रायपुर: अजीत जोगी, राजनीति का वो धुरंधर खिलाड़ी, छत्तीसगढ़ में जिसका नाम ही काफी है. इंजीनियर, कलेक्टर, पॉलीटिशियन और मौत को मात देने वाला, अपने शब्दों से लोगों को पाश में जकड़ने वाला और खराब सेहत, विपरीत परिस्थितियों में हार न मानने वाला नेता.
आजादी से एक साल पहले यानी कि 1946 में 29 अप्रैल को बिलासपुर में अजीत जोगी का जन्म हुआ था. पेंड्रा में जन्मे जोगी ने पहले इंजीनियरिंग की फिर प्रशासनिक सेवा करते-करते राजनीति में कदम रखा. अर्जुन सिंह की सलाह पर राजीनीति में आने वाला ये इंजीनियर कई बार विधायक बना, सांसद रहा और छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री भी.
जोगी के राजनीतिक सफर पर एक नजर
1986 के आसपास उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन करने वाले जोगी 1986 से 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. पार्टी में अलग-अलग पद संभाले तो 1998 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो वे रायगढ़ सीट से सांसद चुनकर संसद में आए.
प्रदेश के पहले सीएम रहे
साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश ले अलग होकर नया राज्य बना, तो बहुमत कांग्रेस के पास था और मुख्यमंत्री की कुर्सी अजीत जोगी को मिली. 2003 तक जोगी छत्तीसगढ़ के सीएम रहे लेकिन उसके बाद लगातार 15 साल सत्ता भाजपा के हाथ में रही. और इन सालों में जोगी और कांग्रेस के बीच अनबन हुए, उन्होंने पार्टी छोड़ी और अपने नए दल का गठन कर लिया. विधानसभा चुनाव से ऐन पहले.
बसपा के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरे जोगी को खास सफलता नहीं मिली लेकिन 7 सीटें उनकी खाते में आईं.
विवादों से नाता
कांग्रेस से खटास भरे रिश्ते हों या फिर जाति का मामला जोगी पर आरोप भी लगे और वे कोर्ट में घसीटे भी गए. झीरम घाटी हमले में कांग्रेस आज तक उनका नाम लेती है और उनके कांग्रेस से जाने को अच्छा मानती है. जोगी का नया दल अच्छी स्थिति में नहीं है, वे 2019 का लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़े. कांग्रेस उन्हें अपना भेदी और भाजपा की बी टीम मानती रही. लेकिन जोगी ने भी धर्म ग्रंथों की कसम खाकर कह दिया था कि वे बीजेपी से कभी गठबंधन नहीं करेंगे.
अजीत जोगी की सेहत खराब रहती है. कुछ महीने पहले ही वे निमोनिया को मात देकर लौटे हैं. लेकिन आज भी उनकी सभाओं में आवाज और भाषा का वही रस टपकता है, जो छत्तीसगढ़ की किसी और नेता में नहीं दिखता.