प्रह्लाद से जुड़ी कथा.

Bhakt prahlaad ki katha
भक्त प्रहलाद की कथा और होलिका दहन
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Published : Feb 23, 2023, 4:48 PM IST

रायपुर : हिंदू धार्मिक, पौराणिक ग्रंथों में ध्रुव, उपमन्यु, आरुणी, श्रवण कुमार के साथ ही भक्त प्रह्लाद जैसे महान बालकों की कथाएं हैं. भक्त प्रह्लाद हिरण्यकश्यप राक्षस का बेटा था. हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था. भगवान से उसे यह वरदान मिला कि किसी भी अस्त्र शस्त्र से नहीं मारे जाओगे, न रात में, दिन में, न धरती में, न आकाश में. यह वरदान मिलने के बाद हिरण्यकश्यप को लगा कि वह अमर हो चुका है. उसने अपने छोटे भाई का बदला लेने के लिए देवताओं को परेशान किया. हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को अध्य्यन के लिए गुरुओं के पास भी भेजा लेकिन राक्षस का पुत्र होने के बाद भी प्रह्लाद भगवान की भक्ति में मगन रहता था.


गुरुओं को प्रहलाद को दूसरी शिक्षा देने का आदेश : बालक प्रहलाद की हरि भक्ति की परीक्षा लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने कुछ सवाल पूछे. प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप को बताया कि सबसे श्रेष्ठ भगवान हरि हैं इसलिए वो उनकी ही पूजा आराधना करेगा. प्रहलाद ने हिरण्यकश्यप को हरि का ज्ञान करवाया. लेकिन वरदान के मद में चूर हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र को मारने की ठान ली.

भक्त प्रहलाद को मृत्यु देने का आदेश : हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को लाख समझाया लेकिन प्रह्लाद ने भगवान की भक्ति नहीं छोड़ी. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को यातनाएं देनी शुरु कर दी. हिरण्यकश्यप ने अपने सेवकों को प्रहलाद को मारने का आदेश दे दिया. प्रह्लाद पर तीर, भाले, अस्त्र शस्त्र से वार किये गए, लेकिन प्रह्लाद के शरीर पर कोई असर नहीं पड़ा. हिरण्यकश्यप ने परेशान होकर प्रह्लाद को हाथी के पांव के नीचे कुचलने का आदेश दिया. लेकिन हाथियों ने भी प्रह्लाद को नहीं मारा. शेर, विष और हथियार का भी असर नहीं हुआ. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भी प्रह्लाद को लेकर जलती चिता पर बैठी. होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान मिला था लेकिन उसका वरदान भी काम ना आया. उस अग्नि में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भस्म हो गई. इसी दिन से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई.

ये भी पढ़ें- शिरडी के धूनी वाले साईं बाबा धाम की कहानी


हिरण्यकश्यप ने खुद प्रह्लाद को देनी चाही मृत्यु : अब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से कहा मैं तुम्हारा वध करूंगा. देखता हूं कहां है तुम्हारा भगवान? इस पर प्रह्लाद ने कहा कि हर कण में भगवान हैं. हिरणकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि खंबे में भी है. प्रहलाद ने कहा हां है. हिरण्यकश्यप ने गुस्से में खंभे पर लात मारी. तभी खंभे में से नरसिंह भगवान आकर हिरण्यकश्यप के सामने खड़े हो गए. उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रखा और नाखून से उसका शरीर चीर दिया. इस तरह हिरण्यकश्यप अपने वरदान के अनुरूप न पृथ्वी पर, न आकाश पर , न किसी अस्त्र शस्त्र से, न देव, ना मानव बल्कि नरसिंह भगवान के हाथों मारा गया.

रायपुर : हिंदू धार्मिक, पौराणिक ग्रंथों में ध्रुव, उपमन्यु, आरुणी, श्रवण कुमार के साथ ही भक्त प्रह्लाद जैसे महान बालकों की कथाएं हैं. भक्त प्रह्लाद हिरण्यकश्यप राक्षस का बेटा था. हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था. भगवान से उसे यह वरदान मिला कि किसी भी अस्त्र शस्त्र से नहीं मारे जाओगे, न रात में, दिन में, न धरती में, न आकाश में. यह वरदान मिलने के बाद हिरण्यकश्यप को लगा कि वह अमर हो चुका है. उसने अपने छोटे भाई का बदला लेने के लिए देवताओं को परेशान किया. हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को अध्य्यन के लिए गुरुओं के पास भी भेजा लेकिन राक्षस का पुत्र होने के बाद भी प्रह्लाद भगवान की भक्ति में मगन रहता था.


गुरुओं को प्रहलाद को दूसरी शिक्षा देने का आदेश : बालक प्रहलाद की हरि भक्ति की परीक्षा लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने कुछ सवाल पूछे. प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप को बताया कि सबसे श्रेष्ठ भगवान हरि हैं इसलिए वो उनकी ही पूजा आराधना करेगा. प्रहलाद ने हिरण्यकश्यप को हरि का ज्ञान करवाया. लेकिन वरदान के मद में चूर हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र को मारने की ठान ली.

भक्त प्रहलाद को मृत्यु देने का आदेश : हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को लाख समझाया लेकिन प्रह्लाद ने भगवान की भक्ति नहीं छोड़ी. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को यातनाएं देनी शुरु कर दी. हिरण्यकश्यप ने अपने सेवकों को प्रहलाद को मारने का आदेश दे दिया. प्रह्लाद पर तीर, भाले, अस्त्र शस्त्र से वार किये गए, लेकिन प्रह्लाद के शरीर पर कोई असर नहीं पड़ा. हिरण्यकश्यप ने परेशान होकर प्रह्लाद को हाथी के पांव के नीचे कुचलने का आदेश दिया. लेकिन हाथियों ने भी प्रह्लाद को नहीं मारा. शेर, विष और हथियार का भी असर नहीं हुआ. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भी प्रह्लाद को लेकर जलती चिता पर बैठी. होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान मिला था लेकिन उसका वरदान भी काम ना आया. उस अग्नि में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भस्म हो गई. इसी दिन से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई.

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हिरण्यकश्यप ने खुद प्रह्लाद को देनी चाही मृत्यु : अब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से कहा मैं तुम्हारा वध करूंगा. देखता हूं कहां है तुम्हारा भगवान? इस पर प्रह्लाद ने कहा कि हर कण में भगवान हैं. हिरणकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा कि खंबे में भी है. प्रहलाद ने कहा हां है. हिरण्यकश्यप ने गुस्से में खंभे पर लात मारी. तभी खंभे में से नरसिंह भगवान आकर हिरण्यकश्यप के सामने खड़े हो गए. उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रखा और नाखून से उसका शरीर चीर दिया. इस तरह हिरण्यकश्यप अपने वरदान के अनुरूप न पृथ्वी पर, न आकाश पर , न किसी अस्त्र शस्त्र से, न देव, ना मानव बल्कि नरसिंह भगवान के हाथों मारा गया.

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